रविवार, 20 सितंबर 2009

टूटे सपने

टूटे सपनों की किरचें
बिखरी हैं
मन की फ़र्श पर
बटोरो तो चुभती हैं
हाथों में
ना देखो
तो पैरों में
देखो तो
आँखों में
इस कश्मकश के
पार उतार दे
कोई मेरे टूटे सपनों की
किरचें बुहार दे

11 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत उम्दा और भाव्पूर्ण कविता

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  2. वाह क्या कहने !!
    पर ये किरंच तो खुद ही बुहारनी होगी.
    बेहतरीन

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  3. बटोरो तो चुभती हैं
    हाथों में
    ना देखो
    तो पैरों में
    देखो तो
    आँखों में

    सच्ची अभिव्यक्ति

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  4. बेशक अच्छी कविता है। प्यारी और सच्ची। कोमल भाव हैं। पर गुजारिश है कि स्त्री-पुरुष जैसे किसी खेमे में अपनी कविताओं को न रखें। एक बेहद सतही (भाषा और प्रस्तुति के स्तर पर) कविता का लिंक दे रहा हूं। वक्त हो तो देखें http://khushikhushi.blogspot.com/2008/11/blog-post.html

    इस खुशी ने जो लिखा उन बातों से सहमत हुआ जा सकता है

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  5. "टूटे सपनों की किरचें" bhaavpurn prastuti...

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