feminist poems
एक स्त्री के मन से निकले कुछ शब्द, कुछ प्रश्न और तमाम अटपटी-अनकही-अनसुलझी बातें...
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बुधवार, 8 जुलाई 2009
एक छोटा सा घर
चाह है एक छोटे से घर की
जिसकी दीवारें बहुत ऊँची न हो
ताकि हवाएँ बिना रोक-टोक
इधर से उधर जा सकें
1 टिप्पणी:
Razi Shahab
8 जुलाई 2009 को 3:46 pm बजे
bahut achcha
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