गीली रात में उतरती है
फूलों पर ओस
हौले से छूकर उसे मुस्कुराती है
पंखुरी बिठा लेती है
अपनी पीठ पर उसे
और धीरे-धीरे-झूला झुलाती है
प्रेम का पावन रूप
पल्लवित होता है
ऐसी ही निःशब्द विभावरी में
जब पेड़ों के झुरमुट से
चाँदनी झर-झर के आती है
सादर श्यामल सुमन 09955373288 मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं। कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।। www.manoramsuman.blogspot.com shyamalsuman@gmail.com
acchhi rachana........
जवाब देंहटाएंkuchh achchhi rachana padhane ko mili.
कम शब्दों में बेहतरीन प्रस्तुति। वाह।।
जवाब देंहटाएंसादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
बहुत सुन्दर रचना है बधाई।
जवाब देंहटाएंलाजवाब कविता
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तख़लीक़-ए-नज़र । चाँद, बादल और शाम । गुलाबी कोंपलें । तकनीक दृष्टा