शनिवार, 30 जनवरी 2010

बेटी

उसके होने से ही
पावन है घर-आँगन,
उसकी चंचल चितवन
मोह लेती हम सबका मन,
वो रूठती
तो रुक जाते हैं
घर के काम सभी,
वो हँसती
तो झर उठते हैं
हरसिंगार के फूल,
महक उठता है
घर का कोना-कोना,
जाने कैसे हैं वे लोग
जो बेटियों को
जन्मने ही नहीं देते
हम तो सह नहीं सकते
अपनी बेटी का
एक पल भी घर में न होना .
ये कविता मेरी दीदी की बेटी शीतल के लिये है. वो मुझे बहुत प्यारी है और अपनी माँ की तरह ही मुझे मानती है. मैं जब भी दीदी के घर जाती हूँ, तो महसूस करती हूँ कि बेटियों का घर में होना कैसा अनुभव है. वो जब तक स्कूल में रहती है, सारा घर उदास रहता है और उसके आते ही मानों घर-आँगन नाच उठता है. आज उसकी बहुत याद आ रही है.)

13 टिप्‍पणियां:

  1. बिल्कुल सही कह रही हैं। बेटियों की माँ होना फुल टाइम का सुख है। वे आपको कभी कभार याद नहीं करतीं सदा याद करती हैं। घर छोड़ने के १३ साल बाद भी आज भी मेरी बेटियाँ लगभग रोज मुझे फोन करती हैं।
    घुघूती बासूती

    जवाब देंहटाएं
  2. सच कहाँ आपने , बच्चो के होने से घर भरा-भरा लगता है , रचना दिल को छू गयी ।

    जवाब देंहटाएं
  3. आपकी रचना पढ़कर मुझे अपना एक शेर याद आ गया...

    बरकतें खुलकर बरसतीं उन पे हैं "नीरज" सदा
    मानते हैं बेटियों को जो घरों की रानियाँ

    आपकी रचना दिल के बहुत करीब है...हमारे घर में मेरे बेटे के यहाँ बेटी मिष्टी ,जिसकी फोटो मेरे ब्लॉग पर हमेशा रहती है, के आने से पूरे घर का वातावरण ही पावन हो गया...
    नीरज

    जवाब देंहटाएं
  4. बेटी का होना महसूस कर रहा हूँ धीरे-धीरे ! एक साल की हो जायेगी अब वह !

    सहज ही सज गयी अनुभूति और अभिव्यक्ति ! आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  5. सच कहा आपने-एक बाप को भी बेटी के लिए जो संवेदना होती है उसे निराला के "सरोज " संस्मरण से समझा जा सकता है

    जवाब देंहटाएं
  6. मुक्ति जी आदाब
    घर के आंगन को महकाती बेटियों को समर्पित
    एक पावन रचना
    बधाई

    जवाब देंहटाएं
  7. बच्चा बच्चा होता है.....बच्चों में भेदभाव कैसा मुक्ति जी.....बच्चों के अनगिनत सवाल, उनके जवाब, मासूम बातें...बच्चा तो बच्चा ही होता है न.....

    जवाब देंहटाएं
  8. @ boletobindas,
    आप समझे नहीं बन्धुवर. यह कविता उनके बारे में प्रश्न उठाती है, जो बेटियों को जन्म नहीं लेने देते. यह भेदभाव तो वही करते हैं न? यही प्रश्न तो उठाया गया है इस कविता में.

    जवाब देंहटाएं
  9. bahut sahi kaha aapne anuradha ji.par aapko ye nahin lagta ki betiyon ka ghar main janam no isme purus se jayada ek stri ka haath hota hai.

    जवाब देंहटाएं
  10. _____आराधना जी ,

    बेटी पर लिखी आपकी रचना में भावनाओं की अधिकता है जो छू जाती है....
    बहुत अच्छा लिखती हैं.....
    हल्का फुल्का मैं भी कलम घिस लेता हूँ, अगर समय मिले तो देख आइयेगा......

    _____जोगेन्द्र सिंह

    (मेरी लेखनी..मेरे विचार..)

    .

    जवाब देंहटाएं