मंगलवार, 18 अगस्त 2009

ज़िन्दगी फिर से

चारों ओर फैली है धुँध सी
फ़ीका चाँद, चाँदनी धुँधली
ज़िन्दगी के रंग धुल गये सारे
दुःखों की बदली में छुप गये तारे,
टूटे-फूटे अरमानों की
फूस बटोर
उम्मीदों की चिंगारी को ढूँढ़
हौसलों की आग जला ली जाये,
आओ!
ज़िंदगी फिर से
जी ली जाये.

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