मेरी सखी
हँसती-गुनगुनाती रहती
सारा दिन
सपने सजाती
अपनी शादी के
मुझसे करती
ढेरों बातें
शादी के बाद
उसकी हँसी खो गई
उसकी चूडियों की खनखनाहट में
उसका गुनगुनाना
पायल की झंकार में मिल गया
अब वो मिलती है मुझे
सिर्फ़ मेरे सपने में
हाथ बढ़ाकर पकड़ना चाहती हूँ उसे
हाथ में आती है
उसकी पायल ,चूड़ी ,मंगलसूत्र
वो नहीं मिलती
जाने कहाँ कहीं खो गई
एक बड़े घर की बहू बनकर रह गई मेरी सखी
शादी के बाद
औरतें सखी नहीं होती
शादी के बाद
औरतों की सखियाँ
कहीं खो जाती हैं ।
हँसती-गुनगुनाती रहती
सारा दिन
सपने सजाती
अपनी शादी के
मुझसे करती
ढेरों बातें
शादी के बाद
उसकी हँसी खो गई
उसकी चूडियों की खनखनाहट में
उसका गुनगुनाना
पायल की झंकार में मिल गया
अब वो मिलती है मुझे
सिर्फ़ मेरे सपने में
हाथ बढ़ाकर पकड़ना चाहती हूँ उसे
हाथ में आती है
उसकी पायल ,चूड़ी ,मंगलसूत्र
वो नहीं मिलती
जाने कहाँ कहीं खो गई
एक बड़े घर की बहू बनकर रह गई मेरी सखी
शादी के बाद
औरतें सखी नहीं होती
शादी के बाद
औरतों की सखियाँ
कहीं खो जाती हैं ।
बहुत बढिया!!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर।
जवाब देंहटाएंसही है-बहुत बढ़िया.
जवाब देंहटाएंदर्दीला गीत...
जवाब देंहटाएंbahut achha likha hai..
जवाब देंहटाएंsachhi baat likhi hai aapne..
जवाब देंहटाएंthanks..
दुःख भरा यथार्थ !
जवाब देंहटाएंसच ही कहा आपने...........इस पर क्या कहूँ....हाँ अच्छा भी तो लिखा है आपने.....!!
जवाब देंहटाएं