सुनो, एक कविता लिखो
या यूँ ही कुछ पंक्तियाँ
जिन्हें कविता कहा जा सके
और इसी बहाने याद रखा जाए
लिखो तुम औरतों के बारे में
उनके दुःख-दर्द और परेशानियाँ
उनकी समस्याओं के बारे में
पर उनकी खुशियों के बारे में कभी मत लिखो
उनकी सहनशीलता, उदारता और
ममता के बारे में लिखो
उनके सपनों, आकांक्षाओं और इच्छाओं के बारे में
कभी मत लिखो.
बता दो दुनिया को औरतों के दमन के बारे में
उन पर हुए अत्याचारों को लिखो
दमन से आज़ादी के संघर्ष की गाथा
कभी मत लिखो
लिखो औरतों के आँसुओं के बारे में
उनके सीने में पलने वाली पीड़ा
पर उनकी खुशी के बारे में
कभी मत लिखो
औरत के आँसू ये बताते हैं
कि वो कितनी असहाय है
त्याग और तपस्या की मूर्ति
उसे ये आँसू पी लेने चाहिए
इन दुःख दर्दों को
मान लेना चाहिए अपनी नियति
हँसने के अपने अधिकारों के बारे में
नहीं सोचना चाहिए
कि हँसती है जो औरत खिलखिलाकर
दुखी नहीं होती
इसलिए औरत नहीं होती
या यूँ ही कुछ पंक्तियाँ
जिन्हें कविता कहा जा सके
और इसी बहाने याद रखा जाए
लिखो तुम औरतों के बारे में
उनके दुःख-दर्द और परेशानियाँ
उनकी समस्याओं के बारे में
पर उनकी खुशियों के बारे में कभी मत लिखो
उनकी सहनशीलता, उदारता और
ममता के बारे में लिखो
उनके सपनों, आकांक्षाओं और इच्छाओं के बारे में
कभी मत लिखो.
बता दो दुनिया को औरतों के दमन के बारे में
उन पर हुए अत्याचारों को लिखो
दमन से आज़ादी के संघर्ष की गाथा
कभी मत लिखो
लिखो औरतों के आँसुओं के बारे में
उनके सीने में पलने वाली पीड़ा
पर उनकी खुशी के बारे में
कभी मत लिखो
औरत के आँसू ये बताते हैं
कि वो कितनी असहाय है
त्याग और तपस्या की मूर्ति
उसे ये आँसू पी लेने चाहिए
इन दुःख दर्दों को
मान लेना चाहिए अपनी नियति
हँसने के अपने अधिकारों के बारे में
नहीं सोचना चाहिए
कि हँसती है जो औरत खिलखिलाकर
दुखी नहीं होती
इसलिए औरत नहीं होती
इन दुःख दर्दों को
जवाब देंहटाएंमान लेना चाहिए अपनी नियति
हँसने के अपने अधिकारों के बारे में
नहीं सोचना चाहिए
कि हँसती है जो औरत खिलखिलाकर
दुखी नहीं होती
इसलिए औरत नहीं
सच कह रही हैं ये कोई नही देखता खिलखिलाहट के पीछे कितने आँसू छुपे हैं।
इन दुःख दर्दों को
जवाब देंहटाएंमान लेना चाहिए अपनी नियति
हँसने के अपने अधिकारों के बारे में
नहीं सोचना चाहिए
कि हँसती है जो औरत खिलखिलाकर
दुखी नहीं होती
इसलिए औरत नहीं
हर शब्द एक सच को लिए हुए ...झकझोर देने वाली कविता
कमाल की अभिव्यक्ति है, बेहतरीन!
जवाब देंहटाएंbari bebaki ke saath likhi hui bahut achchi kavita.
जवाब देंहटाएंआज तो दिल खुश हो गया। यही वो सवाल था जो जाने मैने कई बार महिलाओं से किया। मगर जवाब वही आप क्या जाने नारी के दुख का हाल आफ तो पुरुष ठहरे। तंग आ गया था इन जवाबो से। क्या कोई खुशी नहीं होती जो हम बांट सके। कोई खुशी नहीं होती किसी वंचित के जीवन में जिसके बारे में लिखा जाए। दुख है तो सुख है। हंसी है तो रोना है। जरुरी नहीं कि हर समय रोना ही रोया जाए।
जवाब देंहटाएंvehatareen kavita, kataaksh bhee aur seekh bhee.
जवाब देंहटाएंनारी-पीड़ा उकेरती सुन्दर काव्यमय प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर.
जवाब देंहटाएंमैं कभी ना हंसती खिलखिलाकर
जवाब देंहटाएंगर मुझको खबर होती ...
एक मुस्कराहट की ही कीमत है
हजार आंसूं !
अच्छा व्यंग्य किया है ...
मैंने पहले भी कहीं कमेन्ट में लिखा था ..
स्त्रियों की रोती आँखों को काँधे बहुत मिल जाते हैं , हंसने वाली स्त्रियों को माथे की त्योरियां !
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना कल मंगलवार 28 -12 -2010
जवाब देंहटाएंको ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
http://charchamanch.uchcharan.com/
nice aap bahot atchha likhti hai
जवाब देंहटाएंलिखो औरतों के आँसुओं के बारे में
जवाब देंहटाएंउनके सीने में पलने वाली पीड़ा
पर उनकी खुशी के बारे में
कभी मत लिखो
gr8
कविता भाव अभिव्यक्ति के अतिरिक्त क्या है..और एक औरत भावों का भंडार है.. वह अकेली ही जिन जिन परिस्थियों से सामना कर सकती है उनका व्खान करते करते जीवन बीत जायेगा...
जवाब देंहटाएंकभी कभी दुख या खुशी चेहरे पर नहीं आती.. शायद मन जज्व कर जाता है... और किसी ने सच ही कहा है..
"हजारों तरह के ये होते हैं आंसूं
कोई गम हो तो रोते हैं आंसूं
खुशी में भी आंखें भिगोते हैं आंसु
इन्हें जान सकता नहीं ये जमाना.... मैं खुश हूं मेरे आंसूओं पे न जाना... मैं तो दीवाना.. दीवाना"
कि हँसती है जो औरत खिलखिलाकर
जवाब देंहटाएंदुखी नहीं होती
इसलिए औरत नहीं
नारी व्यथा का बहुत ही सटीक चित्रण..बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति
व्यथा और नारी का चिर सम्बन्ध उजागर करती गहन रचना!
जवाब देंहटाएंनारी जीवन की विडंबनाओं की गहन संवेदनाओं को उकेरती मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति. आभार.
जवाब देंहटाएंसादर,
डोरोथी.
yah kavita aurat ke aurat hone ke itihaas men hue her pher ko batati hai..... halanki kavita ke lahze ka itihas se koi lena dena nahi hai..lekin jo baaten ismen kahee gayee hain nischit taur par wahi hui hongi itihas men...aurat par hue atyachaaron ko jitna likha gaya hoga utna aazadi ke liye uske sangharsh ko nahi likha gaya hoga..... mujhe bahut hi jyada pasand aayi ye kavita...
जवाब देंहटाएंbadhiya vyangy.
जवाब देंहटाएंgreat....afsos ye hai...ki zydatar mahila writers bhi peeda, durbalta aur ashaay hone ko hi likhti aai hain.....shukr hai ham youngester ka....jo traditional writing se hatkar sochte hain.
जवाब देंहटाएंGood one
इन दुःख दर्दों को
जवाब देंहटाएंमान लेना चाहिए अपनी नियति
हँसने के अपने अधिकारों के बारे में
नहीं सोचना चाहिए
कि हँसती है जो औरत खिलखिलाकर
दुखी नहीं होती
इसलिए औरत नहीं
... dard ko khud jee lene ke baad hi itne gahri vyath vykt hoti hai...
..bahut maarmik prastuti
सुन्दर कविता के अलावा और कह ही क्या सकती हूं?
जवाब देंहटाएंनये वर्ष की अनन्त-असीम शुभकामनाएं.
यह कविता कुछ अवसाद सा तारी कर गयी मन पर ......
जवाब देंहटाएंऔरत के आँसू ये बताते हैं
जवाब देंहटाएंकि वो कितनी असहाय है
त्याग और तपस्या की मूर्ति
उसे ये आँसू पी लेने चाहिए
यही तो करती आई है आज तक औरत किन्तु अब इसे असहाय समझना बहुत बड़ी भूल होगी.. नारी की संवेदना का सटीक चित्रण किया है..साधुवाद..
आलोक अन्जान,
http://aapkejaanib.blogspot.com/
पता है कि इस खिलखिलाहट के पीछे गहन संवदेना है,दर्द है।
जवाब देंहटाएं*
बहुत दिनों बाद आपकी एक सशक्त कविता पढ़ने को मिली,जो केवल बौद्धिक जुगाली भर नहीं है।
bahut hi khoob..
जवाब देंहटाएंhappy new year..
Please visit my blog..
Lyrics Mantra
Ghost Matter
ek pyari rachna....:)
जवाब देंहटाएंlekin sachchai is se itar hai, jaruri nahi har aurat dukhi ho...jaise har mard khush nahi hota...:)
now follow ur blogs.........to barabar aayenge..:D
जवाब देंहटाएंमुकेश जी,
जवाब देंहटाएंमैंने अपनी इस कविता में यही दिखाया है कि लोग औरतों के दुखों को तो चित्रित करते हैं.
पर उसकी खुशियों, आकांक्षाओं और इच्छाओं का जिक्र नहीं करते. जो औरत अपने कष्टों को हँसते-हँसते सहती है, उसे वो दुखी ही नहीं
मानते. दुःख तो औरत-मर्द दोनों को होता है, पर औरतों के ही आँसुओं का वर्णन ज्यादा देखने को मिलता है.
वस्तुतः मेरा प्रश्न उस मानसिकता की ओर उँगली उठाता है जिसके अंतर्गत हमारा समाज ये मानकर चलता है कि 'मर्द को आँसू नहीं
बहाने चाहिए' और औरतों को खिलाखिलाकर नहीं हंसना चाहिए.
बस फर्क सिर्फ़ इतना है कि मैं एक पक्ष रखती हूँ, दूसरा पक्ष तो अपने आप सामने आ जाता है. जिस तरह से हम हँसने वाली औरतों
को पसंद नहीं करते उसी तरह रोने वाले मर्दों को अच्छी निगाह से नहीं देखा जाता.ये हमारे समाज की मानसिकता है. हाँ, अपवाद भी
हैं, पर अधिकतर यही होता है.
वीरांगना हो जाती है?
जवाब देंहटाएंवीरांगना हो जाती है?
जवाब देंहटाएं