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गुरुवार, 17 सितंबर 2009

सूखे फूलों को मत फेंको

सूखे फूलों को मत फेंको
हो सकता है इनमें से ही
बीज कोई धरती पर गिरकर
मिट्टी-पानी से मिलजुलकर
किसलय एक नया बन जाये
तरह-तरह के फूल खिलाये
सूने उपवन को महकाये
खत्म नहीं होती मिटकर भी
बीजों की ताकत को देखो
सूखे फूलों को मत फेंको

मंगलवार, 13 जनवरी 2009

कविताओं का उगना

पेड़ ,चाहे बबूल का ही क्यों न हो /पत्थर पर नहीं उगता /उसके लिए चाहिए ज़मीं ,रेतीली ही सही /और चाहिए थोड़ा सा पानी /कवितायें ,चाहे स्वप्नलोक की सैर कराने वाली हों /या कठोर यथार्थ पर लिखीं /नरम दिल से ही निकलती हैं /कविताओं के उगने के लिए /चाहिए थोड़ी मिट्टी/और थोड़ा पानी / चिलचिलाती धूप सही , गर्म हवा के थपेड़े भी /धूल भरे झंझावात /सूखा मौसम /औरत होने के ताने भी /दुनिया के इस रेगिस्तान में ख़त्म होती रिश्तों के बीच गरमी /पर इसके बाद भी /नहीं गई दिल की नरमी /मेरा मन अब भी है गीली मिट्टी /कविताओं के उगने के लिए तैयार ... ... ... ...