चारों तरफ़ सन्नाटा है
हालाँकि शोरगुल भी है
नारे भी हैं
चीखती-चिल्लाती आवाज़ें भी हैं
फिर भी सन्नाटा है
इसलिये कि
आवाज़ें नहीं उठतीं सबके लिये
उठती हैं सिर्फ़ अपने लिये,
इसलिये कि
कोई आवाज़
नहीं उठती उनके खिलाफ़
जिन्होंने खरीद लिया है
सभी की आवाज़ों को
अलग-अलग तरीकों से,
हम सभी की आवाज़ें
बिक गयी हैं
किसी न किसी के हाथों
हम सभी हो गये हैं गूँगे
और बेआवाज़
इसीलिये चारों तरफ़
सन्नाटा ही सन्नाटा है.
विडम्बना है कि शोर में भी सन्नाटा है । बाजार में सब बिकाऊ है ।
जवाब देंहटाएंहम सभी हो गये हैं गूँगे
जवाब देंहटाएंऔर बेआवाज़
इसीलिये चारों तरफ़
सन्नाटा ही सन्नाटा है.
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सही कहा!! अच्छी रचना!
हम सभी की आवाज़ें
जवाब देंहटाएंबिक गयी हैं
किसी न किसी के हाथों
आक्रोश पूर्ण अभिव्यक्ती ।
सन्नाटे का शोर ऐसे ही मन को जब मथता है और असहायता असह्य हो जाती है तो सुन्दर सी एक कविता निःसृत हो उठती है !
जवाब देंहटाएंआपकी कवितायेँ सरल शब्दों में ही जो वातावरण सृजित करती है पाठक उससे सहज ही संपृक्त हो उठता है ...यह क्षमता बहुत कम लोगो में है -आपसे आशाएं हैं !
अरविन्द जी ने सत्य कहा । सहज कविता का अर्थ-गौरव धारण करती हैं आपकी कवितायें ।
जवाब देंहटाएं"किसी न किसी के हाथों
हम सभी हो गये हैं गूँगे
और बेआवाज़
इसीलिये चारों तरफ़
सन्नाटा ही सन्नाटा है." - अदभुत अभिव्यक्ति । आभार ।
गहरे भाव लिए सुन्दर सन्देश पूर्ण रचना !
जवाब देंहटाएंबढ़िया रचना है।बधाई।
जवाब देंहटाएंहम सभी हो गये हैं गूँगे
जवाब देंहटाएंऔर बेआवाज़
वाकई सन्नाटा गहरा गया है
सन्नाटे से मै भी रूबरू हुआ समय मिले तो सन्नाटा तोडिये
http://www.ghazal-geet.blogspot.com/
muflis dk to me
जवाब देंहटाएंइसलिये कि
कोई आवाज़
नहीं उठती उनके खिलाफ़
जिन्होंने खरीद लिया है
सभी की आवाज़ों को
अलग-अलग तरीकों से,
एक इन्किलाब....एक आह्वान ...
एक जज़्बा,,,नेक, पाकीज़ा , सच्चा ...
कथया और शिल्प कि दृष्टी से भी
एक नायाब रचना
अभिवादन स्वीकारें
namaskaar .
actually,,, facing sm problem at blog while posting comments
would you be kind enough to paste this comment
at the apropriate place...?
अच्छा लिखा है।
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