चारों ओर फैली है धुँध सी
फ़ीका चाँद, चाँदनी धुँधली
ज़िन्दगी के रंग धुल गये सारे
दुःखों की बदली में छुप गये तारे,
टूटे-फूटे अरमानों की
फूस बटोर
उम्मीदों की चिंगारी को ढूँढ़
हौसलों की आग जला ली जाये,
आओ!
ज़िंदगी फिर से
जी ली जाये.
बहुत खुब। शानदार रचना के लिए बधाई ।
जवाब देंहटाएंमुक्ति जी
जवाब देंहटाएंसादर वन्दे!
सुन्दर रचना. बधाई हो !
रत्नेश त्रिपाठी
आओ फिर से जिंदगी जी ली जाये ...शुभ हो ...शुभकामनाएं ..!!
जवाब देंहटाएंsunder rachana ,
जवाब देंहटाएं