सोमवार, 17 जून 2013

औरतें और उनके रहस्यों की गठरी

ये तब की बात है जब औरतें
नहीं करती थीं बातें अपने बारे में
मन में रखी हुयी रहस्यों की गठरी में
हज़ार गांठें बाँध, रखे रहती थीं कसकर पकड़,

उनकी  खुद की कोई सोच भी तो न थी
कि इसका जिम्मा ले रखा था घर के बड़े-बूढों ने

तब भी कुछ औरतें झाँकती थीं
घर के झरोखों-खिड़कियों-रोशनदानों से बाहर
कि मिल जाय अपनी सी ही कोई और
बहू-बेटी-भतीजी-भाभी-चाची
जिसे दिखा सकें वो अपनी गठरी में रखी कुछ नायाब चीज़ें,
जिनके बारे में कोई और कुछ भी नहीं जानता

यूँ तो औरतों का ज़ोर से हँसना भी मना हुआ करता था
और बिन बताए कहीं आने-जाने पर भी थी पाबंदी
उन्हें पहनाए गए थे- कमरबंद-पायल-पाजेब-चूडियाँ-कंगन और तमाम गहने
ज्यों हम बाँधते हैं- गाय-बैल-भैंसों के गले में घंटियाँ
कि उनके आने-जाने का पता चलता रहे
उनके मालिकों को

तब भी कुछ औरतें हँस ही लेती थीं
मुँह को दबाकर हथेलियों से,
और अपने ताम-झाम के साथ पहुँच ही जाती थीं
घर की छत-आँगन-देहरी या दालान पर
घूँघट को दबाये हुए दाँतों से,
झीनी से साड़ी के पीछे से
कोशिश करतीं थीं दुनिया को देखने की,

घर के बाहर झाँकने वाली ऐसी औरतों को
कहा जाता था- निर्लज्ज और बेहया
कुछ को दे दी जाती थी उपाधियाँ-
कुलटा-कुलच्छिनी-कलमुँही-कुजात की भी,

ज़्यादा हँसने वाली औरतों को
नहीं करती थीं घर की दूसरी औरतें भी पसंद,
उन्हें आता था गुस्सा कि 'वह' कैसे हँस सकती है-
निश्चिन्त और निर्द्वन्द्व ?
जबकि ऐसा करने की
उनकी हिम्मत नहीं होती थी कभी,

जिन  औरतों को दी जाती थीं ऐसी उपाधियाँ
उन्हें समझ में नहीं आता था
कि उन्होंने गलत क्या किया?
(क्योंकि उनको तो सोचने की भी नहीं थी इजाज़त
कि क्या ठीक है और क्या गलत?)

वो नहीं सोचती थीं कि उनके साथ हो रहा है कुछ गलत
या कि वे करने वाली हैं कोई 'अनुचित काम'
तोड़ने वाली हैं कोई नियम
या उल्लंघन कर रही है परम्पराओं का,
वे तो बिन सोचे-समझे और विचारे
कर बैठती थीं- "अपने दिल का कहा"
और बदनाम हो जाती थीं,

तब भी उनके मन में रखी रहस्यों की गठरी
खुल नहीं पाती थी किसी के भी सामने,
कोई नहीं जानता था कि ऐसा क्या है उसके अन्दर
जो न सोचने-समझने वाली औरतों में भी
भर देता है साहस 'अपने दिल का कहा' करने का
जबकि पुरुष भी ऐसा करने की हिम्मत कम ही कर पाता है

लाख कोशिशें की गयीं जानने की वह रहस्य
लिखी गयीं हज़ारों किताबें
किये गए सम्मेलन-गोष्ठियाँ-सेमीनार
लेकिन सब बेकार,
नहीं निकल पाया कोई निष्कर्ष,
न बन पाया कोई सिद्धांत

आज भी लोग परेशान से लगाते रहते हैं अनुमान कि क्या है उस गठरी में
जो छिपी है औरतों के अन्तस् में
और लगती जा रही हैं जिसमें गाँठों पर गाँठें

मुस्कुराती हैं निर्लज्ज और बेहया औरतें
(क्योंकि मुस्कुरा सिर्फ वही सकती हैं)
जबकि जानती हैं सभी स्त्रियाँ उनकी गठरी का रहस्य
इसीलिये
बिना कहे सभी औरतें जानती हैं सभी औरतों के दिल की बातें
और यह भी कि 'वह' क्या है, जो करा ही देता है
हर औरत को कभी न कभी 'दिल का कहा,'

निर्लज्ज औरतें इसे स्वीकार करती हैं
बाकी  सब रह जाती हैं चुप








22 टिप्‍पणियां:

  1. बेहतरीन कविता।
    औरतों के रहस्य जानने के लिए औरत होना पड़ता है खुद।
    क्या शरत भी औरत हो गए थे?

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  2. Anuradha Chaturvedi. My friend I always loved your uncompromising attitude and creativity. By the way why no mention of name in the poem?

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  3. क्या अराधना जी....आप भी न बड़ी निर्लज्ज हैं...ऐसी बातें कहीं कहनी चाहिए....हंसने पर पाबंदी में ढील क्या दी..आप तो गठरी में बरसों पड़ी सनातन सोच निकाले जा रही हैं..हां नहीं तो....

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  4. मेरे अंदर एक स्त्री मन रहता है।
    मेरे अंदर एक स्त्री मन रोता है।

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  5. मेरे अंदर एक स्त्री मन रहता है।
    मेरे अंदर एक स्त्री मन रोता है।

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  6. पुरुष ऐसा करने की हिम्मत कम ही कर पाता है

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  7. hansi aur pyar sabke samajh mein nahin aata. jo akaaran hee hansane se parhez karte hain, unhein kavitayen bhi nahi padhani chahiye. Aap age is baat par bhi kuchh likhein, achchha rahega.

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  8. औरतों के मन की बात !! सुंदरतम !! निर्लज्ज बनना पड़ेगा !!

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  10. तब भी उनके मन में रखी रहस्यों की गठरी
    खुल नहीं पाती थी किसी के भी सामने,
    कोई नहीं जानता था कि ऐसा क्या है उसके अन्दर
    जो न सोचने-समझने वाली औरतों में भी
    भर देता है साहस 'अपने दिल का कहा' करने का
    जबकि पुरुष भी ऐसा करने की हिम्मत कम ही कर पाता है
    . यूँ ही सबके सामने अपने मन का रहस्य खोलना हितकर कहाँ है. ।
    इसलिए सही कहा है आपने ..
    भर देता है साहस 'अपने दिल का कहा' करने का
    बहुत बढ़िया ..

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  12. बुलेटिन ब्लॉग का शुक्रिया कि इस पोस्ट पर नज़र चली गई.... एक स्त्री के रहस्यमयी मन की खूबसूरत अभिव्यक्ति...

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  13. हाल के दिनों में पढ़ी गई बेहतरीन कविताओं में एक.. इसके बाद कोई कविता नहीं डाली? या कहीं और लिख रही हैं?

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