ज़िन्दा रहने के लिए /मनुष्य के शरीर को /चाहिए ऊर्जा /ऊर्जा के लिए भोजन / और भोजन के लिए ईंधन/ईंधन के लिए है लकड़ी की ज़रूरत /और इसीलिये /हरे पेड़ों का कटना जारी है /यही है योग्यतम की उत्तरजीविता /कि किसी एक के ज़िन्दा रहने के लिए /किसी दूसरे का मरना ज़रूरी है .
यह सिद्धान्त समझकर हम कितना भयाक्रान्त हो गये?
जवाब देंहटाएंउल्लेखनीय प्रविष्टि.
कि किसी एक के ज़िन्दा रहने के लिए /किसी दूसरे का मरना ज़रूरी है . ......क्या सचमुच सही है ?
जवाब देंहटाएंनही ,यह सिद्धांत भय पैदा करने वाला नही बल्कि यह सिद्धांत उस समय परिस्थिति के ऊपर बना है जब वातावरण या प्रकृति प्रतिकूल समय पैदा करती है । जैसे पृथ्वी के किसी भाग पर किसी कारण से जलवायु बिलकुल भिन्न हो गया ऐसी स्थिति में जीवधारी मरने लगेंगे किन्तु ऐसी स्थिति में भी जो जीवधारी बदले हुवे वातावरण के प्रति खुद को ढलने की कोशिश करेगा और जीवित बच जायेगा वह उस वातावरण के योग्य होगा । यही है योग्यतम की उत्तरजीविता ।
जवाब देंहटाएंनही ,यह सिद्धांत भय पैदा करने वाला नही बल्कि यह सिद्धांत उस समय परिस्थिति के ऊपर बना है जब वातावरण या प्रकृति प्रतिकूल समय पैदा करती है । जैसे पृथ्वी के किसी भाग पर किसी कारण से जलवायु बिलकुल भिन्न हो गया ऐसी स्थिति में जीवधारी मरने लगेंगे किन्तु ऐसी स्थिति में भी जो जीवधारी बदले हुवे वातावरण के प्रति खुद को ढलने की कोशिश करेगा और जीवित बच जायेगा वह उस वातावरण के योग्य होगा । यही है योग्यतम की उत्तरजीविता ।
जवाब देंहटाएं