स्त्रीत्व
स्त्री का होना है
उसका अस्तित्व
एक जैववैज्ञानिक तथ्य,
दर्शाता है
स्त्रियों के बीच समानता
पुरुषों से उनकी भिन्नता
स्त्री सुलभता
एक छल है
समाजवैज्ञानिक छद्म,
पितृसत्ता द्वारा गढ़ा गया
थोप दिया गया औरतों पर
स्वाभाविकता और उन्मुक्तता के विरुद्ध
स्त्रियोचित
एक धमकी है
छीन लेती है पुरुषों से
उनके रोने और भावुक होने की आज़ादी,
बना देती है पत्थर
एक घुटन के साथ
पौरुष
एक दंभ है
पितृसत्ता का दूसरा रूप
बनाता है परिभाषाएँ
करता है बाध्य
बंधने के लिए उनकी सीमा में
वास्तविकता के नजदीक की परिभाषाएं।
जवाब देंहटाएंआराधना जी
जवाब देंहटाएंप्रणाम !
बेहद सुंदर अभिव्यक्ति आप कि रचना में . बधाई .
साधुवाद !
bahut khoob
जवाब देंहटाएंकमाल की रचना सीधा वार करती है।
जवाब देंहटाएंआराधना जी,
जवाब देंहटाएंबहुत कुछ कह गईं आप इस रचना के माध्यम से...
बधाई.
स्त्रियोचित
जवाब देंहटाएंएक धमकी है
छीन लेती है पुरुषों से
उनके रोने और भावुक होने की आज़ादी,
बना देती है पत्थर
एक घुटन के साथ
संभवतः, ऐसा ही है.
अच्छी लगी कविता
पौरुष है एक चिरन्तन याचना
जवाब देंहटाएंनियति की निरन्तरता
बनाए रखने की एक
उद्दाम लालसा
यह किंचित भी लान्छ्नीय नहीं है
वरन है अंगीकार किये जाने के सर्वथा योग्य ..
देखिये आपने मुझ वैज्ञानिक नीरस से भी कविता लिखा ली ...
क्रेडिट आपका ......
:)
sashkt abhivyakti!
जवाब देंहटाएंनिराले अंदाज़ में लाजवाब वार.....
जवाब देंहटाएं@ अरविन्द जी,
जवाब देंहटाएंपौरुष स्त्रीत्व के सामानांतर है. इस प्रकार इसकी परिभाषा होगी...
एक जैववैज्ञानिक तथ्य
जो दर्शाता है
पुरुषों के बीच समानता
स्त्रियों से उनकी भिन्नता
...
लेकिन पितृसत्तात्मक व्यवस्था में 'पौरुष' वीरता और नेत्तृत्व का प्रतीक बन गया है और 'स्त्रीत्व' को स्त्रीसुलभता में बदलकर स्त्रियों को दोयम दर्जे पर रख दिया गया है.
ये एक जैव वैज्ञानिक तथ्य को एक समाजवैज्ञानिक छद्म में बदलने के बारे में है.
स्त्री सुलभता
जवाब देंहटाएंएक छल है
समाजवैज्ञानिक छद्म,
पितृसत्ता द्वारा गढ़ा गया
थोप दिया गया औरतों पर
स्वाभाविकता और उन्मुक्तता के विरुद्ध
बिलकुल ही अलग नज़र से देखा है,इन स्त्री से जुड़ी बातों को और नई परिभाषाएं गढ़ी हैं...बहुत ही सार्थक अभिव्यक्ति
स्त्रियोचित
जवाब देंहटाएंएक धमकी है
छीन लेती है पुरुषों से
उनके रोने और भावुक होने की आज़ादी,
बना देती है पत्थर
एक घुटन के साथ... kamaal ki baat
ek paribhasha ko pasand ke taur par nahi chuna ja sakta hai .....har ek apne aap men poori hai aur sach ke bahut kareeb hai...
जवाब देंहटाएं@मुक्ति -
जवाब देंहटाएंशायद आप ठीक कहती हैं -
केहिं बिधि रची नारि जग माही पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं
सच सच बताईयेगा मानस का गंभीर अनुशीलन किया या नहीँ ?
आपकी धारदार लेखनी से निकली वास्तविकता के करीब अनूठी परिभाषाएं .......... अच्छी लगी।
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