हाँ, ये सच है कि भगवानों ने बनाए हैं तमाम नियम
कि करना चाहिए किसको, कब, कहाँ और क्या?
लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो बनाते हैं भगवानों को
मूर्तियों में ढालते है उन्हें।
लोग आते हैं और खरीदते हैं ऊंचे दामों पर
फिर सजाते हैं शहर के पक्के घरों या भव्य देवालयों में
लाद देते हैं उन्हें सोने-चाँदी के गहनों से
चढ़ाते हैं लाखों का चढ़ावा और खिलाते हैं छप्पन भोग।
लेकिन जो लोग बनाते हैं भगवानों की मूर्तियाँ
पता नहीं मिलती है उन्हें दो वक्त की रोटी भी या नहीं
पता नहीं वे दुबारा देख पाते हैं अपनी निर्मितियों को या नहीं
देखी होती है सोने की चमक उन्होंने कभी अपनी ज़िंदगी में या नहीं
लोग, जो बनाते हैं मूरतें भगवानों की
रहा करते हैं वो शहर की तंग गलियों की झोपडियों में
उनके लिए भगवान् सिर्फ एक आइटम है
जिसे पूरा कर लिया जाना है एक निश्चित समय में...
वो पूजते नहीं उसे,
बनाकर एक ओर रख देते हैं।
लेकिन, एक बात तो पक्की है
कि जो लोग बनाते हैं भगवानों की मूरतें
वो भगवान् की भक्ति का सौदा नहीं करते
वो सौदा करते हैं अपने श्रम का, जो मूरत बनाने में खर्च हुआ।
उनके लिए भगवान् सिर्फ एक आइटम है
वो मुझसे, आपसे, सबसे ज्यादा धर्मनिरपेक्ष हैं।
कि करना चाहिए किसको, कब, कहाँ और क्या?
लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो बनाते हैं भगवानों को
मूर्तियों में ढालते है उन्हें।
लोग आते हैं और खरीदते हैं ऊंचे दामों पर
फिर सजाते हैं शहर के पक्के घरों या भव्य देवालयों में
लाद देते हैं उन्हें सोने-चाँदी के गहनों से
चढ़ाते हैं लाखों का चढ़ावा और खिलाते हैं छप्पन भोग।
लेकिन जो लोग बनाते हैं भगवानों की मूर्तियाँ
पता नहीं मिलती है उन्हें दो वक्त की रोटी भी या नहीं
पता नहीं वे दुबारा देख पाते हैं अपनी निर्मितियों को या नहीं
देखी होती है सोने की चमक उन्होंने कभी अपनी ज़िंदगी में या नहीं
लोग, जो बनाते हैं मूरतें भगवानों की
रहा करते हैं वो शहर की तंग गलियों की झोपडियों में
उनके लिए भगवान् सिर्फ एक आइटम है
जिसे पूरा कर लिया जाना है एक निश्चित समय में...
वो पूजते नहीं उसे,
बनाकर एक ओर रख देते हैं।
लेकिन, एक बात तो पक्की है
कि जो लोग बनाते हैं भगवानों की मूरतें
वो भगवान् की भक्ति का सौदा नहीं करते
वो सौदा करते हैं अपने श्रम का, जो मूरत बनाने में खर्च हुआ।
उनके लिए भगवान् सिर्फ एक आइटम है
वो मुझसे, आपसे, सबसे ज्यादा धर्मनिरपेक्ष हैं।
सुन्दर कविता | आभार
जवाब देंहटाएंTamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
yaa to main bahut din baad yahaan aaya.. ya bahut din baad kavita kee or lauti hain...
जवाब देंहटाएंलोग, जो बनाते हैं मूरतें भगवानों की
रहा करते हैं वो शहर की तंग गलियों की झोपडियों में
उनके लिए भगवान् सिर्फ एक आइटम है
जिसे पूरा कर लिया जाना है एक निश्चित समय में...
वो पूजते नहीं उसे,
बनाकर एक ओर रख देते हैं।
ye hisa bahut umda hai..
हाँ, कविताएँ लिख नहीं पा रही हूँ. शिल्प पर मेहनत करने के बारे में सोचते-सोचते कविता ही लिखना बंद हो गया. फिर सोचा कि जब पहले कभी नहीं सोचा शिल्प के बारे में, तो अब क्या सोचना. लिखो और मस्त रहो.
हटाएंhehehe.. are likhte likhte aur padhte padhte hee shilp par mehnat ho jayegi... :)
हटाएंवाकई.....कोलकत्ता में माँ दुर्गा की मूर्तियाँ बनाने में तल्लीन कारीगरों को देख कुछ ऐसे ही ख़याल आते हैं....
जवाब देंहटाएंअनु
हाँ, उन्हीं का ख़याल मेरे दिमाग में भी था. आपके ब्लॉग पर सुबह टिप्पणी करना चाहती थी, लेकिन ब्लॉगर ही नहीं खुल रहा था. अभी थोड़ी देर में करती हूँ. वैसे आपके ब्लॉग को एक साल पूरा होने की बधाई यहीं दे देती हूँ :)
हटाएंकल २४/०२/२०१३ को आपकी यह पोस्ट http://bulletinofblog.blogspot.in पर लिंक की गयी हैं | आपके सुझावों का स्वागत है | धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
हटाएंbeautiful....
जवाब देंहटाएंमूर्तिकारों के लिए भगवान आइटम है .... मूर्तिकारों की रोज़ी रोटी ...गहन चिंतन
जवाब देंहटाएंमूर्तिकारों के लिए भगवान बस एक आइटम है ॥जिससे उनकी रोज़ी रोटी चलती है .... गहन चिंतन
जवाब देंहटाएंये कड़वा सच है....उनके लिए भगवान की मूर्ती आइटम ही है..या कहें कि कर्म जिसको पूरा करने के बाद वो इच्छा करता है चंद रुपयों की ताकि उसकी रोजी रोटी चल सके....
जवाब देंहटाएंभगवान और धर्मनिरपेक्षता.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर कविता.
लेकिन जो लोग बनाते हैं भगवानों की मूर्तियाँ
जवाब देंहटाएंपता नहीं मिलती है उन्हें दो वक्त की रोटी भी या नहीं ..... दो रोटी तो मुश्किल से मिलती है,पर बनानेवाले की तन्मयता ढांचे को सजीव कर देती है
लेकिन, एक बात तो पक्की है
जवाब देंहटाएंकि जो लोग बनाते हैं भगवानों की मूरतें
वो भगवान् की भक्ति का सौदा नहीं करते
वो सौदा करते हैं अपने श्रम का, जो मूरत बनाने में खर्च हुआ।
उनके लिए भगवान् सिर्फ एक आइटम है
वो मुझसे, आपसे, सबसे ज्यादा धर्मनिरपेक्ष हैं।---बहुत सुंदर कविता.
latest postमेरे विचार मेरी अनुभूति: मेरी और उनकी बातें
सुन्दर रचना। :)
जवाब देंहटाएंनया लेख :- पुण्यतिथि : पं . अमृतलाल नागर
बहुत प्रभावी जी ... पर ये भी सच है की वो धर्मनिरपेक्ष बस पेट की खातिर हैं ... पेट भर जाने के बाद उनकी सोच क्या होती होगी ...
जवाब देंहटाएंफिर भी सही सन्देश देने में सफल है ये रचना ...
बहुत ही लेकिन, एक बात तो पक्की है
जवाब देंहटाएंकि जो लोग बनाते हैं भगवानों की मूरतें
वो भगवान् की भक्ति का सौदा नहीं करते
वो सौदा करते हैं अपने श्रम का, जो मूरत बनाने में खर्च हुआ।
उनके लिए भगवान् सिर्फ एक आइटम है
वो मुझसे, आपसे, सबसे ज्यादा धर्मनिरपेक्ष हैं।---
सुन्दर रचना.बहुत बधाई आपको
जबलपुर में दुर्गापूजा पर मूर्तिकारों का चित्र जेहन में उभर आया...सुन्दर चित्रण!!
जवाब देंहटाएंमूर्तियों में भगवान को ढूँढते हुए लोग.. स्वार्थी होते लोग.. इंसानियत से दूर होते हुए लोग..
जवाब देंहटाएंगरीबो के बच्चे भी खाना खा सके त्योहारों में,
जवाब देंहटाएंतभी तो भगवान खुद बिक जाते है बाजारों में