प्रेम लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
प्रेम लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

शुक्रवार, 29 अप्रैल 2011

रिश्ते टूटते हैं प्यार नहीं टूटा करता

सोचती हूँ हम दोनों के बीच
जो था वो था भी कि नहीं
ये कैसा खालीपन है
इस पार से उस पार तक
सूखी पहाड़ी नदी पर पसरे रेत सा
सफ़ेद, सफ़ेद और सफ़ेद

यूँ तो खालीपन पहले भी था
पर कुछ चीज़ों से भरा-भरा
कुछ चुहल भरी बातें
कुछ मिस्री घुली यादें
उनींदी आँखों के कुछ रंग भरे सपने
दो दिलों में पलने वाले प्यार की खुराक
हम मानते थे
खालीपन ज़रूरी है प्यार के विस्तार के लिए

हम सोचते थे भर देंगे इस खालीपन को
लबालब अपने प्रेम से
और फिर दो किनारे मिल जायेंगे
इस पुल के सहारे-सहारे
पर सोचा हुआ होता है क्या कभी?
अब बस खालीपन है और कुछ भी नहीं
उस पार किसी के होने की आस तक नहीं

कभी लगता है सब भ्रम था
या कि एक रात का सुन्दर लंबा सपना
पर नहीं, भ्रम नहीं, था ये शाश्वत सत्य
एक किनारे वाली इस रेत की नदी में
डूब-डूब जाता है मन, ढूँढने को पुरानी बातें
पुल टूट गया तो क्या
प्यार तो बाकी है अब भी कहीं
मेरे दिल के किसी कोने में मौजूद,

सुकून है अब बस
किसी से मिलने की बेचैनी नहीं
बिछड़ने का डर भी नहीं
कभी-कभी किसी रिश्ते का टूटना
कितनी राहत दे जाता है
क्योंकि प्यार तब भी रहता है
रिश्ते टूटते हैं
प्यार नहीं टूटा करता.

रविवार, 21 फ़रवरी 2010

कौन सी भूख ज़्यादा बड़ी है???

प्रिय तुम्हारी बाहों में
पाती हूँ मैं असीम सुख,
भूल जाना चाहती हूँ
सारी दुनियावी बातों को,
परेशानियों को,
फिर क्यों ??
याद आती है वो लड़की
चिन्दी-चिन्दी कपड़ों में लिपटी
हाथ में अल्यूमिनियम का कटोरा लिये
आ खड़ी हुई मेरे सामने
प्लेटफ़ार्म पर,
मैंने हाथ में पकड़े टिफ़िन का खाना
देना ही चाहा था
कि एक कर्मचारी
उसका हाथ पकड़कर
घसीट ले गया उसे बाहर
और वो रिरियाती-घिघियाती रही
"बाबू, रोटी तो लइ लेवै दो,"
मैं कुछ न कर पायी.
... ...
क्यों याद आता है वो लड़का
जो मिला था हॉस्टल के गेट पर
चेहरे से लगता जनम-जनम का भूखा
अपनी आवाज़ में दुनिया का
दर्द समेटे
सूखे पपड़ियाए होठों से
"दीदी, भूख लगी है"
बड़ी मुश्किल से इतना बोला
मेरे पास नहीं थे टूटे पैसे,
पचास का नोट कैसे दे देती,
मैं कुछ न कर पायी
... ...
ये बेचैनी, ये घुटन
कुछ न कर पाने की
सालती है मुझे अन्दर तक
और मैं घबराकर
छिपा लेती हूँ तुम्हारे सीने में
अपना चेहरा,
आराम की तलाश में,
पर दिखती हैं मुझे
दूर तक फैली मलिन बस्तियाँ,
नाक बहाते, गन्दे, नंगे-अधनंगे बच्चे,
उनको भूख से बिलखते,
आधी रोटी के लिये झगड़ते,
बीमारी से मरते देखने को विवश
माँ-बाप.
... ...
तुम सहलाते हो मेरे बालों को,
और चूम के गालों को हौले से
कहते हो कानों में कुछ प्रेम भरी
मीठी सी बातें,
पर सुनाई देती हैं मुझे
कुछ और ही आवाज़ें
"दीदी भूख लगी है"
"बाबू रोटी तो लइ लेवै दो"
"दीदी भूख लगी है"
गूँजती हैं ये आवाज़ें मेरे कानों में
बार-बार, लगातार,
वो जादुई छुअन तुम्हारे हाथों की
महसूस करती हूँ, अपने शरीर पर
और सोचती हूँ
कौन सी भूख ज़्यादा बड़ी है???

मंगलवार, 9 फ़रवरी 2010

अनछुई कली

जनवरी में मेरे इस ब्लॉग को एक वर्ष पूरे हो गये हैं. मेरे लिये सबसे अच्छी बात यह रही कि इस बीच बहुत से सुधीजनों से परिचय हुआ, अनेक लोगों से प्यार और स्नेह मिला. मुझे लगा जैसे ब्लॉगजगत मेरा एक परिवार बन गया हो, हालांकि अभी मुझे कम लोग ही जानते हैं, पर फिर भी, जो जानते हैं, अच्छी तरह से जानते हैं.
मैंने यह ब्लॉग आरंभ किया था अपनी उन भावनाओं को व्यक्त करने के लिये, जो मैंने एक लड़की होने के नाते अनुभव की हैं. इसलिये मेरी इन कविताओं में साहित्य से कहीं अधिक सामाजिक सरोकार की प्रधानता है, शिल्प से अधिक भाव की प्रमुखता है.
आज मैं एक साल पहले पोस्ट की गयी अपनी पहली कविता को दोबारा पोस्ट कर रही हूँ.

तुमने... मेरी ठोड़ी को
हौले से उठाकर कहा,
"अनछुई कली हो तुम! "
मैं चौंकी,
ये झूठ तो नहीं...
नहीं, तन और मन से
पवित्र हूँ मैं,
मैं कली हूँ अनछुई
और तुम भँवरे,
मैं स्थिर तुम चंचल,
प्रेम की राह में दोनों बराबर,
तो मैं ही अनछुई क्यों रहूँ ?
भला बताओ...
तुम्हें अनछुआ भँवरा क्यों न कहूँ ?

गुरुवार, 4 फ़रवरी 2010

अम्मा के सपने

मेरी अम्मा
बुनती थी सपने
काश और बल्ले से,
कुरुई, सिकहुली
और पिटारी के रूप में,
रंग-बिरंगे सपने...
अपनी बेटियों की शादी के,

कभी चादरों और मेजपोशों पर
काढ़ती थी, गुड़हल के फूल,
और क्रोशिया से
बनाती थी झालरें
हमारे दहेज के लिये,
खुद काट देती थी
लंबी सर्दियाँ
एक शाल के सहारे,

आज...उसके जाने के
अठारह साल बाद,
कुछ नहीं बचा
सिवाय उस शाल के,
मेरे पास उसकी आखिरी निशानी,
उस जर्जर शाल में
महसूस करती हूँ
उसके प्यार की गर्मी...

बुधवार, 20 जनवरी 2010

विश्वास

जब-जब तुमने कहा
"तुम मेरी हो"
मुझे लगा
मैं चीज़ हूँ कोई

जब-जब तुमने कहा
"मैं तुम्हारा हूँ"
मैंने महसूस किया
एहसान कर रहे हो तुम

और जब तुमने कहा
"हम बने हैं एक-दूजे के लिये"
मुझे ये प्यार नहीं
व्यापार लगा

इतने बरस बाद भी
मुझे तुम्हारे प्यार पर
विश्वास क्यों नहीं?

बुधवार, 6 जनवरी 2010

पूर्ण समर्पण

प्रिय, तुमने कहा था मुझसे
कि तुम मुझको
पाना चाहते हो
पूरी तरह से
तब मैं
तुम्हारे "पूरी तरह से" का
मतलब नहीं समझ पायी थी
अब जान गयी हूँ
मैं तैयार हूँ
कर दूँगी मैं
पूर्ण समर्पण
दे दूँगी तुमको ये तन
इसमें क्या रखा है
कर सकती हूँ
तुम पर अर्पण
सौ-सौ जीवन
क्योंकि मैंने
तुमको चाहा था
और चाहती हूँ
पूरी तरह से
पर नहीं था मालूम मुझे
कि तुमने मुझको
आधा ही चाहा था
और पूरी तरह से
तब चाहोगे
जब तुम मुझको
मेरी देह सहित
"पूरी तरह" से पा जाओगे.

बुधवार, 23 दिसंबर 2009

तुम्हारा आना

(एक सच्चा प्यार किस तरह से किसी के अन्दर पूरी इन्सानियत के प्रति आस्था पैदा कर देता है...इस बात को व्यक्त करती सात साल पहले लिखी एक कविता...)

मेरी ज़िन्दगी में तुम्हारे आने से
कुछ बदल गया है
बदल गये हैं गीतों के मायने
वो मन की गहराइयों तक
उतरने लगे हैं
देने लगे हैं आवाज़
मेरी भावनाओं को
मानो मेरी ही बातें
कहने लगे हैं,
बदल गया है मौसम का अन्दाज़
वो बातें करता है मुझसे
चिड़ियों के चहकने से
बारिश के रिमझिम से
मेरे साथ हँसता-रोता है मौसम
पहले सा नहीं रहा,
बदल गयी मेरे पाँवों की थिरकन
मेरा बोलना, मेरा देखना
मैं खुद को ही अब
पहचान नहीं पाती
सब बदल गया है,
मेरी ज़िन्दगी में तुम्हारे आने से
कुछ नया हुआ है
पहले की तरह अब
नहीं लगता डर मुझे
पुरुषों पर
कुछ-कुछ विश्वास हो चला है.

सोमवार, 30 नवंबर 2009

औरत पागल होती है (emotional fool)

तुमने नहीं किया वादा
ज़िन्दगी भर साथ निभाने का
फिर भी उसने
तुम्हारा साथ दिया,
प्यार करता हूँ
ये भी नहीं कहा तुमने
पर उसने शिद्दत से
तुम्हें प्यार किया
तुमने नहीं कहा
लौट के आने के लिये
तब भी उसने
इन्तज़ार किया
मिल गया तुम्हें कोई और साथी
पर उसे तुमसे शिकायत नहीं
अब भी वह
आस लगाये बैठी है
कि तुम कभी तो
कह दो उससे
कि तुमने
एक पल के लिये सही
एक बार उसे प्यार किया
मैं खीझ जाती हूँ
उसकी दीवानगी पर
धोखे पर धोखा खाती है
पर प्रेम में पागल हुई
जाती है
फिर सोचती हूँ
कि ये पागलपन न होता
तो कितने दिन चलती दुनिया,
छली पुरुष से त्रस्त
ये सृष्टि
औरतों के प्यार पर ही तो टिकी है
धोखा खाती है
और प्यार करती है
दर्द सहती है
और सृजन करती है
हाँ,
औरत पागल होती है
दीवानी होती है.

सोमवार, 27 अप्रैल 2009

ओस

गीली रात में उतरती है
फूलों पर ओस
हौले से छूकर उसे मुस्कुराती है
पंखुरी बिठा लेती है
अपनी पीठ पर उसे
और धीरे-धीरे-झूला झुलाती है
प्रेम का पावन रूप
पल्लवित होता है
ऐसी ही निःशब्द विभावरी में
जब पेड़ों के झुरमुट से
चाँदनी झर-झर के आती है

शनिवार, 14 फ़रवरी 2009

प्यार क्या है (वैलेंटाइन डे पर विशेष )

(वैलेंटाइन डे मनाना चाहिए या नहीं मैं इस विवाद में नहीं पडूँगी . मुझे जो त्यौहार अच्छा लगता है मना लेती हूँ .ये तो रही मेरी बात .समाज के लिहाज से इस बहाने प्रेम जैसे वर्जित विषय पर हमारे यहाँ चर्चा हो जाती है ,ये एक सकारात्मक बात है .इसलिए मैं भी एक कविता लिख रही हूँ ,जो प्रेमियों को पसंद आएगी .कविता लम्बी है ,अतः अंशतः ही छाप रही हूँ।... ... ... ... ... ... ... एक भड़कता शोला /एक ठंडी आग /एक दर्दीली खुशी /एक खुशनुमा दर्द /फूलों की खुशबू /काँटों का हार /क्या यही है प्यार ?/...एक चुभती नज़र /एक मीठी मुस्कान /एक भोली सी हँसी /एक आँसुओं का उफान /शाम का धुंधलका /सुबह का ख़ुमार /क्या यही है प्यार? /... कभी रंगीनियों की महफ़िल /और महफ़िल में तन्हाई /कभी मिलना किसी का /और मिलन में जुदाई /विरह का पतझड़ /मिलन की बहार /क्या यही है प्यार ?... कभी बातें ही बातें /कभी चुप बैठे रहना /कभी सब कुछ कह जाना /कभी कुछ भी न कहना /उनकी एक झलक को /घंटों इंतज़ार /क्या यही है प्यार ?... कभी ख़ुद से बातें करना /कभी हँसना गुनगुनाना /वो बात-बात पर रूठना /और देर तक मनाना /इज़हार इनकार /इक़रार तक़रार/क्या यही है प्यार ?... वो छुप-छुपकर देखना /दिख जाने पर छुपना /वो उनकी बेरुखी पर /बेवज़ह रोना-सिसकना /चल देना नाराज़ होकर /फिर मुड़ना इक बार /क्या यही है प्यार ?...एक अनजानी मंज़िल/एक अनचीन्ही राह /साथ चलने की हसरत /पास आने की चाह /वो बारिश का मौसम /और पेड़ों की आड़ /क्या यही है प्यार ?... वो नदी का किनारा /उसे देखना एकटक /हाथों में हाथ लेकर /टहलना दूर तक /सर्दी की धुप /गरमी की छाँव /क्या यही है प्यार ?... ... ... ... ... ... ... ... ... कभी लड़ने का साहस /कभी रुसवाई का डर /कभी घर में हंगामा /कभी दुनिया का कहर /दो मासूम दिल /और दुश्मन हज़ार /क्या यही है प्यार ?

गुरुवार, 12 फ़रवरी 2009

प्रेम और पूजा

प्रेम किया है मैंने /पूजा नहीं /जो अपने आपको /तुम्हारे कदमों में /गिरा दूँगी /साथ रहोगे /तो साथ दूँगी /अपनी मौत तक /चले जाओगे छोड़कर /तो तुम्हारा नाम /दिल की स्लेट से /मिटा दूँगी ।