मंगलवार, 7 अप्रैल 2009

अपनी राह पर

मेरी किस्मत में
नहीं थी चाँदी की चम्मच
और मखमली कालीन
थे पथरीले काँटों से भरे रास्ते
जिन पर झाड़-झंखाड़ को हटाकर
ख़ुद ही चलना था मुझे

मेरी किस्मत में नहीं थी
माँ की ममता की छाँव
और पिता के प्यार का साया
दुःख और मुश्किलों की धूप में
तपते रहना और जलना था मुझे

पर ...मुझे
किस्मत से कोई शिकायत नहीं
आख़िर ...उसने ही तो मुझे
ख़ुद अपनी राह बनाना सिखाया
धीरज रखना और दुःख सहना सिखाया

ठोकरें खा-खाकर
सख्त़ और सख्त़ बनती जा रही हूँ मैं
ख़ुद अपनी राह पर
बिना किसी सहारे चलती जा रही हूँ मैं ।

7 टिप्‍पणियां:

  1. aapkee bhavnaokee abhivyakti sundar aur arthpurn hai.. aapka dhairy aur sahas ek nai ajjadi kee rah par chale ka dyotak hai....

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  2. जिजीविषा बड़ी होती है । इसे सम्हाले रखें ।

    बड़े दिनों बाद आपके ब्लॉग पर आया, पता नहीं कैसे विरम जाता था। आता रहूंगा ।

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  3. कहते हैं कि-

    सारे चराग हमने लहू से जलाए हैं।
    जुगनू पकड़ के घर में उजाला नहीं किया।।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
    कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

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  4. सुन्दर शक्तिशाली अभिव्यक्ति

    please visit my blogs paraavaani and creative policing

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  5. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  6. बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण रचना! क्या कहना!
    मैं अपने तीनों ब्लाग पर हर रविवार को ग़ज़ल,गीत डालता हूँ,जरूर देखें।मुझे पूरा यकीनहै कि आप को ये पसंद आयेंगे।

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