शुक्रवार, 13 अगस्त 2010

गंदी बातें

हमारे समाज मे
कुछ काम ऐसे होते हैं
जिन्हें करते सभी हैं
या करना चाहते हैं
पर उनके बारे में
बातें करना गंदी बात है,
कुछ काम ऐसे हैं
जिन्हें कोई नहीं करना चाहता है,
उनके बारे में...
सिर्फ बातें होती हैं
योजनाएं बनती हैं,
...
गंदी बातों की अजब ही फिलासफ़ी है
प्रैक्टिकल की बात करते हैं लोग
चटखारे ले-लेकर,
पर, थियरी की बातें करना गंदी बात है,
सावधानी की बात करना बुरा है
पर भूल हो जाने पर...
खबर बन जाती है
फतवे जारी होते हैं
नियम बनाए जाते हैं
उन पर गर्मागर्म बहसें होती हैं,
...
गंदी बातों की एक और खास बात है
कि उनमें औरतें ज़रूर होती हैं,
बिना औरतों के
कोई बात गन्दी नहीं हो सकती,
क्योंकि समाज में फैली हर गंदगी
औरतों से जुड़ी होती है,
फिर उसे फैलाया किसी ने भी हो...
...
आज़ाद औरत सबसे बड़ी गंदगी है,
वो हंसकर बोले तो बदचलन
न बोले तो खूसट कहलाती है,
पर वो...
सामान्य व्यक्ति कभी नहीं हो सकती है,
अकेले रहने वाली हर औरत
एक गंदी औरत है
और उसके बारे में
सबसे ज्यादा गंदी बातें होती हैं...

61 टिप्‍पणियां:

  1. आराधना ! क्या कहूँ मैं एक आइना सा दिखा दिया है तुमने ..या कहूँ कि सच्चाई को जिस का तिस लाकर दिखा दिया है .

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  2. क्या कहूँ रचना दिन व दिन पूर्वाग्रस्त हो जा रही है , नारीवाद कविता का मतलब ये तो नही होता , चिंतन की नितांत आवश्यकता ।

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  3. सोचने पर विवश करती रचना ....समाज के सत्य को सीधे शब्दों में उतार दिया है ...

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  4. @ मिथिलेश, मैं तटस्थ रहने का कोई भ्रम नहीं पालती. हाँ मैं पूर्वाग्रहग्रस्त हूँ. औरतों के कष्ट और दुखों के बारे में सोचती हूँ, उनकी परेशानियों के बारे में कविता लिखती हूँ, मैंने अपने प्रोफाइल में लिख रखा है कि मैंने नारी होने के नाते जो झेला, वही इस ब्लॉग पर लिखती हूँ... दूसरी बातों के लिए मेरा दूसरा ब्लॉग है...
    और चिंतन करते-करते तो बूढ़ी हो गयी हूँ, लोग पी.एच.डी. करके थक जाती हैं और मैं पोस्ट डोक्टोरल पढ़ाई कर रही हूँ. लगातार पढ़ रही हूँ और सीख रही हूँ, मुझे अपने से छोटों से भी सीखने में कोई परहेज नहीं है. अमरेन्द्र, हिमांशु, सभी मुझसे उम्र में छोटे हैं, पर सबसे मैंने कुछ ना कुछ सीखा है. और तुमसे भी बहुत कुछ सीखा है. तुम्हीं को देखकर और पढकर मुझे लग रहा है कि मुझे अभी बहुत कुछ पढ़ना है और चिंतन करना है.

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  5. samaj ke purushvadi mansikta ko tamacha jadti hai apki kavita.puruson ko apni soch badalani chayiye kyoki maa,bhahan,patani bhi aurat hain.

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  6. अरे सीखो सीखो रोका किसने है....गंदी बातें सीखो....छी छी कितना गंदा है...पर देखने में मजा है....तुम आह करो....हम कत्ल करने का हुक्म दे देगे....खबरदार कुछ बोला तो....अगर 55 फीसदी कुपोषित हो तो रहो....मैं फोटो का एलबम दिखा रहा हूं (जल्दी से) ये लडकी मेरी बहन है.....पन्ना पलटता हूं ..ये लड़की . अरे यार बम है...गोला है...मत पूछ....मेरे साथ थी कॉलेज में....पर साली भाव खाती थी....हीहीहीही(चटखारे ले रहा हूं) ये मेरे साथ मेरे ऑफिस में है....सबके साथ घुमती रहती है...कभी किसी के साथ कभी किसी के साथ....पर बॉस के लेवल से कम किसी के साथ नहीं..आगे बढ़ेगी कैसे..हैहै...(कुत्सित हंसी)

    अरे यार चलो क्या कहने लगे हम....इतना जानने के लिए पीजी पोस्ट दर पोस्ट पढ़नी पढ़ गई तुम्हें....हद है ....

    खैर चलूं कहीं कविता दिमाग में न घुस जाए ...

    टाटा बॉय

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  7. गंदी बातों की एक और खास बात है
    कि उनमें औरतें ज़रूर होती हैं,
    बिना औरतों के
    कोई बात गन्दी नहीं हो सकती,
    क्योंकि समाज में फैली हर गंदगी
    औरतों से जुड़ी होती है,
    फिर उसे फैलाया किसी ने भी हो...

    मार्मिक , कडवी , हतप्रभ करने वाली सच्चाई बयाँ कर दी है तुमने अपनी कविता में ...!

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  8. विचारणीय....

    वैसे गालिब दिल बहलाने को:

    आज कल हर गंदी वाली बात में औरत का होना जरुरी नहीं...नये जमाने के आदमी आदमी भी ...:)


    इतनी गंभीर बात पर वैसे मजाक नहीं करना चाहिये था मगर फिर भी..एक आयाम यह उभर कर आया तो बिन कहे रहा नहीं गया.

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  9. गंदी बातों की एक और खास बात है
    कि उनमें औरतें ज़रूर होती हैं,
    बिना औरतों के
    कोई बात गन्दी नहीं हो सकती,

    सिर्फ इतना ही कह सकता हूं कि ऊपर शिखाजी ने जो टिप्पणी की है वह सौ फीसदी सच है.
    सचमुच आइना दिखा दिया है आपने
    अब जिसका चेहरा भद्दा होगा वह आइने को तोड़ देगा या गाली देगा

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  10. सामान्य व्यक्ति कभी नहीं हो सकती है,
    अकेले रहने वाली हर औरत
    एक गंदी औरत है
    और उसके बारे में
    सबसे ज्यादा गंदी बातें होती हैं...

    बड़ा मार्मिक बात को इतने सहज ढंग कह सकने की आपकी क्षमता अद्भुत है!

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  11. असल में तो सारा मामला नजरिए पर ही निर्भर है न। गंदी और अच्‍छी बात की परिभाषा तय कौन करता है। इसमें दो मुख्‍य कारक मुझे लगते हैं। एक है हमारा समाज और दूसरा है हमारा नजरिया। हां यह सही है कि हम अपना नजरिया समाज में रहकर ही बनाते हैं।
    लेकिन वैज्ञानिक दृष्टिकोण भी किसी चिडि़या का नाम है। हमें कभी इस पर भी बात करनी च‍ाहिए।

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  12. गंदी बातों की एक और खास बात है
    कि उनमें औरतें ज़रूर होती हैं,

    आराधना इन गन्दी बातों को पनपने के लिए हर हवा पानी माफिक आती है पीठ पीछे लगने वाले ठहाके,या आँख दबा कर होने वाले इशारे... इनको आप अगर रोकने की कोशिश करो तो आप और ज्यादा इन विषयों में घसीट ली जाओगी ...

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  13. कविता के बारे में सिर्फ एक शब्द...सटीक...

    निर्मल हास्य के लिए ये भी पढ़ लीजिए...

    दो सहेलियां आपस में बातें कर रही थीं...

    पहली...ये लड़के अकेले में आपस में क्या बातें करते हैं...

    दूसरी...वहीं जो हम करती हैं...

    पहली...हाय राम...धत...इतनी गंदी बातें...

    जय हिंद...

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  14. ओर कमाल ये है के अकेली रहने वाली पर सबको "अवेलेबल" का बोर्ड टंगा भी दिखता है ....जिसे छूने से कोई गन्दा नहीं होता ....aryaa0

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  15. @ डॉ. अनुराग, आपकी बात सही है इसीलिये तो कहा है कि 'हँसकर बोले तो बदचलन है'

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  16. सामान्य व्यक्ति कभी नहीं हो सकती है,
    अकेले रहने वाली हर औरत
    एक गंदी औरत है
    और उसके बारे में
    सबसे ज्यादा गंदी बातें होती हैं...

    likhtee rahey bas yahii kahungi aur tag kaa kyaa haen jo daetey haen unko kyaa kehtey haen aap wo bhi kahey !!!!!!!

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  17. कुछ काम ऐसे होते हैं
    जिन्हें करते सभी हैं
    या करना चाहते हैं
    पर उनके बारे में
    बातें करना गंदी बात है,
    mukti....aise log samaj ke thekedaar hote hai..inki kathni aur karni mein fark hota hai aur aurat ko ye apne pair ki jooti samjhte hai...bahut accha likha hai..ya ye kehoon 100 aane sach likha hai...keep going :)

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  18. सच्चाई बया करती कविता पर अफ़सोस कि ये भी नासमझो को समझ नहीं आएगी वो अपनी ही कविता गायेंगे अपना ही ढोल बजायेंगे |

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  19. समाज के ऐसे पारम्परिक सोच पर सचमुच दुःख होता है -मगर फिकर नाट -सिंहनियों के नहिं लेहड़े ..हंसिनियों की नहिं पांत !

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  20. ऑफिस में महिला कर्मचारियों की उपस्थिति के बावजूद लोग नॉनवेज जोक्स सुनाने से बाज नहीं आते.. गन्दी बाते औरतो के लिए, औरतो से शुरू और औरतो पे ही ख़त्म हो जाती है.. एक लड़की जब किसी सड़क से गुज़रती है तो ना जाने कितनी एक्स रे मशीन्स ऑन हो जाती है.. ये वही मशीन्स होती है जिनके कंधे संस्कृति की रक्षा का बोझ उठाये झुके पड़े है..
    एनिवेज बातो से कोई खास फर्क पड़ता भी भी नहीं,, बहरो के सामने कितने भी नगाड़े बजा लो उन्हें ना सुनना है ना वे सुनेंगे..

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  21. आराधना जी. क्या कहूँ मैं ?
    बस इतना की - सटीक लिखा है

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  22. आज़ाद औरत सबसे बड़ी गंदगी है,
    वो हंसकर बोले तो बदचलन
    न बोले तो खूसट कहलाती है.

    खलता है ये, तमाचे सा लगता है..पर सच तो है, बिना लाग लपेट के.
    हो सकता है कई आयाम हों, कई तर्क दिए जाएँ...पर सच फिर भी सच है, और वो बिलकुल यही है.

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  23. गंदी बातें .... राजेश उत्‍साही जी से सहमत.

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  24. उफ़ आराधना, कितना कडवा सच परोस दिया।
    मेरी बिटिया भी पोस्ट डॉक कर रही है। आप भी कर रही हैं जानकर खुशी हुई।
    घुघूती बासूती

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  25. solh aane sach hai,ek akeli orat es samaj ko darati v hai.achi rachna hai.

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  26. आज के बराबरी वाले इस दौर में...
    ऐसी सोच!!
    मुक्ति जी....
    ’बुरी बात’
    वैसे सभी नारियों की टिप्पणी आश्चर्यजनक रूप से आपकी रचना का समर्थन कर रही हैं...
    ये हुई
    ’अच्छी’ बात.

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  27. स्वाधीनता दिवस पर हार्दिक शुभकामानाएं.

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  28. samaj ka aaina khada kar di aap ,bahut kuchh sochne par vivash kar di .ati sundar ,jai hind

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  29. bahut hi marmik rachna hai....nanga such utar diya aapne....poshoko ko nahi soch ko badalne ki zarrorat ha....bahut achha laga aapke blog par aakar:-

    kabhi fursat mile hamare blo par bhi aayie :-


    http://jazbaattheemotions.blogspot.com/
    http://mirzagalibatribute.blogspot.com/
    http://khaleelzibran.blogspot.com/
    http://qalamkasipahi.blogspot.com/

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  30. .
    हमारा समाज स्त्री को निगल जाना चाहता है ice-cream की तरह , जब हाथ में नहीं आती तो शुरू होती है जद्दोजेहद स्त्री को गन्दा साबित करने की।

    लेकिन क्या गन्दी मानसिकता वालों के चाहने से कोई स्त्री गन्दी हो सकती है भला ?

    करने दीजिये उन्हें गन्दी-गन्दी बातें।
    .

    जवाब देंहटाएं
  31. आदरणिया
    कुछ दिन पहले आप की ये कविता पढ़ी थी(याद नहीं लिंक कहां से मिला था) बहुत अच्छी लगी थी। परसों मेरे कॉलेज में सेक्स ऐजुकेशन पर एक लेक्चर रखा था(आसान नहीं था इस विषय पर लेक्चर रखना)लेक्चर की शुरुवात में विषय का परिचय देने के लिए हमने और बहुत सी बातें कहते हुए आप की इस कविता को पढ़ा था। पूरा हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज गया था। आशा कर रही हूँ कि मेरी इस टिप्पणी के माध्यम से वो प्रशंसा आप तक पहुंच रही है। बहुत ही सुंदर रचना है। आभार

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  32. मुक्ति जी
    बहुत विलंब से पहुंचने के लिए क्षमाप्रार्थी हूं ।

    लेकिन कविता पढ़ कर अफ़्सोस हुआ …
    काश ! संकुचित अवधारणाओं , पूर्वाग्रहों के उन्मूलन में समाज को आप जैसी विचारशील प्रबुद्ध नारी का सकारात्मक सहयोग मिला होता … ! काश !!
    मन विद्रोही पर मेरे कमेंट पर भी आपके प्रत्युत्तर की प्रत्याशा थी ।

    क्या पुरुष अपने लिए एकदम अनुकूल परिस्थितियां पाता है ?
    क्या पुरुष को भी पग पग पर समझौते नहीं करने पड़ते ?
    नारी , …ख़ासकर पढ़ लिख गई हो वह नारी , परिस्थितियों से समझौता करके अपनी ओर से सौहार्द एवं सहयोग का वातावरण निर्मित करने में भूमिका क्यों नहीं निभा पाती ?
    विखंडन का नारियल यहीं से फूटता प्रतीत नहीं होता ?!


    अकेले रहने वाली हर औरत एक गंदी औरत है आपकी कविता का यह स्टेट्मेंट , जो निश्चय ही समाज के पुरुष की ज़ुबान से ज़बरन कहलवाने का आपके नारी मन का प्रयास है -- एकदम एकतरफ़ा है ।
    आपने समाज की उन कुछ बाल विधवा हुई वृद्धाओं को शायद देखा ही नहीं , जिन्होंने ज़िंदगी के 5-5 6-6 दशक बाद भी अपने चरित्र पर एक धब्बा भी नहीं लगने दिया , जबकि मां- बाप , सास -ससुर के मरने के बाद वे पूरी ज़िंदगी अकेली ही रहीं ।
    नारी का स्वयं का चरित्र भी अर्थ रखता है ।
    बेशक , परिस्थितियां अनुकूल नहीं होतीं … लेकिन यह सच पुरुष के संदर्भ में भी इतना ही सच है ।

    देवियों ! माताओं ! बहनों !
    करबद्ध निवेदन है पूर्वाग्रहों से मुक्त होने के लिए !

    प्लीज़ ! अगली कविता में कोई सुखद स्मृति पढ़ने का अवसर दें न !
    हार्दिक शुभकामनाओं सहित …
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  33. मार्मिक,सच्चाई बया करती, सोचने पर विवश करती रचना

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  34. ये विडंबना ही है हमारे समाज की ... जो सबसे पूज्‍यनीय है ... संवेदनशील है शक्तिशाली है उसे हो गंदा बताते हैं ... पुरुष समाज का दोगलापन है ये .... बहुत अच्छी रचना है ...

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  35. अपनी रचना वटवृक्ष के लिए भेजिए - परिचय और तस्वीर के साथ
    '
    yah rachna bhijiye rasprabha@gmail.com per

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  36. री सखी, तू तो मेरे जैसी निकली !

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  37. वाह पहली बार पढ़ा आपको बहुत अच्छा लगा.
    आप बहुत अच्छा लिखती हैं और गहरा भी.
    बधाई.

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  38. कविता पढते पढते लगा हम कितने लचर और बेबस है की बस खुद को कौसते रहते है
    औरत अकेली हो यह भीड़ में वो बस औरत होती है
    माँ बेटी बीवीका तबका ले कर चलती रहती है
    सच तो यह है की पुरुष की हर गली औरत के जिस्म से ही गुजरती है
    फिर भी औरत ही मर्द को जन्मती है

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  39. अराधना जी मुझे भी ये लेबल मिल गया है अब मेरी पोस्ट के कारण …………क्या करें ये गन्दी औरतें अब

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  40. बेह्तरीन अभिव्यक्ति .आपका ब्लॉग देखा मैने और नमन है आपको
    और बहुत ही सुन्दर शब्दों से सजाया गया है लिखते रहिये और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.
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  41. मुक्ति, पूर्वग्रह जो न्याय के पक्ष में हो, समामाजिक बराबरी के पक्ष में हो, बेहज जरूरी है। इस लिहाज से हम सभी को पूर्वग्रही होना ही चाहिए।

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  42. कथन तो बिल्कुल खरा है .और सही भी कविता विचारऔर अनुभूति केभी स्तर पर बेलाग है

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  43. वैचारिक स्तर पर मैं केवल आपकी पोस्ट पर मुहर लगा सकता हूँ. कमी आपकी भी नहीं है. कविया, वर्तमान परिप्रेक्ष्य में बाजारू हो गई है. अस्तु ...

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  44. फेसबुक पर रविकुमार जी ने इसका लिंक शेयर किया तो पता चला इस कविता के बारे में, बहुत ही मार्मिक और हतप्रभ कर देने वाली कृति है.

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  45. फेसबुक शेयर से ही यहाँ पहुँचा हूँ।
    बेहतरीन कविता है।
    इस यथार्थ को लड़कियाँ और औरतें ही समाज के सामने रखेंगी तो ही बात कुछ आगे बढ़ेगी।
    छुई मुई बने रहने ने ही स्त्रियों को सर्वाधिक हानि पहुँचाई है।

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  46. मैं भी फेसबुक के ज़रिये ही यहाँ तक पहुंचा...ऐसी नज़्म लिखने के लिए दिल से मुबारकबाद !

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  47. आज़ाद औरत सबसे बड़ी गंदगी है,very nice explnation .thanks.

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  48. यह कविता है या समाज की गंदगी दिखाने वाला दर्पण जबरदस्त लिखा है। आज पढ़ पाया।

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  49. Aapki rachna me vyangya hai, ulahna hai, aakrosh hai, aur sabse badhkar Sachchai hai.

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  50. बहुत खूब. कङवा सच.

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