मर्ज़ी लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
मर्ज़ी लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2010

तुम्हारी मर्ज़ी

किसने कहा था
खोल दो खिड़कियाँ?
अब बौछारें पड़ेंगी
तो उनकी छींटें
भिगो देंगी घर के कोने,
हवाएँ आयेंगीं
और फड़फड़ायेंगे
डायरी के पन्ने,
कुछ तिनके, कुछ धूल,
कुछ सूखे पत्ते,
डाल से टूटकर आ जायेंगे
हवाओं के साथ अनचाहे ही,
ताज़ी हवा और रोशनी के लिये
ये सब तो
सहना ही पड़ेगा,
या फिर...
बंद कर लो खिड़कियों को,
और बैठे रहो भीतर
साफ़-सुथरे,
अकेले,
गुमसुम,
तुम्हारी मर्ज़ी.