शनिवार, 1 मई 2010

सोचकर तो देखें

कभी सोचते हैं हम
फाइव-स्टार होटलों में
छप्पन-भोग खाने से पहले
कि कितने ही लोग
एक जून रोटी के बगैर
तड़प-तड़प के मरते हैं ।

कभी सोचते हैं हम
आलीशान मालों में
कीमती कपड़े खरीदने से पहले
कि कितने बच्चे और बूढे
फटे -चीथड़े लपेटे
गर्मी में झुलसते
सर्दी में ठिठुरते हैं ।

कभी सोचते हैं हम
अपनी बड़ी-बड़ी गाड़ियों को
सैकड़ों लीटर पानी से
नहलाने से पहले
कि इसी देश के किसी कोने में
लोग बूँद-बूँद पानी को तरसते हैं ।

सोचते हैं हम कि
अकेले हमारे सोचने से
क्या फर्क पड़ेगा
कभी सोचकर तो देखें
एक बार तो मन ठिठकेगा...

(यह कविता पिछले वर्ष मजदूर दिवस पर लिखी थी...आज भी कुछ नहीं बदला है...और आगे भी शायद नहीं बदलेगा...पर, क्या हम हाथ पर हाथ धरे बैठे रहेंगे ??)

29 टिप्‍पणियां:

  1. kya kabhi log sochenge bhi...dekhna ye padega ki kahin bhavnayein bas kahani kavitaon me hi na reh jaye

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  2. सोंचते हैं हम कि
    हमारे अकेले सोंचने से
    क्‍या फर्क पडेगा

    पर इतना तो जरूर है
    कि सब मिलकर सोंचे
    तो पूरी दुनिया को ही
    स्‍वर्ग बना सकते हैं !!

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  3. एहसास की यह अभिव्यक्ति बहुत खूब

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  4. सोचते हैं हम किअकेले हमारे सोचने सेक्या फर्क पड़ेगाकभी सोचकर तो देखेंएक बार तो मन ठिठकेगा...
    AAj bahuda yahi sunane ko milta hai ki are kisi ke baare mein sochne se kya hoga.... lekin mera bhi yahi maanna hain ki agar kuch achha sochne se aur kahane se agar 100 mein se ek bhi aadmi mein kuch achha parivartan aata hai to kya yah kam hai....
    Bhavpurn chintaniya aur saarthak prastuti ke liye dhanyavaad.

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  5. अगर थोड़ा भी सोच कर क्षण भर को ही ठिठक जायें तो तस्वीर बदल सकती है.


    बहुत गहन विचार देती रचना, बधाई.

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  6. सोचते हैं और जो बन पड़े वो करते भी हैं ...
    जागरूक बनती अच्छी कविता ..

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  7. मन ठिठकेगा...
    और फिर ज़रूर ठिठकेगा --

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  8. पर हम सोचें कैसे और करें क्या आराधना ?

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  9. आप यहां भी हैं...
    यह सोचना ही, पूरी दुनिया को सभी के लिए बेहतर बनाने की ताकत पैदा करेगा...

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  10. पिछले साल दिल्ली की ऊँची पॉश कही जाने वाली कॉलोनी में ही देखा कितनी बेदर्दी से पानी की बरबादी करते है..पढ़ेलिखे सम्पन्न लोग...

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  11. Is n't it a irony, that there is a class in Poor India i.e. Bharat Mahan, who spends as much money on few pegs of drink in their pleasant evening, Which might not be a full month salary of a Babu ?

    It happens in India only,
    Hunh, Incredible India !

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  12. बहुत खूब...यदि एक एक कर सब सोचने लगें तो बहुत कुछ हो सकता है...एक कदम तो बढ़ेगा यदि एक ने भी सोचा...

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  13. सोचने को मजबूर करती .... बहुत अच्छी रचना..

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  14. बिल्कुल सही कहा………।सोचना तो पडेगा ही कब तक भागेंगे कुछ देर ठहरना होगा।
    आपकी पोस्ट चर्चा मंच में शामिल कर ली गयी है।

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  15. sochte hai jarur amal bhi krne ki koshish karte hai .
    apki kvita bahut logo ko sochne ke liye vivash kregi ,

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  16. कभी सोचते हैं हम .....

    जी हाँ ,, यही सोच ही तो है
    जो ,
    अगर सभी कुछ नहीं ,
    तो
    कुछ न कुछ तो ज़रूर बदल सकती है

    नेक सोच ही किसी नेक काम की शुरुआत होती है

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  17. badhiya kavita..ek soch ko cheedti to hai .. ise padh kar aadmi ek baar bhi agar is kavita ke bhav ko amal me lata hai to kavita sarthak ho jayegi ..

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  18. सच है अगर हम एक बार भी सोच लें और मन ठिठक जाए .... किसी एक भूखे को एक जून का खाना मिल ही जाएगा ... पर ऐसा तब होगा जब संवेदनाएँ जिंदा होंगी दिल में .... बहुत ही अच्छा लिखा है आपने ....

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  19. बहुत सही लिखा है...इस सोच के साथ अगर खुद से शुरुआत करें तो एक अच्छी पहल होगी.

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  20. सोचना तो पड़ेगा औऱ जो कुछ कर सकें करना ही होगा....स्थिती में बदलाव तो आ ही सकेगा अगर कई लोग कुछ थोड़ा ही कर लें..सोचने का वक्त कम है....जो जहां है कुछ करे, तो बदलाव आ सकता है ..पूरी स्थिती कभी नहीं बदलती ..जब तक दुनिया है कुछ न कुछ तो उंच नीच रहेगी ही..

    कविता सीधी सरल और दिल मे उतरने वाली है...

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  21. kavita main jo bhavnaye nikal ke aati hain agar hum vo puri kar de ,to na to kahin koi bhukha marega aur na kahin koi pyas se marega ,magar hamara swarth hamara keval apne baare main sochan hume in sab cheejo se door le jaata hain ,aur hum chah kar bhi kuch nahi kar paate hain
    bahut sundar kavita
    hamre blog par aaapke comment ka intzar rahega

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  22. कभी सोचते हैं हमअपनी बड़ी-बड़ी गाड़ियों कोसैकड़ों लीटर पानी सेनहलाने से पहलेकि इसी देश के किसी कोने मेंलोग बूँद-बूँद पानी को तरसते हैं ।

    बहुत गहरी बात कह दी मुक्ति जी ..... बहुत खूब .....!!

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  23. उत्कृष्ट भावों की प्रशंसनीय रचना ।

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  24. सोचते हैं हम कि
    अकेले हमारे सोचने से
    क्या फर्क पड़ेगा
    कभी सोचकर तो देखें
    एक बार तो मन ठिठकेगा...

    imaandari ki baat to yahi hai ki mere sath to donoN stithiyaN hoti haiN.

    yah bhi :
    अकेले हमारे सोचने से
    क्या फर्क पड़ेगा

    Aur yah bhi :
    कभी सोचकर तो देखें
    एक बार तो मन ठिठकेगा...

    pahli stithi me bachpan se lekar ab tak ke anubhav haiN aur parinamswarrup ek aasmaan jitna badaa niraashavad hai.
    Dusri stithi ke samarthan me ladkar, thak kar, baithkar, fir uthkar ladte huye mili chhoti-moti safaltayeN haiN. Confussion se baahar aane ki jaddo-jahad hai.

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  25. छप्‍पन भोग के साथ फाईब स्‍टार को बिंब के रूप में समेटने के लिए धन्‍यवाद.

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  26. ठिठक कर सोचकर देखने से कुछ प्रवृत्ति तो होगी ही ! संवेदना के अँखुए तो फूटेंगे ही !
    पर पहले हम सोचने की ओर प्रवृत्त हों !

    कविता का आभार ।

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