(एन्तीपैत्रोस यूनान के सिसरो के काल के प्राचीनतम कवियों में से एक हैं. ये गीत उन्होंने अनाज पीसने की पनचक्की के आविष्कार पर लिखा था क्योंकि इस यंत्र के बन जाने के बाद औरतों को हाथ चक्की के श्रम से छुटकारा मिला था.
यह कविता श्रम-विभाजन से सम्बंधित प्राचीन काल के लोगों और आधुनिक काल के लोगों के विचारों के परस्पर विरोधी स्वरूप को भी स्पष्ट करती है. कार्ल मार्क्स ने अपनी प्रसिद्ध कृति "पूँजी" के पहले खंड पर इस कविता का उल्लेख किया है.)
आटा पीसने वाली लड़कियों,
अब उस हाथ को विश्राम करने दो,
जिससे तुम चक्की पीसती हो,
और धीरे से सो जाओ !
मुर्गा बांग देकर सूरज निकलने का ऐलान करे
तो भी मत उठो !
देवी ने अप्सराओं को लड़कियों का काम करने का आदेश दिया है,
और अब वे पहियों पर हलके-हलके उछल रही हैं
जिससे उनके धुरे आरों समेत घुम रहे हैं
और चक्की के भारी पत्थरों को घुमा रहे हैं.
आओ अब हम भी पूर्वजों का-सा जीवन बिताएँ
काम बंद करके आराम करें
और देवी की शक्ति से लाभ उठाएँ.
(कविता "स्त्री: मुक्ति एक सपना" पुस्तक से साभार. कविता का प्रस्तुतीकरण और टिप्पणी: रश्मि चौधरी)
स्त्रियों की मुक्ति का पहला गीत यहाँ प्रस्तुत करने के लिए आभार ...
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति
सुंदर ।
जवाब देंहटाएंbehtrin......ummid hai ye jo ummid is kavita mein chupi hai...wo ummmid jarur puri ho....aamin.
जवाब देंहटाएंएक मोहक फंतासी !
जवाब देंहटाएंदेवी ने अप्सराओं को लड़कियों का काम करने का आदेश दिया है,
जवाब देंहटाएंऔर अब वे पहियों पर हलके-हलके उछल रही हैं
जिससे उनके धुरे आरों समेत घुम रहे हैं
और चक्की के भारी पत्थरों को घुमा रहे हैं.
आओ अब हम भी पूर्वजों का-सा जीवन बिताएँ...
बहुत अच्छी और ऐतिहासिक रचना प्रस्तुत करने के लिए शुक्रिया.
सार्थक और एतिहासिक कविता का प्रस्तुतिकरण प्रशंसनीय है|
जवाब देंहटाएंसुधा भार्गव
subharga @gmail.com
ये रचना सुनी नहीं थी। पर ऐसी ही कई रचनाओं की याद आ गई। मुक्ति के सपने हजारों साल पहले भी देखे गए थे, पर आज भी सपना पूरा नहीं हो पाया है।
जवाब देंहटाएंकाम बंद करें और आराम से सो जाएँ ...
जवाब देंहटाएंक्या स्त्रियाँ ऐसा कर सकती है ...:):)
अच्छा लगा इस कविता को पढना ...!
ऐतिहासिक कविता की प्रस्तुति का आभार !
जवाब देंहटाएंmukti bahut hi sundar prayog hai ye..padhkar hook uththi hai..
जवाब देंहटाएंदुर्लभ कविता से परिचय कराने के लिए धन्यवाद।...अभी भी प्रासंगिक है।
जवाब देंहटाएंआभार इस कविता को हम तक पहुँचाने का "स्त्रियों की मुक्ति का पहला गीत" और उसके बारे में बताने का
जवाब देंहटाएंआराधना इसे 27 के बाद जनपक्ष पर भी पोस्ट कर दीजिये…
जवाब देंहटाएंBHUT SUNDER HAI KAVITA,SUKRIYA ES KO HM SB KE SATH SAAJHA KRNE KA.
जवाब देंहटाएंक्या सलाह है स्त्रियों को..... आभार कविता पढवाने के लिये.
जवाब देंहटाएंएक
जवाब देंहटाएंनायाब , दुर्लभ और ऐतिहासिक कृति से
साक्षात्कार करवाने के लिए
आभार स्वीकारें .
प्राचीन समय में यूनान में स्त्रियों के श्रम की महत्ता स्थापित की गई ।दासप्रथा से मुक्त होने के लिये भी उन्होने संघ्रर्ष किया । इसमे बहुत समय लगा ।किसानो ने अपनी मेहनत से और बुद्धि से नये नये अविष्कार किये । लेकिन उन्हे अपनी मेहनत का फल नही मिला । सामान्य व अभिजात्य ऐसे दो वर्ग हो गए । स्त्रियों को बहुत समय तक सामान्य सभा मे भाग लेने का अधिकार नही मिला यद्यपि देवी के रूप मे उन्हे पूजा जाने लगा । यह अप्सराओं वाला मिथक वहीं से आता है ।
जवाब देंहटाएंइस कविता में एक बहुत लम्बा इतिहास है इसीलिये इसका मार्क्स ने पूंजी के पहले खंड मे उल्लेख किया है ।
शरद जी,
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत धन्यवाद इस कविता के इतिहास पर प्रकाश डालने के लिए. आपको नहीं लगता कि हमारे देश में भी घरेलू कार्य, मातृत्व, पति की सेवा आदि कुछ ऐसी बातें हैं, जिन्हें मिथकों द्वारा औरतों के लिए अत्यधिक महत्त्वपूर्ण बनाया गया है. ऐसा नहीं है कि इन कार्यों में कोई बुराई है, पर उसे आदर्श नारी की छवि से ऐसे जोड़ दिया जाता है कि औरतें ये काम ना कर पाने पर खुद को अपराधी सा महसूस करने लगती हैं और समाज में भी बुरी औरत कही जाने लगती हैं. इसीलिये वो बाहर के काम से कितनी भी थककर आयें घर का काम तो उन्हें करना ही होता है.
shabdo ka pryog bahut hi sundar hai aur arth shabdo se bhi bada aur ghahra !bahut samay baad esa kuchh padne ko mila ...shukriya
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