शनिवार, 5 दिसंबर 2009

एक नारी की कविता

मेरी कविता
सायास नहीं बनायी जाती
भर जाता है जब
मन का प्याला
लबालब
भावों और विचारों से
तो निकल पड़ती है
अनायास यूँ ही
पानी के कुदरती
सोते की तरह
और मैं
रहने देती हूँ उसे
वैसे ही
बिना काटे
बिना छाँटे
मेरी कविता
अनगढ़ है
गाँव की पगडंडी के
किनारे पड़े
अनगढ़ पत्थर की तरह
आसमान में
बेतरतीब बिखरे
बादलों की तरह
जंगल में
खुद से उग आयी
झाड़ी के फूलों की तरह
अधकचरे अमरूद के
बकठाते स्वाद की तरह
मेरी कविता
नहीं मानना चाहती
शैली, छन्द और
लयों के बंधन
मेरी कविता
जैसी है
उसे वैसी ही रहने दो
सदियों से रोका गया है
बांध और नहरें बनाकर
आज
पहाड़ी नदी की तरह
ऊबड़-खाबड़ रास्तों पर
उद्दाम वेग से बहने दो
बनाने दो उसे
खुद अपना रास्ता
टूटी-फूटी भाषा में
जो मन में आये
कहने दो.

13 टिप्‍पणियां:

  1. आपने कविता में ही अपनी कविता की रचना - प्रक्रिया
    और विशेषता बता दिया ... अनगढ़ में ज्यादा नैसर्गिकता
    होती है ... यह अनगढ़ का गढ़ाव है ... इन सबका प्रमाण
    आपके द्वारा चुने गए बिम्ब हैं ...
    ...'' खुद से उग आयी
    झाड़ी के फूलों की तरह '' आदि ...

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  2. मन के भाव है...अनगढ बहाव हो या कुछ ओर...सच्चे भाव प्रभाव छोड़ ही जाते हैं.

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  3. मेरी कविता
    नहीं मानना चाहती
    शैली, छन्द और
    लयों के बंधन
    वाकई जब भावो के अनगढ बहाव मे से शब्द अंकुरित होते है तभी कविता बंनती है

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  4. मगर असली लयबद्धता ,छंदबद्धता ही तो नैसर्गिक है -सहज है -मन को अनुरक्त करती है !
    सुन्दर रचना !

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  5. जो सुन्दर है, वो अनगढ़ ही है । नैसर्गिक सौन्दर्य !
    कविता सच में भावों का सहज उच्छलन ही है । वर्डसवर्थ के समीप हैं हम कविता के बन जाने को लेकर - "a spontaneous overflow of powerful feelings."

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  6. खुद से उग आयी
    झाड़ी के फूलों की तरह
    अधकचरे अमरूद के
    बकठाते स्वाद की तरह
    मेरी कविता
    नहीं मानना चाहती
    शैली, छन्द और
    लयों के बंधन
    मेरी कविता
    वाह वाह बहुत ही सुन्दर बधाई

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  7. मन के सच्चे भाव ह्रदय पर छाप छोड़ते हैं. आपकी कविता भी अपना पूरा असर छोड़ती है.

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  8. बेहतर
    कविता बनती तो ऐसे ही है बस बनने के बाद जिसे अंग्रेज़ी में प्रूनिंग कहते हैं, उससे थोडा और संवर जाती है।

    जैसे गुलाब का पौधा उगता तो ऐसे ही है बेतरतीब बस माली उसमें थोडी काट-छांट कर देता है और वह पौधा बिना कुछ खोये और अधिक ख़ूबसूरत लगने लगता है वही कुछ रचना के साथ भी है। नैसर्गिकता को मारे बिना यह थोडी सी प्रूनिंग कविता को ख़ूबसूरत और पठनीय बना देती है।

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  9. भाव तो उमड़ते है लेकिन कविता को आकार देने के लिये तो श्रम करना ही पड़ता है ।

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  10. मेरी कविता
    नहीं मानना चाहती
    शैली, छन्द और
    लयों के बंधन
    मेरी कविता
    जैसी है
    उसे वैसी ही रहने दो

    सुंदर....अति सुंदर.....!!

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  11. सुन्दर! अमरेन्द्र की बात दोहराते हैं हम!

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