शादी के जश्न में डूबे घराती-बराती
जब सो रहे होते हैं गहरी नींद
कुछ किशोर युवक देखते छिपकर अँधेरे कमरे में
नचनियों को, उतारते अपने मेकअप और कपड़े,
गहरी काली रात में दिप-दिप करती ढिबरी का प्रकाश
बना देता है चीजों को हज़ार गुना रहस्यमयी
उत्सुक हैं किशोर जानने को वर्जित बातें
लुका-छिपी का खेल ही तो है जीवन सारा कम से कम अभी उनके लिए
रोमांच पैदा करती हैं छिपी हुयी बातें उनके मासूम दिलों
कौतूहल और स्फूर्ति से भरे शरीरों में
लगाते अनुमान देखकर वे नचनियों को
क्या डालकर बनाया होगा उन्होंने औरतों सा मगर बनावटी उभार?
उतारेंगे किस तरह उनको नाच खत्म होने के बाद ?
कैसे होता है नचनियों का शरीर हमसे भिन्न इतना लचीला?
नाचते क्यों हैं आखिर वे ठुमक-ठुमककर इतना अच्छा?
होते हैं कैसे इतने सुन्दर वे भला?
जैसे-जैसे उतरता जाता है नचनियों का बाह्य आवरण
जश्न की नाच में उन पर मुग्ध छिपकर उनको देखते किशोरों का
आकर्षण भी उतरता जाता है
कुंठाग्रस्त-मासूम-उत्सुक-कामलोलुप उनकी दृष्टि
देखना चाहती थी कुछ और- दृश्य कुछ और ही था
सिर से नोच-नोचकर नकली बालों का विग निकालता
अधेड़ उम्र का दुबला-पतला, थका-हारा, हाँफता नचनिया
उतारता एक-एक कर गहने-कपड़े पाउडर-लाली
गपर-गपरकर मुँह में ठूँसता भोजन
दूसरे हाथ से निकालकर पढ़ता है इक पर्ची,
जिसमें इस सीज़न के सट्टों की तारीखें लिखी हैं।
जब सो रहे होते हैं गहरी नींद
कुछ किशोर युवक देखते छिपकर अँधेरे कमरे में
नचनियों को, उतारते अपने मेकअप और कपड़े,
गहरी काली रात में दिप-दिप करती ढिबरी का प्रकाश
बना देता है चीजों को हज़ार गुना रहस्यमयी
उत्सुक हैं किशोर जानने को वर्जित बातें
लुका-छिपी का खेल ही तो है जीवन सारा कम से कम अभी उनके लिए
रोमांच पैदा करती हैं छिपी हुयी बातें उनके मासूम दिलों
कौतूहल और स्फूर्ति से भरे शरीरों में
लगाते अनुमान देखकर वे नचनियों को
क्या डालकर बनाया होगा उन्होंने औरतों सा मगर बनावटी उभार?
उतारेंगे किस तरह उनको नाच खत्म होने के बाद ?
कैसे होता है नचनियों का शरीर हमसे भिन्न इतना लचीला?
नाचते क्यों हैं आखिर वे ठुमक-ठुमककर इतना अच्छा?
होते हैं कैसे इतने सुन्दर वे भला?
जैसे-जैसे उतरता जाता है नचनियों का बाह्य आवरण
जश्न की नाच में उन पर मुग्ध छिपकर उनको देखते किशोरों का
आकर्षण भी उतरता जाता है
कुंठाग्रस्त-मासूम-उत्सुक-कामलोलुप उनकी दृष्टि
देखना चाहती थी कुछ और- दृश्य कुछ और ही था
सिर से नोच-नोचकर नकली बालों का विग निकालता
अधेड़ उम्र का दुबला-पतला, थका-हारा, हाँफता नचनिया
उतारता एक-एक कर गहने-कपड़े पाउडर-लाली
गपर-गपरकर मुँह में ठूँसता भोजन
दूसरे हाथ से निकालकर पढ़ता है इक पर्ची,
जिसमें इस सीज़न के सट्टों की तारीखें लिखी हैं।
Capturing such marginalised experiences is your forte and special gift Anu.keep up the good work.
जवाब देंहटाएंthanks dear !
हटाएंVery touching n unique di
जवाब देंहटाएंशब्दों की श्रृखला और भावों की माला है आपकी प्रस्तुति |
जवाब देंहटाएंnice1
जवाब देंहटाएंइसी तरह होता है यथार्थ का पहला आघात . मानीखेज़ कविता .
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