टूटे सपनों की किरचें
बिखरी हैं
मन की फ़र्श पर
बटोरो तो चुभती हैं
हाथों में
ना देखो
तो पैरों में
देखो तो
आँखों में
इस कश्मकश के
पार उतार दे
कोई मेरे टूटे सपनों की
किरचें बुहार दे
बेशक अच्छी कविता है। प्यारी और सच्ची। कोमल भाव हैं। पर गुजारिश है कि स्त्री-पुरुष जैसे किसी खेमे में अपनी कविताओं को न रखें। एक बेहद सतही (भाषा और प्रस्तुति के स्तर पर) कविता का लिंक दे रहा हूं। वक्त हो तो देखें http://khushikhushi.blogspot.com/2008/11/blog-post.html
इस खुशी ने जो लिखा उन बातों से सहमत हुआ जा सकता है
बहुत अच्छा लिखा है .
जवाब देंहटाएंGood poem...
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा भाव!
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा और भाव्पूर्ण कविता
जवाब देंहटाएंक्या खूब लिखा है !!
जवाब देंहटाएंवाह क्या कहने !!
जवाब देंहटाएंपर ये किरंच तो खुद ही बुहारनी होगी.
बेहतरीन
बटोरो तो चुभती हैं
जवाब देंहटाएंहाथों में
ना देखो
तो पैरों में
देखो तो
आँखों में
सच्ची अभिव्यक्ति
बहुत खूब !!
जवाब देंहटाएंbehtarin hai.
जवाब देंहटाएंबेशक अच्छी कविता है। प्यारी और सच्ची। कोमल भाव हैं। पर गुजारिश है कि स्त्री-पुरुष जैसे किसी खेमे में अपनी कविताओं को न रखें। एक बेहद सतही (भाषा और प्रस्तुति के स्तर पर) कविता का लिंक दे रहा हूं। वक्त हो तो देखें http://khushikhushi.blogspot.com/2008/11/blog-post.html
जवाब देंहटाएंइस खुशी ने जो लिखा उन बातों से सहमत हुआ जा सकता है
"टूटे सपनों की किरचें" bhaavpurn prastuti...
जवाब देंहटाएं