गुरुवार, 13 अक्टूबर 2011

मेरे दोस्त

मैं खुद को आज़ाद तब समझूँगी
जब सबके सामने यूँ ही
लगा सकूँगी तुम्हें गले से
इस बात से बेपरवाह कि तुम एक लड़के हो,
फ़िक्र नहीं होगी
कि क्या कहेगी दुनिया?
या कि बिगड़ जायेगी मेरी 'भली लड़की' की छवि,
चूम सकूँगी तुम्हारा माथा
बिना इस बात से डरे
कि जोड़ दिया जाएगा तुम्हारा नाम मेरे नाम के साथ
और उन्हें लेते समय
लोगों के चेहरों पर तैर उठेगी कुटिल मुस्कान

जब मेरे-तुम्हारे रिश्ते पर
नहीं पड़ेगा फर्क
तुम्हारी या मेरी शादी के बाद,
तुम वैसे ही मिलोगे मुझसे
जैसे मिलते हो अभी,
हम रात भर गप्पें लड़ाएँगे
या करेंगे बहस
इतिहास-समाज-राजनीति और संबंधों पर,
और इसे
तुम्हारे या मेरे जीवनसाथी के प्रति
हमारी बेवफाई नहीं माना जाएगा

वादा करो मेरे दोस्त!
साथ दोगे मेरा,
भले ही ऐसा समय आते-आते
हम बूढ़े हो जाएँ,
या खत्म हो जाएँ कुछ उम्मीदें लिए
उस दुनिया में
जहाँ रिवाज़ है चीज़ों को साँचों में ढाल देने का,
दोस्ती और प्यार को
परिभाषाओं से आज़ादी मिले.