शुक्रवार, 18 दिसंबर 2009

पर... ... माँ

ग़लती करती
तो डाँट खाती
दीदी से भी
और बाबूजी से भी
सब सह लेती
पर
सह न पाती माँ
तुम्हारा एक बार
गुस्से से आँखें तरेरना
..........................
कई तरह की
सज़ाएँ पायीं
मार भी खायी
कई बार
पर
नहीं भूलती माँ
तुम्हारी वो अनोखी सज़ा
कुछ भी न कहना
सभी काम करते जाना
एक लम्बी
चुप्पी साध लेना
........................
बाबूजी का लाड़
अपने जैसा था
भाई का प्यार भी
अनोखा था
बहन के स्नेह का
कोई सानी नहीं
पर
इन सबसे बढ़कर था माँ
थपकी देकर
सुलाते हुये तुम्हारा
मेरे सिर पर
हाथ फेरना.
......................

13 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर बात कही है।
    घुघूती बासूती

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  2. अनिर्वचनीय अनुभूति ...
    ............ आभार ,,,

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  3. बेटी माँ से कितनी संवेदना से जुडी होती है -यह बोध कराती कविता !
    क्या संस्कृत में 'आत्मा वै जायते पुत्रः 'का समानार्थी कोई भाव मान पुत्री के लिए भी है ?

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  4. यह स्नेहिल भाव और उसकी अनुभूति कविता में सहज ही दर्शनीय हैं ।
    माँ के अनिवर्चनीय स्वरूप को अभिव्यक्त करती रचनाओं की श्रंखला में इस कविता का भी सादर अभिनन्दन ।
    आभार ।

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  5. बहुत भावपूर्ण रचना है।
    बहुत अच्छी लगी।

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  6. Kyaa baat hai... aapki apni abhivyakti hai. Bahot hi sundar. Ahmed Faraz saab kehte the ke "jo dil se uthhE aur dil par girE" vo sachchi shaayari ya kavita hoti hai. Aaapki is 'expression' par sau-aane sahi baith-ti hai ye baat. Maa par bahaut kaam hua hai, aur bahot ho bhi sakta hai, jitne beTe-beTi yaa maa-yein un sabki apani-apni abhivyaktiyaan possible hain. Mujhe Alok Srivastav saab ka ek sher yaad aa raha hai -
    "ghar mein jheene rishtey maine laakhon baar udhaDte dekhe, chupke-chupke kar deti thi jaane kab turpaayi Amma"

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  7. बहुत गहरे दिल को छू गयीं ये कविताएँ. अपने ही मन की बात लगी.

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  8. Khamoshi ki ek juban hoti hai,jo sbdo se v bhari hoti hai.....behtreen hai kavita.

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