बुधवार, 14 जनवरी 2009

मन विद्रोही

माँ कहती थी -ज़ोर से मत हँस
तू लड़की है,
धीरे से चल
अच्छे घर की भली लड़कियाँ
उछल -कूद नहीं करती हैं
मैं चुप रहती
माँ की बात मान सब सहत,
लेकिन अड़ियल मन विद्रोही
हँसता जाता ,चलता जाता
कंचे खेलता ,पतंग उड़ाता
डोर संग ख़ुद भी उड़ जाता
तुम लड़के हो,
तुम क्या जानो
कैसे जीती है वो लड़क,
जिसका अपना तन है बंदी
लेकिन अड़ियल मन विद्रोही .

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