हमें कहा गया कि कुछ भी करने से पहले
इजाज़त ली जाए उनकी
‘लड़कियाँ आज्ञाकारी होनी ही चाहिए’
किसी भी सूरत में,
हमने हर काम करने से पहले उनकी इजाज़त
ली
ये बात और है कि किया वही जो दिल ने
कहा
कि दिल और दिमाग
किसी और के कहने से नहीं चलते,
और कुछ 'सोचने' से पहले
इजाज़त लेने की बात भी नहीं थी।
हमें निर्देश दिया गया था
कि चलते समय ध्यान रखना
दो क़दमों के बीच का फासला
न हो एक फुट से ज्यादा
कि लड़कियाँ लंबी छलाँगें लगाती अच्छी नहीं
लगतीं,
हमने उनकी बात मानी
और उसी एक फुट के अन्दर
बसा ली अपनी दुनिया ,
कम से कम हमारी दुनिया अब
हमारे क़दमों के नीचे थी
और हमारे कदम भी ज़मीन पर।
जब हमने लिख दीं ये सारी बातें
तो पकड़े गये
हम पर चला मुकदमा 'नियमों के उल्लंघन' का,
अपने ही विरुद्ध गवाही देने को
बाध्य किया गया
जबकि ये बात संविधान के विरुद्ध थी,
पर हमने वो भी किया
अपने ही विरुद्ध गवाही दी,
और कहा कि सब कुछ काबू में था
जब तक हमने तुम्हारी हर बात मानी
अब, बात हद से आगे बढ़ गयी है,
अब तो मेरा ही अस्तित्व मेरी बात नहीं
मानता,
अपने विरुद्ध जाने के लिए हमसे
तुमने ही तो कहा था।