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शनिवार, 11 जुलाई 2009

महानगर

मन घबराता है,
समझ में नहीं आता कहाँ जायें ?
महानगर के आकाश में
चाँद भी साफ नहीं दिखता,
जिसे देखकर कोई
कविता लिखी जाये.

गुरुवार, 22 जनवरी 2009

भूखा कवि

सच ही कहा है किसी कवि ने /कि भूखे को चाँद /रोटी का टुकड़ा नज़र आता है /और तारे दिखते हैं /चाँदी के सिक्कों जैसे /पर भूखे के लिए /चाँद में रोटी की कल्पना करने वाला /भूखा कवि /ख़ुद चाँद में /अपनी प्रेमिका की छवि /देखकर रोता है /इसीलिए कवि , कवि है /और वह दुनिया से /जुदा होता है .