रविवार, 18 जनवरी 2009

वीभत्स

एक लड़की ही जान सकती है
कैसा होता है अनपेक्षित नज़रों को झेलना
चुभ उठी हों ज्यों
शरीर में हजारों सूइयाँ,
कैसा होता है अनचाहा स्पर्श
रेंग रहे हों जैसे लाखों बिच्छू
भूरे ,काले ,ज़हरीले...

घिन से भर उठता है मन
जब कभी भीड़ में
छू जाती हैं शरीर को, अनजाने पुरूष की उँगलियाँ,
गिजगिजाती बजबजाती छिपकली की तरह,
तब अपने ही शरीर का वह हिस्सा
लगने लगता है पराया
मन होता है काटकर फेंक दूँ
अजनबी पुरुष की छाया

सभी लड़कियाँ जिंदगी भर
सहती हैं ये घृणित पीड़ा
बसों में ,रेल में ,
भीड़ में ,अकेले में,
बाहर और घर में
अब मुझसे नहीं सहा जाता...

लेकिन शब्दों की सीमा होती है
इस घृणित अनुभव को
इससे वीभत्स शब्दों में
कहूँ तो कैसे ?

12 टिप्‍पणियां:

  1. bahut sahi baat kah di.. us pal ko bayaan nahi kiya ja sakta..man karta hai saamne wale ko goli maar dein..usse dardnaak sazaa ho to bataayen.. yah sab bahut jhela hai, aaj is rachna ne dil ki baat kah di..

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  2. रचना से मन में अजीब सी सिहरन पैदा हो गई ...सचमुच स्त्री को अव्यवस्थित माहौल और नालायक पुरुषों को बहुत झेलना पड़ता है ....काबिले तारीफ ....स्त्री को चुप नही बैठाना चाहिए सरे आम ऐसे लोगो से सबके सामने निपटना चाहिए .....तभी सुधरेंगे ...
    काबिले तारीफ कविता

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  3. इस गलीच जात का मैं भी इक हिस्सा हूँ...........कहते हुए भी शर्म आती है....सच.....!!

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  4. मगर क्या करूँ........सारी मर्द जात ही ऐसी है.........शायद मैं भी.........!!??मैं मेरा क्या करूँ....क्या करूँ.........क्या करूँ.........??!!

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  6. क्या कहा जाये-यथार्थ ही तो है. कितनी अजीब सी फीलिंग होती होगी एक महिला के मन में जो यह सब झेलती है.

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  7. आपकी सवेदना से सहमत हूं। पुरुष हूं, विशेष कहूंगा तो आत्मरक्षा मालूम पड़ेगी ।

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  8. वर्षा जी सामाजिक संरचना में सक्रिय भूमिका निभा रही आप सी ही एक सुंदर लड़की को मैं जानता हूँ उसे छूने की हिम्मत कोई नहीं करता क्योंकि उसके ये तेवर सिर्फ़ कागजों पर नहीं है. अनिल कान्त तो निरपेक्ष रहे मगर राजीव जी और हिमांशु जी ने स्वयं को न जाने क्यों उन शोहदों की कतार में खड़ा किया है जिनका प्रतिरोध ये सुंदर कविता करती है.

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  9. जब अति हो जाती है तो तेवर दिखाना ही पड़ता है, कितनी भी शालीन लड़की हो ऐसे समय में माँ दुर्गा का रूप धारण कर ही लेती है, जिंदगी से सबक लेने के लिए कहीं से तो शुरुआत करनी पड़ती है। पुरूष तो बदलेगा नही।

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  10. हाँ. यह स्वर और तेवर सहज और प्रभावी हैं. साफ़ बात बता दी गयी है बिना लाग लपेट के..
    अच्छा लगा ये आराधना.

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