(पता नहीं ये आँकड़े कितने सच्चे हैं ? कितने झूठे ? पर बात इन आँकड़ों की सच्चाई की नहीं, इनसे पड़ने वाले असर की है. पता नहीं ये खबरें लोगों उद्वेलित करती हैं या नहीं, पर मुझे करती हैं. 24th फ़रवरी 2010,के Hindustaan Times के Delhi संस्करण में उड़ीसा के कुछ जिलों में भूख से मरने वालों की खबर आयी और मुझे परेशान कर गयी. मेरे कुछ दोस्त एन.जी.ओ. में काम करते हैं. उन्होंने पिछले साल बुन्देलखण्ड में अपनी आँखों से भूख से मरते हुये लोगों को देखा. आँकड़े भले ही कुछ कम या ज्यादा संख्या बताएँ, पर हमारे देश में भूख से लोग मरते हैं और हमारे प्रतिनिधि और नौकरशाही इस बात को छिपाने की कोशिश करती है...आज इस खबर का जो असर मुझ पर हुआ, वह कुछ इस तरह निकला...)
भूख से मरने वालों की खबर
अखबार के
पहले पन्ने पर छपती है,
पढ़कर..
कोने में फेंक दी जाती है,
फिर किसी दिन
बिक जाती है
अखबार के साथ रद्दी में,
...
भूख से मरने वालों की खबर
नहीं बनती आवाज़
न ही आंदोलन
न मुद्दा
बस...
खबर बनकर रह जाती है,
...
झूठी आवाज़ों से बहरे हुये
कानों को सुनाने के लिये,
चीख चाहिये...
तेज़ आवाज़ चाहिये...
नारे चाहिये...,
और भूख से बिलबिलाता आदमी
तेज़ बोले भी तो कैसे?
देह में जान नहीं
मुँह खोले भी तो कैसे??
सही कहा!!
जवाब देंहटाएंसंवेदनशील रचना!
जबदस्त दीदी , आज आपने कविता के माध्यम से जो कुछ भी कहा दिल को छू गया ।
जवाब देंहटाएंभूख से बिलबिलाता आदमी
जवाब देंहटाएंतेज़ बोले भी तो कैसे?
देह में जान नहीं
मुँह खोले भी तो कैसे??
सही है .....
झूठी आवाज़ों से बहरे हुये कान ..
वाह !
सुंदर एवं संवेदनशील रचना...
जवाब देंहटाएंसंवेदनशील रचना...
जवाब देंहटाएंस्तब्ध और निःशब्द करती रचना
जवाब देंहटाएंऔर भूख से बिलबिलाता आदमी
जवाब देंहटाएंतेज़ बोले भी तो कैसे?
देह में जान नहीं
मुँह खोले भी तो कैसे.....
कड़वी हकीकत, बयां की है आपने....
एक सवाल है......जिनके पेट भरें है आखिर वो क्यों चुप हैं....
भूख से मरने वालों की खबर
जवाब देंहटाएंनहीं बनती आवाज़
न ही आंदोलन
न मुद्दा
बस...
खबर बनकर रह जाती है,
एक मार्मिक ,,
संवेदनशील रचना
आपकी भावनाओं में
आज के समाज और
हमारी व्यवस्था का यथार्थ प्रतिबिंबित हो रहा है..
आपकी चिंता व्यर्थ नहीं है ,,,,,
ये सारे शब्द किसी भी खबर से
बड़े हैं ,,,सच्चे हैं ,,,,
इंसानियत के प्रति आपका दर्द
आह्वान बन सब के दिलों को छू पाएगा...
ऐसा विश्वास है
अगर यह खबर सच है तो बहुत ही दर्दनाक है..बेहद दुर्भाग्यपूर्ण की माहाशक्ति बन कर उभरने वाला देश इतना लाचार है की अपने वासियों का पेट भी नहीं भर सकता!
जवाब देंहटाएं--ग़रीबी -एक आँकड़ों के अनुसार[कहीं पढ़ा है हाल ही में] ३७ % हो गयी है!
अगर भारत देश का यह एक सच है तो बेहद दुख की बात है.
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संवेदनशील रचना .
होली मुबारक हो..................
जवाब देंहटाएंye to apni gathaa hone vaali hai aisa lagta hai...ab time se kha lungaa....... :)
जवाब देंहटाएंshowin the bitter truth of life...
जवाब देंहटाएंthanks to share..
sundar kavita....
जवाब देंहटाएंआज इस बात की ख़ुशी भी है कि आपका ब्लॉग और उसमें इतने अच्छे संदेश वाली कविताएँ देखीं....पर दुःख और अफ़सोस भी कि इतनी देर क्यूं.....इस तरह का ब्लॉग मेरी नज़रों में इतनी देर तक क्यूं न आया...मुक्ति जी आपकी कविताएँ नज़र में आने के बाद सीधा दिल और दिमाग तक ही नहीं अंतर आत्मा तक भी पहुंचती हैं...आपकी कविता में केवल अनुभूति की अभिव्यक्ति ही नहीं संघर्ष कि आवाज़ भी है जिसकी आज सखत ज़रुरत है....! इस तेवर को बनाये रखना....आपकी कविता इस जनता और देश के लिए अवश्यक है....!
जवाब देंहटाएंभूखी कुलबुलाहट एक दिन
जवाब देंहटाएंआवाज जरूर बनेगी,
वो केवल खबर तक सिमित नहीं रहेगी,
कुंवर जी,
..और भूख से बिलबिलाता आदमी
जवाब देंहटाएंतेज़ बोले भी तो कैसे?
..बेहतरीन अभिव्यक्ति.
,,,बधाई.
no words.............../
जवाब देंहटाएंसुन्दर, सार्थक और महत्वपूर्ण पोस्ट..बधाई.
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''शब्द-सृजन की ओर" पर- गौरैया कहाँ से आयेगी
यही तो त्रासदी है...
जवाब देंहटाएंRector Kathuria ..ji ne bahut sahi likha hai
जवाब देंहटाएंsatya adhbhut ..!!
जवाब देंहटाएंsamvedna se bhari hai ..par ..aise muddon pe talkhi aur chahiye..daya bhav .paryapt nahi ..aisa lagta hai mujhe..
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