जिसने मुझे
उँगली पकड़कर
चलना नहीं सिखाया
कहा कि खुद चलो
गिरो तो खुद उठो,
जिसने राह नहीं दिखाई मुझे
कहा कि चलती रहो
राह बनती जायेगी,
जिसने नहीं डाँटा कभी
मेरी ग़लती पर
लेकिन किया मजबूर
सोचने के लिये
कि मैंने ग़लत किया,
जिसने कभी नहीं फेरा
मेरे सिर पर हाथ
दुलार से
पर उसकी छाँव को मैंने
प्रतिपल महसूस किया,
जिसने खर्च कर दी
अपनी पूरी उम्र
और जमापूँजी सारी
मुझे पढ़ाने में
दहेज के लिये
कुछ भी नहीं बचाया,
आज नमन करता है मन
उस पिता को
जिसने मुझे
स्त्री या पुरुष नहीं
इन्सान बनकर
जीना सिखाया.
हमारा भी नमन उसे, जिसने आत्मनिर्भर और आत्मविश्वासी बनाया!!
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा!!
मेरा भी नमन उस देवतुल्य यशः काया को ...उनकी कीर्ति काया तो अमर है खुद उन्ही की के द्वारा पुष्पित पल्लवित वंश परम्परा में !
जवाब देंहटाएंजिसने मुझे
जवाब देंहटाएंस्त्री या पुरुष नहीं
इन्सान बनकर
जीना सिखाया.
सुन्दर भाव।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
बहुत सुन्दर भाव हैं। बहुत अच्छा लगा इसे पढ़कर।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना दिल को छु गई.ऐसे सभी माता पिताओं को नमन!
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत और यथार्थ!
जवाब देंहटाएंहाँ यही ।
जवाब देंहटाएंअब लगा कि सहज कविता निःसृत हो गयी है सहजतः ही अनुभूति से ।
नमन !
umda rachna !
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत व उम्दा भाव दिखा आपकी इस रचना में, बहुत-बहुत बधाई आपको इस लाजवाब रचना के लिए।
जवाब देंहटाएंमुक्ति जी, आदाब
जवाब देंहटाएंमां के साथ हमारे जीवन में पिता की बहुत बड़ी भूमिका है
लेकिन साहित्य में कम ही रचनाएं मिलती हैं उनके लिये
आपने इस दिशा में भावपूर्ण कविता लिखी
आपके जज्बात को सलाम
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
पिता !! एक अजीब एहसास है. कितना अपना .....
जवाब देंहटाएंअच्छा लिखा है. बधाई.
bahut bahut badhai ho aapko
जवाब देंहटाएंbahut sunder lekh hai aapke
main to aapka fan ho gaya
आज नमन करता है मन
जवाब देंहटाएंउस पिता को
जिसने मुझे
स्त्री या पुरुष नहीं
इन्सान बनकर
जीना सिखाया. ....
सच आपने मेरे दिल की बात कह दी....इन्सान बनो....नमन हर पिता को, मां को...जिसने हमें सीख दी इनसान बनने की.....