रिसता है कुछ दिल से
आँखों के रास्ते
मन के ज़ख्मों के
टाँके टूट गये हैं
शायद,
बड़ी मुश्किल से
सुखाती हूँ इन्हें
फिर कोई
पूछ ही लेता है
घर के बारे में
माँ-पिता के बारे में
अजूबा सा लगता होगा
एक प्रौढ़ लड़की
बिना अभिभावक के
अकेले
कैसे काटती है
ज़िंदगी,
जी लेगी वो
अगर दुनिया
ना कुरेदे
उसके ज़ख्मों को
आँखों के रास्ते
मन के ज़ख्मों के
टाँके टूट गये हैं
शायद,
बड़ी मुश्किल से
सुखाती हूँ इन्हें
फिर कोई
पूछ ही लेता है
घर के बारे में
माँ-पिता के बारे में
अजूबा सा लगता होगा
एक प्रौढ़ लड़की
बिना अभिभावक के
अकेले
कैसे काटती है
ज़िंदगी,
जी लेगी वो
अगर दुनिया
ना कुरेदे
उसके ज़ख्मों को
जी लेगी वो
जवाब देंहटाएंअगर दुनिया
ना कुरेदे
उसके ज़ख्मों को
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति, अकेली लडकी की मार्मिक व्यथा
बहुत खूब ..जाने कितनी कितनी प्रौढ लडकियों का दर्द सामने रख दिया आपने..
जवाब देंहटाएंअच्छी और सची कविता
जवाब देंहटाएंबहुत ही उम्दा रचना। अकेले रहना हमेशा दर्द नाक और दुःखदायक होता है।
जवाब देंहटाएंमन के भावों को आपने कुछ इस तरह से गूंथा है कि पाठक का हृदय झंकृत हो उठता है।
जवाब देंहटाएंकरवाचौथ की हार्दिक शुभकामनाएं।
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बोटी-बोटी जिस्म नुचवाना कैसा लगता होगा?
एक लम्बी कविता मेरी भी है अधेड़ होती लड़किया ..इस दर्द को मैने बहुत करीब से देखा है।
जवाब देंहटाएंदर्द से भरी पडी होती है ,अकेलेपन मे डुबी समय काटना बहुत ही कठिन होता है ......... एक बेहतरीन रचना जो वास्तविकता को बडी ही करीब से उकेरा है आपने .....मैने भी देखा है कुछ ऐसे लड्कियो को ....
जवाब देंहटाएंnaari hone ke ehsaas ko
जवाब देंहटाएंb.khoobi ujaagar karti hui rachnaa
vaastviktaa ki chubhan ko
shabdoN meiN dhaalna
aur nazm kehnaa.....
stareey lekhan par badhaaee svikaareiN
संकल्प !
जवाब देंहटाएंgood poems...feelings...
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