रविवार, 21 फ़रवरी 2010

कौन सी भूख ज़्यादा बड़ी है???

प्रिय तुम्हारी बाहों में
पाती हूँ मैं असीम सुख,
भूल जाना चाहती हूँ
सारी दुनियावी बातों को,
परेशानियों को,
फिर क्यों ??
याद आती है वो लड़की
चिन्दी-चिन्दी कपड़ों में लिपटी
हाथ में अल्यूमिनियम का कटोरा लिये
आ खड़ी हुई मेरे सामने
प्लेटफ़ार्म पर,
मैंने हाथ में पकड़े टिफ़िन का खाना
देना ही चाहा था
कि एक कर्मचारी
उसका हाथ पकड़कर
घसीट ले गया उसे बाहर
और वो रिरियाती-घिघियाती रही
"बाबू, रोटी तो लइ लेवै दो,"
मैं कुछ न कर पायी.
... ...
क्यों याद आता है वो लड़का
जो मिला था हॉस्टल के गेट पर
चेहरे से लगता जनम-जनम का भूखा
अपनी आवाज़ में दुनिया का
दर्द समेटे
सूखे पपड़ियाए होठों से
"दीदी, भूख लगी है"
बड़ी मुश्किल से इतना बोला
मेरे पास नहीं थे टूटे पैसे,
पचास का नोट कैसे दे देती,
मैं कुछ न कर पायी
... ...
ये बेचैनी, ये घुटन
कुछ न कर पाने की
सालती है मुझे अन्दर तक
और मैं घबराकर
छिपा लेती हूँ तुम्हारे सीने में
अपना चेहरा,
आराम की तलाश में,
पर दिखती हैं मुझे
दूर तक फैली मलिन बस्तियाँ,
नाक बहाते, गन्दे, नंगे-अधनंगे बच्चे,
उनको भूख से बिलखते,
आधी रोटी के लिये झगड़ते,
बीमारी से मरते देखने को विवश
माँ-बाप.
... ...
तुम सहलाते हो मेरे बालों को,
और चूम के गालों को हौले से
कहते हो कानों में कुछ प्रेम भरी
मीठी सी बातें,
पर सुनाई देती हैं मुझे
कुछ और ही आवाज़ें
"दीदी भूख लगी है"
"बाबू रोटी तो लइ लेवै दो"
"दीदी भूख लगी है"
गूँजती हैं ये आवाज़ें मेरे कानों में
बार-बार, लगातार,
वो जादुई छुअन तुम्हारे हाथों की
महसूस करती हूँ, अपने शरीर पर
और सोचती हूँ
कौन सी भूख ज़्यादा बड़ी है???

28 टिप्‍पणियां:

  1. और सोचती हूँ
    कौन सी भूख ज़्यादा बड़ी है???
    भूख तो भूख है. यह बड़ी या छोटी कैसे हो सकती है.
    भूखे की भूख मिटना ही प्राथमिक होना चाहिये.
    (मेरे वैयक्तिक विचार)
    दिल को छू लेने वाली रचना
    मार्मिक और सवाल उठाती है
    अद्भुत

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  2. गहन अंतर्द्वंद्व की मुखर रचना -
    प्रकृति के हांथों कितने विवश से हम ........

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  3. खूबसूरती से कही गई बात ......... बहुत खूब !!

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  4. बहुत खूब दीदी , क्या लिखा है आपने, सच में लाजवाब ।

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  5. एक सवाल जो बिना जवाब रह जायेगा..एक कशमकश जिस से निकलना मुश्किल है ..एक उलझन ..जो सुलझेगी नहीं..
    -------फिर भी पेट की आग सब से बड़ी है..कहते हैं न भूखे भजन न होए गोपाला..
    -प्राथमिकतायें तय करना बहुत कुछ खुद अपने हाथ में ही तो है.

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  6. इसी द्वन्द में जीवन है..निरपेक्ष होने की जगह सापेक्षता और संतुलन की दरकार है.

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  7. इस कविता में कोई खामी निकालना फिजूल का
    अक्ल का घोड़ा दौड़ाना है ...
    स्व और पर के बीच में कोई विभाजन बना पाना
    बहुत द्वंद्व भरा है ..
    संवेदनशील के लिए बड़ा कठिन ...
    लेकिन एक संतुलन - बिंदु को तो खोजना ही होगा ---
    '' आखिर कोई सूरत होगी इस खान-ए-दिल की ,
    काबा नहीं बनता तो बुतखाना बना दे | ''
    इस द्वंद्व में ही द्वार खोजिये और कुछ 'निर्मिति' को सफल कीजिये,,,
    वैसे भी ''मिसनरी'' स्वभाव वाले से 'निर्मिति' को सफल होना ही चाहिए ..
    ख्याल रहे कि मिसन सिर्फ चिंतन के स्तर पर ही न रह जाय ..
    ................... '' दार्शनिकों ने संसार की बहुत व्याख्या की है अब
    जरूरत उसे बदलने की है '' [ कार्ल मार्क्स ] |
    ........ सुन्दर कविता ....... आभार !

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  8. mukti ! aap ki yah rachna bahut hi gahre arth apne bhitar sanjoye bethi hai....ap ko bahut congrates... apne man ke aise davand ko kavita me roopmaan kia hai jo aksar ham nahi pakad paate ...agar aap chaho to mai apki yah kavita apne punjabi magzine PRATIMAAN me anuvad kar k parkashit karna chahunga.....amarjeetkaunke@yahoo.co.in

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  9. "दीदी भूख लगी है"
    "बाबू रोटी तो लइ लेवै दो"
    "दीदी भूख लगी है"
    गूँजती हैं ये आवाज़ें मेरे कानों में
    बार-बार, लगातार,
    वो जादुई छुअन तुम्हारे हाथों की
    महसूस करती हूँ, अपने शरीर पर
    और सोचती हूँ
    कौन सी भूख ज़्यादा बड़ी है???
    write foot on feminity..Nice presentation...

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  10. "दीदी भूख लगी है"
    "बाबू रोटी तो लइ लेवै दो"
    "दीदी भूख लगी है"
    गूँजती हैं ये आवाज़ें मेरे कानों में
    बार-बार, लगातार,
    वो जादुई छुअन तुम्हारे हाथों की
    महसूस करती हूँ, अपने शरीर पर
    और सोचती हूँ
    कौन सी भूख ज़्यादा बड़ी है???
    Right foot on feminity..Nice presentation...

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  11. आराधना जी, आदाब

    "दीदी भूख लगी है"
    "बाबू रोटी तो लइ लेवै दो"
    "दीदी भूख लगी है"
    गूँजती हैं ये आवाज़ें मेरे कानों में
    बार-बार, लगातार,
    वो जादुई छुअन तुम्हारे हाथों की
    महसूस करती हूँ, अपने शरीर पर
    और सोचती हूँ...कौन सी भूख ज़्यादा बड़ी है?

    आपकी रचना में बहुत बड़ा सवाल है.....
    ********************************
    हरियाणवी भाषा की एक रागणी में
    यही सवाल जवाब पृथ्वी लोक पर घुमते समय
    पार्वती द्वारा भगवान शिव से किया जाता है...
    जिसका जवाब कुछ यूं दिया जाता है-
    ’सुख थोड़े दुख घणे जगत में..भोग्या कष्ट करै राणी
    किस किसका दुख दूर करैं या दुनिया दुखी फिरै राणी
    **********************************

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  12. महज़.....अद्भुत कहना इस कविता के साथ नाइंसाफी होगी ...
    सच को बेबाकी से कहना ..भी एक दुस्हास है.....जो आपके भीतर है ....आपकी कवितायों को पढ़ा है ओर वे उथली नहीं है ..खामखां कहने के लिए नहीं है ....

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  13. बहुत मार्मिक चित्रण किय है !

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  14. क्या मर्म है आपके लेखन में ..कितनी गहराई लिए है सरे अहसास ..एक कडवा सत्य ..आपको पहली बार पढ़ा है लेकिन लेखन की दृष्टि से यक़ीनन तारीफ़ की हक़दार रचनाएँ ..लेकिन तारीफ़ के लिए शब्द तलाशना इतना ही मुस्किल है जितना इन परेशानियों कानिवारण

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  15. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  16. mukti ji ,

    pahli baar aapke blog par aaya aur is kavita par thahar gaya ... bahut der se ruka hua hoon .. aisi kavita main aaj tak nahi padhi .. mera man kahin bahut bheeg gaya hai .... bhook ka dard aur baccho ki bilakti awaaze ....just superb and amazing work of words... main aapki lekhni ko salaam karta ahoon ....

    aabhar

    vijay
    - pls read my new poem at my blog -www.poemsofvijay.blogspot.com

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  17. दिल को छू लेने वाली रचना
    मार्मिक और सवाल उठाती है

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  18. कविता संवेदना के स्तर पर छूती है. एक भिन्न दृष्टि से देखी और पेश की गयी रचना.

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  19. वो जादुई छुअन तुम्हारे हाथों की
    महसूस करती हूँ, अपने शरीर पर
    और सोचती हूँ
    कौन सी भूख ज़्यादा बड़ी है???
    क्या लिखूं आराधना जी ...शब्द कहीं गले में गोला बनकर अटक गए हैं ....निगलती हूँ तो नमकीन लगते हैं .......बस और कुछ नहीं .....!

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  20. बहुत ही सुन्‍दर प्रस्‍तुति
    आभार्

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