सोमवार, 30 नवंबर 2009

औरत पागल होती है (emotional fool)

तुमने नहीं किया वादा
ज़िन्दगी भर साथ निभाने का
फिर भी उसने
तुम्हारा साथ दिया,
प्यार करता हूँ
ये भी नहीं कहा तुमने
पर उसने शिद्दत से
तुम्हें प्यार किया
तुमने नहीं कहा
लौट के आने के लिये
तब भी उसने
इन्तज़ार किया
मिल गया तुम्हें कोई और साथी
पर उसे तुमसे शिकायत नहीं
अब भी वह
आस लगाये बैठी है
कि तुम कभी तो
कह दो उससे
कि तुमने
एक पल के लिये सही
एक बार उसे प्यार किया
मैं खीझ जाती हूँ
उसकी दीवानगी पर
धोखे पर धोखा खाती है
पर प्रेम में पागल हुई
जाती है
फिर सोचती हूँ
कि ये पागलपन न होता
तो कितने दिन चलती दुनिया,
छली पुरुष से त्रस्त
ये सृष्टि
औरतों के प्यार पर ही तो टिकी है
धोखा खाती है
और प्यार करती है
दर्द सहती है
और सृजन करती है
हाँ,
औरत पागल होती है
दीवानी होती है.

21 टिप्‍पणियां:

  1. bahut khuub likha hai Aradhana ji,
    [Title sahi diya hai--Emotional fool!Stri ke samarpan ko pagalpan hi kaha jata rahaa hai.]

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  2. kafi badia likha hai aapne ....

    छली पुरुष से त्रस्त
    ये सृष्टि
    औरतों के प्यार पर ही तो टिकी है
    धोखा खाती है
    और प्यार करती है
    दर्द सहती ह

    par is line se sahmaat nahi hu.....sristi tiki hai aurat ke pyare par..per purush hamesha chali nahi hota.....woh bhi dard sahta hai..aajkal to jayda hi....rajkumar ke sapne dekhna gunaha nahi hai par jo rajkumar na ho use bhi to maan meet bayna ja sakta hai

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  3. छली पुरुष से त्रस्त
    ये सृष्टि
    औरतों के प्यार पर ही तो टिकी है
    सही कहा है प्यार न हो तो दुनिया का टिक पाना सम्भव नही है
    बेहतरीन रचना

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  4. औरत प्यार करती है , दुःख सहती है , सृजन करती है ...तभी तो पागल होती है .....ये सब हमारे गुण है तो पागल कहला कर निहाल ही हुए ना ...
    ये किसी फेमिनिस्ट की कविता नहीं हो सकती :) ....!!

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  5. औरतों के प्यार पर ही तो टिकी है
    धोखा खाती है
    और प्यार करती है
    दर्द सहती है
    और सृजन करती है
    हाँ,
    औरत पागल होती है
    दीवानी होती है.
    सच मे ही इमोशनल फूल होती है रचना बहुत अच्छी लगी बधाई

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  6. वाणीगीत जी,
    मैंने वास्तविकता का वर्णन किया है. कवि कविता लिखता है और सभी लोग अपने-अपने अनुसार व्याख्या करने के लिये स्वतंत्र हैं.मैं एक कवयित्री हूँ, इसीलिये एक औरत के प्रेम को समझ पाती हूँ और एक फ़ेमिनिस्ट हूँ, इसीलिये इस पर गुस्सा आता है. वास्तविकता को बदला तो नहीं जा सकता है. अपनी कई फ़ेमिनिस्ट सहेलियों को प्रेम में पागल होते देखा तो कविता लिख डाली.

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  7. औरतों के प्यार पर टिकी सृष्टि को सृष्टिकार ही धोखा देते रहे हैं................. इंतज़ार कल भी था, आज भी है और सच्चा प्यार करने वालों को कल भी रहेगा.
    कविता सुन्दर लगी....बधाई

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  8. मुक्ति दीदी

    आपसे से छोटा जरुर हूँ परन्तु जहाँ तक मैंने देखा है या अनुभव किया है , उससे तुलना करने पर आपकी कविता से बिल्कुल भी सहमत नहीं हूँ । धोखे हमेशा पुरुष वर्ग ही नही देता , महिलाएं भी कम नहीं है । हाँ अगर ये किसी की व्यक्तिगत बात हो तो मान सकता हूँ , परन्तु सारे पुरुष वर्ग को धोखेबाज कहना तो सही नहीं है । लड़किया भी कम दुःख नहीं देती ।

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  9. दूबे भाई, मैंने ये अधिकांश लोगों के लिये कही है. अपवाद हर जगह होते हैं. औरतें भी धोखा दे सकती हैं और पुरुष भी सच्चा प्यार कर सकते हैं. पर ज़्यादातर वही होता है, जो मैंने लिखा है.

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  10. आपकी कविता में विरोधाभास है...

    तुमने नहीं किया वादा
    ज़िन्दगी भर साथ निभाने का
    जब कोई वादा था ही नहीं तो फिर कैसा साथ निभाना ..और क्यूँ ???


    प्यार करता हूँ
    ये भी नहीं कहा तुमने
    जब उसने प्यार करता हूँ ये भी नहीं कहा ...फिर प्यार की अपेक्षा ही क्यूँ ???

    तुमने नहीं कहा
    लौट के आने के लिये
    जब जब लौट कर आने का कोई वादा नहीं तो फिर कैसा इंतज़ार ???

    ये तो सरासर पागलपन ही है....ऐसे एकतरफा प्यार का हश्र तो और क्या होना है ??
    सच पूछिए तो मुझे आपकी कविता समझ में नहीं आई...
    शायद मेरी पहुच से बाहर है....

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  11. अदा जी ,

    अगर सारी भाषायी सज धज छोड़ दूँ और सिर्फ एक छिछला शब्द कहूँ की कुछ लोग फसाये रखने में विश्वास रखते हैं ..न प्यार /न इंतज़ार /न कोई वादा .....मुक्ति का आक्रोश उस कमज़ोर स्त्री पर है .....और टाइटिल एकदम सटीक ....

    सादर

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  12. mukti ji
    aapki line theek hai...
    par sirf ek change kar raha hu..
    likh dia hai..
    अब भी वह
    आस लगाये बैठी/Betha है
    कि तुम कभी तो
    कह दो उससे
    कि तुमने
    एक पल के लिये सही
    एक बार उसे प्यार किया

    badlte time ke saath dono tahraf se dhokha ho raha hai...

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  13. sach agr puruso ki trh stree v prem ke bdle dhokha deti to ye duniya yu hi na chal rhi hoti...achi hai kavita.

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  14. Vani geet se sahmat. Aapki har kavita me mukti ki pukar hoti hain par ye kavita to gulami ko jari rakhne ki prasansa karti hain. Hardly a feminist standpoint.

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  15. Mujhe dar lagta hain un aaurto se jo apna sab kuch samarpan kar deti hain.

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