मंगलवार, 24 फ़रवरी 2009

तुम आए मेरे जीवन में

तुम आए मेरे जीवन में ऐसे ...
सालों से सूखे ठूंठ में सहसा
उग आयीं हो नयी कोंपलें जैसे...
तुम आए मेरे जीवन ऐसे
महुए की मदिर गंध फागुन में
फैल गयी हो वन-उपवन में जैसे...
तुम आए मेरे जीवन में ऐसे
जलती -तपती धरती पर बरसी हों
घिर-घिर के घनघोर घटाएं जैसे...
तुम आए मेरे जीवन में ऐसे
थककर बैठे क्लांत पथिक के सम्मुख
तीर्थ स्वयं चलकर आया हो जैसे

शनिवार, 21 फ़रवरी 2009

सखी

मेरी सखी
हँसती-गुनगुनाती रहती
सारा दिन
सपने सजाती
अपनी शादी के
मुझसे करती
ढेरों बातें
शादी के बाद
उसकी हँसी खो गई
उसकी चूडियों की खनखनाहट में
उसका गुनगुनाना
पायल की झंकार में मिल गया
अब वो मिलती है मुझे
सिर्फ़ मेरे सपने में
हाथ बढ़ाकर पकड़ना चाहती हूँ उसे
हाथ में आती है
उसकी पायल ,चूड़ी ,मंगलसूत्र
वो नहीं मिलती
जाने कहाँ कहीं खो गई
एक बड़े घर की बहू बनकर रह गई मेरी सखी
शादी के बाद
औरतें सखी नहीं होती
शादी के बाद
औरतों की सखियाँ
कहीं खो जाती हैं ।

बुधवार, 18 फ़रवरी 2009

एक औरत और समाज, परिवार वगैरह

एक औरत...
कैसे देखे सपना
आसमान छूने का
जबकि उसकी पूरी ज़िंदगी
गुज़र जाती है
तलाशते हुए अपने हिस्से की ज़मीन
एक औरत...
कैसे लड़े समाज के लिए
जबकि उसको प्रतिदिन लड़ना पड़ता है
ख़ुद समाज से
एक औरत ...
क्या कर सकती है
बेघरों के लिए
जबकि ख़ुद सारा जीवन
ढूँढती रहती है अपना घर
एक औरत ...कैसे सोचे संसार के बारे में
जबकि उसका परिवार ही बन जाता है
उसका संसार ... ...

शनिवार, 14 फ़रवरी 2009

प्यार क्या है (वैलेंटाइन डे पर विशेष )

(वैलेंटाइन डे मनाना चाहिए या नहीं मैं इस विवाद में नहीं पडूँगी . मुझे जो त्यौहार अच्छा लगता है मना लेती हूँ .ये तो रही मेरी बात .समाज के लिहाज से इस बहाने प्रेम जैसे वर्जित विषय पर हमारे यहाँ चर्चा हो जाती है ,ये एक सकारात्मक बात है .इसलिए मैं भी एक कविता लिख रही हूँ ,जो प्रेमियों को पसंद आएगी .कविता लम्बी है ,अतः अंशतः ही छाप रही हूँ।... ... ... ... ... ... ... एक भड़कता शोला /एक ठंडी आग /एक दर्दीली खुशी /एक खुशनुमा दर्द /फूलों की खुशबू /काँटों का हार /क्या यही है प्यार ?/...एक चुभती नज़र /एक मीठी मुस्कान /एक भोली सी हँसी /एक आँसुओं का उफान /शाम का धुंधलका /सुबह का ख़ुमार /क्या यही है प्यार? /... कभी रंगीनियों की महफ़िल /और महफ़िल में तन्हाई /कभी मिलना किसी का /और मिलन में जुदाई /विरह का पतझड़ /मिलन की बहार /क्या यही है प्यार ?... कभी बातें ही बातें /कभी चुप बैठे रहना /कभी सब कुछ कह जाना /कभी कुछ भी न कहना /उनकी एक झलक को /घंटों इंतज़ार /क्या यही है प्यार ?... कभी ख़ुद से बातें करना /कभी हँसना गुनगुनाना /वो बात-बात पर रूठना /और देर तक मनाना /इज़हार इनकार /इक़रार तक़रार/क्या यही है प्यार ?... वो छुप-छुपकर देखना /दिख जाने पर छुपना /वो उनकी बेरुखी पर /बेवज़ह रोना-सिसकना /चल देना नाराज़ होकर /फिर मुड़ना इक बार /क्या यही है प्यार ?...एक अनजानी मंज़िल/एक अनचीन्ही राह /साथ चलने की हसरत /पास आने की चाह /वो बारिश का मौसम /और पेड़ों की आड़ /क्या यही है प्यार ?... वो नदी का किनारा /उसे देखना एकटक /हाथों में हाथ लेकर /टहलना दूर तक /सर्दी की धुप /गरमी की छाँव /क्या यही है प्यार ?... ... ... ... ... ... ... ... ... कभी लड़ने का साहस /कभी रुसवाई का डर /कभी घर में हंगामा /कभी दुनिया का कहर /दो मासूम दिल /और दुश्मन हज़ार /क्या यही है प्यार ?

गुरुवार, 12 फ़रवरी 2009

प्रेम और पूजा

प्रेम किया है मैंने /पूजा नहीं /जो अपने आपको /तुम्हारे कदमों में /गिरा दूँगी /साथ रहोगे /तो साथ दूँगी /अपनी मौत तक /चले जाओगे छोड़कर /तो तुम्हारा नाम /दिल की स्लेट से /मिटा दूँगी ।

बुधवार, 11 फ़रवरी 2009

वसंत में बरसात

सुबह-सुबह /मन कुछ उदास था /बदली मेरे साथ हो गई /कंत नहीं हैं पास मेरे तो /वसंत में /बरसात हो गई,/ भीगा मौसम /मैं भी भीगी /ना जाने क्या बात हो गई /कल तक मौसम खुशगवार था /और आज /बरसात हो गई।

मैं अकेली

क्यों जीवन के मोड़ पर /हर बार /छूट जाता है एक साथी /क्यों ममता का कोमल स्पर्श /मुझे नहीं मिला कभी /जिन्होंने देखे थे /मेरे भविष्य के लिए सपने /एक-एक कर छूटते गए सभी /रह गई मैं अकेली /शून्य में तैरती /सन्नाटों में बिखरती /...विधाता तूने मेरी नियति /कौन सी लेखनी से लिखी ?

मंगलवार, 10 फ़रवरी 2009

भूख से मरने वालों की ख़बर (1)

कल रात
बड़ी मुश्किल से टूटा
मेरे हाथ से रोटी का कौर
सब्जी मुँह में पड़ते ही
ज़हर सी लगी,
रेडियो में आ रही थी ख़बर
भूख से मरने वालों की ,
मेरी आँखों में पानी आ गया
और मुँह से निकली इक आह
कि हे ईश्वर,
तू या तो सबको भरपेट खाना देता
या मुझे देता सामर्थ्य
उनकी मदद करने की,
ये सोचते-सोचते मैंने
पूरा खाना खा लिया,
और मुझे मालूम है
कि मैं उसे पचा भी लूँगी ,
 ठीक उसी तरह
जैसे उस ख़बर को पचा लिया,
क्योंकि ...भूख से मरने वालों की ख़बर
हमारे लिए सिर्फ़ ख़बर है
जिसे हम सुनते हैं
अफ़सोस ज़ाहिर करते हैं
और भूल जाते हैं ।

रविवार, 8 फ़रवरी 2009

चलो मीठा सा गीत कोई गुनगुनाएं

जाके बीते ज़माने में आज फिर से /चलो बचपन की यादों को बीन लायें /भूलकर ज़िंदगी की परेशानियाँ /चलो मीठा सा गीत कोई गुनगुनाएं /.......चलो पलटें पुरानी किताबों को आज /बिछड़े यारों की फोटो को फिर से देखें ,/बंद हैं घर के बक्से में बरसों से जो /उन चिठ्ठियों और कार्डों को फिर से देखें ,/अपनी बगिया के फूलों को पानी डालें /छत पे जाकर कबूतर को दाना खिलाएं ,/चलो मीठा सा गीत कोई गुनगुनाएं ... ... /दम घुटता रहा साँस फूलती रही /पिछले दरवाजे को कब से खोला नहीं ,/रात में आँसू बनकर बहती है जो /बात दिल में रही कभी बोला नहीं ,/खोलकर आज दिल के दरवाजों को /ताजी हवा के झोकों में झूम जायें, /चलो मीठा सा गीत कोई गुनगुनाएं ... ।

शुक्रवार, 6 फ़रवरी 2009

औरत होने का सुख

भीगी आँखों के /धुंधले परदे के पीछे से /मैंने देखा था /उसकी भी आँखें /गीली थीं /पर वो ठहरा मर्द /रोता कैसे ?/ तो पी गया वो /अपने सारे आँसू/पर मैं रोई /रो -रोकर /अपने ख़त्म होते रिश्ते के /दर्द को मैंने /आँसुओं में बहा दिया /और ...पहली बार /अपने औरत होने का सुख /महसूस किया /रोना ,फूट-फूटकर रोना /यही तो औरतें / आज़ादी से कर पाती हैं /और शायद / इसी कारण /बड़ा से बड़ा दर्द / सह जाती हैं।

बुधवार, 4 फ़रवरी 2009

संस्कृति के पहरुए

संस्कृति रक्षा के नाम पर /युवतियों का सरेआम अपमान करने वालों /पहले भारतीय संस्कृति को जानो /तुम प्रेम का विरोध करते हो /तो जाओ अभिज्ञान शाकुंतलम पढ़ो/जो विश्व -प्रसिद्ध /उन्मुक्त प्रेम की गाथा है /'अमरुक -शतक 'पढ़ो /जिसका एक-एक छंद /प्रेमरस से भरी रसभरी है /और जो संस्कृत काव्यशास्त्रियों की /आँख का तारा है/ मदिरा का विरोध करते हो /तो पहले वेद पढ़ो /जहाँ सोम की देवता के रूप में /स्तुति की गई है /और .../शंकर भगवान् को /भंग -धतूरा चढ़ाना छोड़ दो /जाओ चुनाव लड़ो/सरकार बनाओ /और कर दो शराब -बंदी /पूरे राज्य में /सारे ठेकों के लाइसेंस /जब्त कर लो /जो भी करो /इस लोकतान्त्रिक देश में /सब जायज है /अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर /पर इसकी सीमा /तुम्हारी नाक के आगे/ख़त्म हो जाती है/... ...प्रेम तो मानव की स्वाभाविक प्रवृत्ति है /संस्कृति रक्षा के नाम पर /इस पावन भावना को /मत रोको /याद रखो /प्रेम करने वाले /आतंकवादी ,बलात्कारी ,या हत्यारे /नहीं होते /और इससे पहले /कि तुम्हारे हमलों कि प्रतिक्रिया में /वे ऐसे हो जाएँ /प्रेम पर पहरा लगना /बंद कर दो।

ग्लोबल वार्मिंग

संबंधों के बीच से /गरमी उड़ गई /उड़कर हवाओं में घुल गई /अब सुन रहे हैं वातावरण की /हो रही है ग्लोबल वार्मिंग /जिसके लिए दुनिया के ठेकेदार /कर रहे हैं मीटिंग /दुनिया को गर्म होने से कैसे बचाएं /सब के मन में यही सवाल है /पर उस ओर नहीं किसी का ध्यान है /कि जहाँ संबंधों में गर्माहट /जितनी कम है /वहाँ की हवा उतनी ही गर्म है /और चूँकि हवाओं के लिए /कोई सीमा नहीं / वे चल देती हैं उस ओर /जहाँ की हवा अभी ठंडी है / और संबंधों में गर्मी है /धीरे -धीरे ऐसे ही /धरती गर्म होती जायेगी /और... ... /उत्तरी ध्रुव पर पिघलने वाली बर्फ /संबंधों के बीच जम जायेगी ।