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शनिवार, 22 सितंबर 2012

तुमने ही तो कहा था

हमें कहा गया कि कुछ भी करने से पहले
इजाज़त ली जाए उनकी
‘लड़कियाँ आज्ञाकारी होनी ही चाहिए’
किसी भी सूरत में,

हमने हर काम करने से पहले उनकी इजाज़त ली
ये बात और है कि किया वही जो दिल ने कहा
कि दिल और दिमाग
किसी और के कहने से नहीं चलते,
और कुछ 'सोचने' से पहले
इजाज़त लेने की बात भी नहीं थी।

हमें निर्देश दिया गया था
कि चलते समय ध्यान रखना
दो क़दमों के बीच का फासला
न हो एक फुट से ज्यादा
कि लड़कियाँ लंबी छलाँगें लगाती अच्छी नहीं लगतीं,  

हमने उनकी बात मानी
और उसी एक फुट के अन्दर
बसा ली अपनी दुनिया ,
कम से कम हमारी दुनिया अब
हमारे क़दमों के नीचे थी
और हमारे कदम भी ज़मीन पर।

जब हमने लिख दीं ये सारी बातें  
तो पकड़े गये
हम पर चला मुकदमा 'नियमों के उल्लंघन' का,
अपने ही विरुद्ध गवाही देने को बाध्य किया गया
जबकि ये बात संविधान के विरुद्ध थी,

पर हमने वो भी किया
अपने ही विरुद्ध गवाही दी,
और कहा कि सब कुछ काबू में था
जब तक हमने तुम्हारी हर बात मानी
अब, बात हद से आगे बढ़ गयी है,

अब तो मेरा ही अस्तित्व मेरी बात नहीं मानता,
अपने विरुद्ध जाने के लिए हमसे
तुमने ही तो कहा था।

बुधवार, 31 मार्च 2010

वो नहीं ’गुड़ियाघर’ की नोरा जैसी.

जब उसने
एक-एक करके
झुठला दिये
उसके सभी आरोप,
काट दिये उसके सारे तर्क,
तो झुंझलाकर वह बोला,
"औरतें कुतर्की होती हैं
अपने ही तर्क गढ़ लेती हैं
बुद्धि तो होती नहीं
करती हैं अपने मन की"

वो सोचने लगी,
काश...वो बचपन से होती
ऐसी ही कुतर्की...,
गढ़ती अपने तर्क
बनाती अपनी परिभाषाएँ
करती अपने मन की,
पर अब
बहुत देर हो चुकी
क्या करे ???
वो नहीं...
'गुड़ियाघर' की नोरा जैसी.

शुक्रवार, 25 दिसंबर 2009

अस्तित्व

मैं सोई थी
मीठे सपनों में
खोई थी
उस गहरी नींद से
जगा दिया
मैंने
अपने अस्तित्व को
तुममें मिला दिया था
तुमने
ठोकर लगाकर मुझे
मेरे अस्तित्व का
एहसास करा दिया.