जब एक टीचर ने
बुलाया था उसे स्टाफ़रूम में
अकेले
और कुत्सित मानसिकता से
सहलायी थी उसकी पीठ
डरी-सहमी वह
रोती रही
सिसकती रही
...
हम तब भी नहीं बोले
जब बीच युनिवर्सिटी में
खींचा गया था
उसका दुपट्टा
और वह
हाथों से सीने को ढँके
लौटी हॉस्टल
फिर वापस कभी
युनिवर्सिटी नहीं गयी
...
हम तब भी नहीं बोले
जब तरक्की के लिये
माँगी गयी उसकी देह
वह नहीं बिकी
एक नौकरी छोड़ी
दूसरी छोड़ी
तीसरी छोड़ी
और फिर बिक गयी
...
हम तब भी नहीं बोले
जब रुचिका ने की आत्महत्या
जेसिका, प्रियदर्शिनी मट्टू
मार दी गयी
उनके हत्यारे
घूमते रहे
खुलेआम
...
हम आज भी नहीं बोले
जब इसी ब्लॉगजगत में
सरेआम एक औरत का
होता रहा
शाब्दिक बलात्कार
और हम चुप रहे
हम चुप रहे
चुप... ...
अकादमिक व्यक्ति को इतनी वितृष्णा , इतनी गुस्सा नहीं होनी चाहिए
जवाब देंहटाएंहम कब तक नारी और पुरुष बने रहेगें ? कहीं तो यह रेखा खत्म हो .......
क्या अकादमीयता कुछ समाधान नहीं कर सकती ? और आप तो देवभाषा की विदुषी हैं
क्या इसे बार बार याद दिलना होगा ? मैं एक नारी मन की पीड़ा और संत्रास समझ सकता हूँ
मगर अनुरोध यही है की इस भेद को मिटाकर वहीं रहिये जहां आप पहुँच चुकी हैं !
नो देवियेशन्स प्लीज .......
बाकी इंगित कविता की एक व्याख्या काव्य मंजूषा पर पाबला नामक प्रातः स्मरणीय भाष्यकार (यहाँ भी श्लेष नहीं ) भी कर
चुके हैं और मुझे उसमें कोई असहमति नहीं दिखती !अब क्या आपको भी अभिधा ,लक्षणा और
व्यंजना की बात बतानी होगी ?
गुस्सा छोडिये और यदि करनी है तो बहुत से और मामले हैं जहाँ उस ऊर्जा का रचनात्मक उपयोग हो सकता है!
...और मुझसे भी असहमति पर क्षमा भी करें ..मुझे तत्क्षण क्षमा मांगने में कोई गुरेज नहीं रहता ...
बिलकुल ठीक ऊपर की यह पंक्ति छूट गयी थी कट पेस्ट में ..
जवाब देंहटाएंशान्तं भव देवि.....ॐ शान्ति शान्ति (मन से ....कोई श्लेष नहीं ,विश्वास करें!)
जो नहीं बोले ...आपकी कविता बोल गयी ...और इस तरह बोली के कुछ बोलना ही पडा ...आखिर कब तक रह सकता है कोई बिना बोले ....!!
जवाब देंहटाएंटिप्पणी के पार की कविता फिलहाल !
जवाब देंहटाएंआपने जो अनुभूत किया लिख डाला, हम चुप ही रह गए !
accha kiya aapne bhi bol hi diya...
जवाब देंहटाएंचुप्पी वाकई खली!
जवाब देंहटाएंहर बार...यही सब दोहराया जाएगा...फिर स्पस्टीकरण दिए जाएंगे की आपको चीजों को समझने की क्षमता नही है.
जवाब देंहटाएं...और हाँ मुक्ति जी प्रशंसा और व्यक्तित्व के महिमा मंडन से अवचेतन पर क्या असर होता है इसके लिए एक आलेख लिखा है मनोविज्ञान पर...हो सके तो देख लें.
जवाब देंहटाएंhttp://sanchika.blogspot.com/2010/01/4.html
अपने मनोभावों को सुन्दर शब्द दिए हैं।बधाई।
जवाब देंहटाएंकई प्रश्न और विचार मन में …… पर कदाचित मौन भी कई प्रश्नों का जवाब होता है? इसलिए मात्र नव-वर्ष की बधाई स्वीकार करें |
जवाब देंहटाएंमौन का अर्थ मात्र स्विकृति नहीं, खिन्नता भी होता है.
जवाब देंहटाएंशुक्रिया .....इस बार बोलने के लिए ...चूंकि कभी कभी चुप्पी भी अपराध होती है ...
जवाब देंहटाएंexcellent poem but remember always we have to learn to stand on our own so that we have a credibilty of our own
जवाब देंहटाएंwhy let them ruin your mental growth because that is what is important
one ruchika died to save many others
one jassica died to save many others
these woman are not woman but footprints and we all need to keep our firm foot there where they left their prints
god bless you
यही है अस्ल कविता जो चुप होकर सब कह दे।
जवाब देंहटाएंअंतिम बात दर्दनाक होने के साथ साथ विश्लेषण के योग्य भी है कि आखि़र क्यों होता है यह शा... बला...। क्या नर-नारी दोनों ही ज़िम्मेवार नहीं।
बलात्कार सदैव प्रेम के घटाव का नतीजा है। मालिक ने न जाने क्युँ बनाया है ?
काश यह कभी न हो।
आज भी नहीं बोले
जवाब देंहटाएंजब इसी ब्लॉगजगत में
सरेआम एक औरत का
Blog ke dunia me...?? Kiske baatk kar rahi hai aap...??
बेहतरीन,बेबाक अभिव्यक्ति!
जवाब देंहटाएंWell,the anger of the poet is quite justified.However,the coin has two sides.I agree with the view of one Mr.Arvind Mishra.One expects better precedents from intellectuals and academicians.In others words,time to unleash anger in a constructive way.Also let's not forget to take note of changes taking place in our world.If one come to ignore the changes,the person trying to rope in new changes will miss the mark.
जवाब देंहटाएंPain is not gender-centric.Pain is pain.Realize that.It's not male or female.
The poet has also reacted sharply over the humiliation faced by some lady in the blogsphere.The author needs to reveal the identity so that at least we come to know what exactly happened.There is no point in pointing accusing finger at everyone since not all deliberately kept quite.How can one just beat the bush?At least ,come out with details and give other the chance to react in rational manner.