मैं सोई थी
मीठे सपनों में
खोई थी
उस गहरी नींद से
जगा दिया
मैंने
अपने अस्तित्व को
तुममें मिला दिया था
तुमने
ठोकर लगाकर मुझे
मेरे अस्तित्व का
एहसास करा दिया.
अजब गजब हैं ग्राही ... अस्तित्व को अस्तित्व में विलीन करने का उपदेश भी दे देते हैं ! कृपया सुलाने वाले उपदेश से बचा ही जाय .. '' जागृति '' की कविता अच्छी लगी .... आभार ...
अस्तित्व को अस्तित्व में विलीन कर देने से निश्चित ही प्रेम एक उदात्त स्तर पर पहुँच जाता है और किसी भी ठोकर की गुंजाइश नहीं रह जाती. इस दृष्टि से यह बात ठीक है. पर प्रेम उस स्तर तक तब पहुँचता है, जब दोनों तरफ़ से ऐसा किया जाय. किसी एक तरफ़ से होने पर धोखे की गुन्जाइश रह जाती है. ख़ैर... ठोकर किसी को भी, कभी भी लग सकती है. ज़रूरत होती है, उसको सकारात्मक ढंग से लेने की और हिम्मत बनाये रखने की. ...और ठोकर लगने के डर से कोई प्रेम करना भी नहीं छोड़ सकता और प्रेम में समर्पण करना भी...
pyar ka aisa bhi anjaam!
जवाब देंहटाएंगजब...उम्दा रचना!
जवाब देंहटाएंअस्तित्व अस्तित्व मे विलीन कर दिजिए ठोकर नही लग सकती.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
अभी तो हैपी क्रिसमस !
जवाब देंहटाएंसादर वन्दे
जवाब देंहटाएंतुमने
ठोकर लगाकर मुझे
मेरे अस्तित्व का
एहसास करा दिया.
बहुत सुन्दर रचना!
रत्नेश त्रिपाठी
सुर्खरू होता है इन्सां ठोकरें खाने के बाद.
जवाब देंहटाएंअजब गजब हैं ग्राही ...
जवाब देंहटाएंअस्तित्व को अस्तित्व में विलीन करने का
उपदेश भी दे देते हैं !
कृपया सुलाने वाले उपदेश से बचा ही जाय ..
'' जागृति '' की कविता अच्छी लगी .... आभार ...
अस्तित्व को अस्तित्व में विलीन कर देने से निश्चित ही प्रेम एक उदात्त स्तर पर पहुँच जाता है और किसी भी ठोकर की गुंजाइश नहीं रह जाती. इस दृष्टि से यह बात ठीक है. पर प्रेम उस स्तर तक तब पहुँचता है, जब दोनों तरफ़ से ऐसा किया जाय. किसी एक तरफ़ से होने पर धोखे की गुन्जाइश रह जाती है. ख़ैर... ठोकर किसी को भी, कभी भी लग सकती है. ज़रूरत होती है, उसको सकारात्मक ढंग से लेने की और हिम्मत बनाये रखने की.
जवाब देंहटाएं...और ठोकर लगने के डर से कोई प्रेम करना भी नहीं छोड़ सकता और प्रेम में समर्पण करना भी...
कविता और वक्तव्य दोनों को संयुक्त करके देख रहा हूँ ।
जवाब देंहटाएंआभार ।
मन खुश हो गया -कविता और टिप्पणी से!
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