मैं क्या हूँ?? पता नहीं... अपनी खोज में लगी हुयी हूँ...शायद हम सभी खुद को ढूँढ़ने में लगे हुये हैं. ज़िन्दगी के किसी मोड़ पर, किसी से मिलकर या किसी घटना के समय, हमें खुद अपना ही अन्जाना चेहरा दिख जाता है और तब हम सोचते हैं कि क्या ये हम ही हैं?...तो कोई भी नहीं कह सकता कि वह है कौन? मैं नहीं जानती कि मेरी जीवन-यात्रा का गन्तव्य कहाँ है? पर, मैं ये जानती हूँ कि मुझे क्या करना है...और क्या नहीं करना है? तो कर्म कर रही हूँ...निरन्तर...
मैं बहुत सीधी हूँ. मतलब स्ट्रेट फ़ारवर्ड. मैं दुनिया के उन नमूनों में से एक हूँ, जो आजकल की दुनिया में भी सच्चाई, ईमानदारी, निष्ठा, प्रेम और विश्वास पर विश्वास करते हैं. मैं बहुत ईमानदार हूँ और भरसक झूठ बोलने से बचती हूँ. मुझे बनावटी और दोहरे चरित्र वाले लोग बिल्कुल नहीं पसंद हैं.
मैं समाज के लिये कुछ करना चाहती हूँ, मुख्यतः उन लोगों के लिये, जो अपने लिये नहीं कर सकते. मैं गाँव की औरतों के लिये कुछ करना चाहती हूँ क्योंकि मैंने देखा है कि आरक्षण, अनेक सामाजिक योजनाओं आदि की पहुँच अब भी वहाँ तक नहीं है.
शिक्षा- मैंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बी.ए., एम.ए. और डी.फिल. की उपाधि ग्रहण की. सम्प्रति जे.एन.यू. से पोस्ट डॉक्टोरल रिसर्च कर रही हूँ, नारी-सशक्तीकरण और स्मृतियों के सम्बन्ध के विषय में.
शिक्षा- मैंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बी.ए., एम.ए. और डी.फिल. की उपाधि ग्रहण की. सम्प्रति जे.एन.यू. से पोस्ट डॉक्टोरल रिसर्च कर रही हूँ, नारी-सशक्तीकरण और स्मृतियों के सम्बन्ध के विषय में.
रुचियाँ- मेरी रुचियाँ बहुत सी हैं. मुझे स्केचिंग और पेंटिंग (ऑयल, वाटर और फ़ैब्रिक) करना अच्छा लगता है, गाने सुनना और गाना, घर की सफाई और सजावट करना, घुमक्कड़ी, और सबसे अधिक पढ़ना और लिखना अच्छा लगता है. इसके अलावा फ़ोटोग्राफी करना अच्छा लगता है, पर कैमरा उधार लेना पड़ता है.
किताबें- हर तरह की किताबें मुझे अच्छी लगती हैं. किताबें देखकर मैं खुश हो जाती हूँ. मैंने अपने शोध के समय संस्कृत के लगभग सभी पुराने नाटक और साठ के लगभग आधुनिक नाटक पढ़े हैं. मुझे "अभिज्ञान शाकुन्तलम्" सबसे अधिक पसंद है. हिन्दी साहित्य पढ़ना अच्छा लगता है, पर समय ही नहीं मिलता. फिर भी कुछ किताबें पढ़ी हैं, जिनमें मुझे प्रेमचन्द की "गोदान" और"निर्मला" और श्रीलाल शुक्ल की "रागदरबारी" पसंद आयीं. मुझे शरतचन्द के उपन्यास बहुत अच्छे लगते हैं. पुष्पा मैत्रेयी, महाश्वेता देवी के भी कुछ उपन्यास अच्छे लगते हैं.
मुझे नारीवादी विचारधारा में रुचि है, मुख्यतः इस बात में कि महिला-सशक्तीकरण के इतने प्रयासों के बाद भी कौन से कारण हैं, जिनके कारण औरतों की स्थिति में अपेक्षित सुधार नहीं हो पा रहा है. मैं इसी विषय पर शोध करना चाहती हूँ और कर भी रही हूँ. तो इस समय इससे सम्बन्धित पुस्तकें पढ़ रही हूँ.
फ़िल्में- मुझे लगभग सारी पुरानी हिन्दी फ़िल्में पसंद हैं. विशेषकर गुरुदत्त, व्ही. शांताराम, बिमल राय, बी.आर.चोपड़ा, हृषिकेश मुखर्जी, बासु चटर्जी और गुलज़ार की फ़िल्में. हिन्दी की ऑफ़बीट फ़िल्में और आजकल के फ़िल्मकारों में आशुतोष गोवरीकर, प्रकाश झा, मधुर भंडारकर, विशाल भरद्वाज आदि की फ़िल्में. इसके अतिरिक्त हॉलीवुड की साइंस फ़िक्शन, सुपरनेचुरल हॉरर, रोमैंटिक कॉमेडी और कुछ ऐक्शन फ़िल्में अच्छी लगती हैं. मुझे पुरानी नायिकाओं में नूतन, मीना कुमारी और मधुबाला पसंद हैं. मेरे मनपसंद नायक हैं बलराज साहनी, दिलीप कुमार, संजीव कुमार, नसीरुद्दीन शाह और इरफ़ान खान
संगीत- पुराने फ़िल्मी गाने. विशेषतः मदन मोहन, नौशाद, एस.डी. बर्मन, ओ.पी.नैयर, सलिल चौधरी, रवी, हेमंत कुमार और खैय्याम के निर्देशन वाले गाने. मुझे मोहम्मद रफ़ी, एस.डी. बर्मन, तलत महमूद, हेमंत कुमार और मन्ना डे की आवाज़ बहुत पसंद है. गायिकाओं में गीता दत्त, शमशाद बेग़म, आशा भोंसले की आवाज़ें अच्छी लगती हैं. कुछ गाने सुरैया और मलिका-ए-तरन्नुम नूरजहाँ के गाने भी. इसके अतिरिक्त सूफ़ी (नुसरत, आबिदा बेग़म और कैलाश खेर), ग़ज़लें ( ग़ुलाम अली, फ़रीदा खानम और जगजीत सिंह) मलिका पुखराज के गाने भी पसंद हैं, विशेषकर उनकी आवाज़. वर्तमान में ए.आर.रहमान का संगीत अच्छा लगता है.
दीवानगी- मैं पपीज़ की दीवानी हूँ. जब हम छोटे थे तो कहीं भी पिल्ला देखते थे तो उसे घर उठा लाते थे. अब ऐसा नहीं कर सकती हूँ, पर फिर भी जहाँ भी पपी देखती हूँ, मेरे कदम ठिठक जाते हैं. इसके अलावा मैं क्रेज़ी हूँ स्टेशनरी की और प्राकृतिक दृश्यों की.
...शायद... इतना काफ़ी होगा मुझे समझने के लिये.