रिसता है कुछ दिल से
आँखों के रास्ते
मन के ज़ख्मों के
टाँके टूट गये हैं
शायद,
बड़ी मुश्किल से
सुखाती हूँ इन्हें
फिर कोई
पूछ ही लेता है
घर के बारे में
माँ-पिता के बारे में
अजूबा सा लगता होगा
एक प्रौढ़ लड़की
बिना अभिभावक के
अकेले
कैसे काटती है
ज़िंदगी,
जी लेगी वो
अगर दुनिया
ना कुरेदे
उसके ज़ख्मों को
आँखों के रास्ते
मन के ज़ख्मों के
टाँके टूट गये हैं
शायद,
बड़ी मुश्किल से
सुखाती हूँ इन्हें
फिर कोई
पूछ ही लेता है
घर के बारे में
माँ-पिता के बारे में
अजूबा सा लगता होगा
एक प्रौढ़ लड़की
बिना अभिभावक के
अकेले
कैसे काटती है
ज़िंदगी,
जी लेगी वो
अगर दुनिया
ना कुरेदे
उसके ज़ख्मों को