मंगलवार, 10 मार्च 2015

कुछ पंक्तियाँ

बहिष्कृत-स्वीकृत 

घर समाज से 'बहिष्कृत' स्त्रियाँ
गढ़ती हैं स्त्रियों की बेहतरी की नयी परिभाषाएँ
बनाती हैं नए प्रतिमान,
वे कुछ और नहीं करतीं
बस 'सोचती' हैं
वही, जिसे करने की फुर्सत नहीं दी जाती
घर-परिवार-समाज में स्वीकृत महिलाओं को।
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 छिपे भेड़िये
(१)
भेड़िया, भेड़िया रहने पर उतना बुरा नहीं होता
वह हो जाता है ज़्यादा खतरनाक भेड़ की खाल पहनकर,
स्त्री-स्वतंत्रता की बात करते हुए
और भी अधिक घातक।
(२)
स्त्रियाँ, चाय सूँघकर बता देती हैं चीनी की सही मात्रा,
निगाहें सूँघकर पहचान लेती हैं
भेड़ की खाल में छिपे भेड़िये।
(३)
खुद  को लाचार दिखाने वाले पुरुष
अक्सर पाए जाते हैं बेहद शक्तिशाली
खुद  को ताकतवर बताने वाले उतने ही कमज़ोर,
बेहतर है कि वे सच ही बोलें
कि स्त्रियों को खूब आता है
झूठ पकड़ने का हुनर। 


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