गुरुवार, 13 अक्टूबर 2011

मेरे दोस्त

मैं खुद को आज़ाद तब समझूँगी
जब सबके सामने यूँ ही
लगा सकूँगी तुम्हें गले से
इस बात से बेपरवाह कि तुम एक लड़के हो,
फ़िक्र नहीं होगी
कि क्या कहेगी दुनिया?
या कि बिगड़ जायेगी मेरी 'भली लड़की' की छवि,
चूम सकूँगी तुम्हारा माथा
बिना इस बात से डरे
कि जोड़ दिया जाएगा तुम्हारा नाम मेरे नाम के साथ
और उन्हें लेते समय
लोगों के चेहरों पर तैर उठेगी कुटिल मुस्कान

जब मेरे-तुम्हारे रिश्ते पर
नहीं पड़ेगा फर्क
तुम्हारी या मेरी शादी के बाद,
तुम वैसे ही मिलोगे मुझसे
जैसे मिलते हो अभी,
हम रात भर गप्पें लड़ाएँगे
या करेंगे बहस
इतिहास-समाज-राजनीति और संबंधों पर,
और इसे
तुम्हारे या मेरे जीवनसाथी के प्रति
हमारी बेवफाई नहीं माना जाएगा

वादा करो मेरे दोस्त!
साथ दोगे मेरा,
भले ही ऐसा समय आते-आते
हम बूढ़े हो जाएँ,
या खत्म हो जाएँ कुछ उम्मीदें लिए
उस दुनिया में
जहाँ रिवाज़ है चीज़ों को साँचों में ढाल देने का,
दोस्ती और प्यार को
परिभाषाओं से आज़ादी मिले.

48 टिप्‍पणियां:

  1. ्वाह ……………मुक्ति जी बहुत सुन्दर भावो को संजोया है लेकिन ऐसे समाज की अभी तो कल्पना भी नही कर सकते मगर ऐसा भी हो सकता है इसे भी नकारा नही जा सकता।

    जवाब देंहटाएं
  2. वो सुबह कभी तो आएगी...उस सुबह का इंतजार कर।

    जवाब देंहटाएं
  3. दोस्ती और प्यार को
    परिभाषाओं से आज़ादी मिले... kaash

    जवाब देंहटाएं
  4. आराधना कुछ दोस्त हमसे बेवजह के दकियानूसी कारणों से दूर हो जाते है जबकि हम जानते है वो दोस्त हमारी बहुत सी सहेलियों से कहीं बेहतर है ,दुनिया की फिक्र ,साथ चलने पर वक्र होती निगाहें एक अच्छी खासी सहज दोस्ती में असहजता ला देती है ...ऊपर से बेकार की नसीहते और दोस्ती में अवांछित कुछ ढूँढने की कोशिशे . एक दिन हमपर थोप देती है मर्यादा ....
    बेहद पसंद आई तुम्हारी ये कविता

    जवाब देंहटाएं
  5. मुक्ति यह स्थिति, यह मुक्ति केवल हम ही ला सकते हैं.वैसे मुम्बई जैसी जगह में दुनिया को अन्तर नहीं पड़ेगा, पड़ेगा तो मित्र व सखी के पत्नी व पति को ही. और इस अधिकारबोध से मुक्ति पाना बहुत कठिन है.जिस दिन प्रेम अधिकारबोध से मुक्त हो जाएगा, जीवन सहज हो जाएगा.
    घुघूतीबासूती

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत ख़ूबसूरत !!
    यक़ीनन ,,,दोस्ती और प्यार को
    परिभाषाओं से आज़ादी मिले.

    ताकि खुली हवा में साँस ली जा सके क्योंकि हर नारी अपनी मर्यादाओं से अवगत होती है

    जवाब देंहटाएं
  7. वादा करो मेरे दोस्त!
    साथ दोगे मेरा,
    भले ही ऐसा समय आते-आते
    हम बूढ़े हो जाएँ,
    या खत्म हो जाएँ कुछ उम्मीदें लिए
    उस दुनिया में
    जहाँ रिवाज़ है चीज़ों को साँचों में ढाल देने का,
    दोस्ती और प्यार को
    परिभाषाओं से आज़ादी मिले.

    दोस्ती और प्यार को अलग कर सोचने की कोशिश. यह एक बेहतरीन भावनात्मक कविता है.

    बहुत बधाई.

    जवाब देंहटाएं
  8. यह किसके लिए है :) ?
    वाणी शर्मा की पोस्ट पर इस कविता पर यह कमेन्ट कर आ रहा हूँ वहां पूरी नहीं पढ़ा था ...
    मैं व्यक्ति की निजी स्वतंत्रता को ज्यादा सम्मान देता हूँ इसलिए आराधना की कविता मुझे ज्यादा स्वीकार्य और सहज लगी ...हाँ ऐसी स्वतंत्रता देश काल से थोडा तारतम्य बिठा सके तो ठीक हैं नहीं तो यह भी ठीक है -
    लीक छोड़ तीनों चलें शायर सिंह सपूत

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत सुंदर रचना है। मुझे पूरा विश्वास है कि ऐसा समाज भविष्य में बनना तय है।

    जवाब देंहटाएं
  10. हम रात भर गप्पें लड़ाएँगे
    या करेंगे बहस
    इतिहास-समाज-राजनीति और संबंधों पर,
    और इसे
    तुम्हारे या मेरे जीवनसाथी के प्रति
    हमारी बेवफाई नहीं माना जाएगा

    बहुत खूबसूरत ख़याल ... यदि जीवन साथी का ही सहयोग मिल जाए तो ..वो एक दूसरे को अच्छे से समझें ... तो ऐसी स्थिति आने में वक्त नहीं लगेगा ... दुनिया तो बाद में आती है ... बहुत पसंद आई यह रचना

    जवाब देंहटाएं
  11. बहुत ही अच्छी लगी आपकी यह कविता।
    -----
    कल 15/10/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  12. कॉफी हॉउस की उस शाम की याद दिला दी तुमने तो आराधना जब हमारी टेबल के ठीक सामने बैठे उस जोड़े की 'हरकतों' से बहुत असहज हो आयी थीं तुम.. मेरे उनका समर्थन करने पर असहज हो आया तुम्हारा चेहरा आज भी याद है मुझे.. और उसके बाद की आनंद भवन के सामने उस नए खुले रेस्टोरेंट 'चाहत' की वह शाम जब एक और जोड़ा पहले वाले जोड़ों से काफी सहज भाव में था और उससे भी ज्यादा सहज तुम.
    अच्छा लगा कि एक दशक से भी ज्यादा पहले की उस शाम से तुम बहुत आगे निकल आयी हो. बाकी बस यह कि कुछ दोस्त हमेशा दोस्त रहते हैं और उनमे से एक तो मैं शुमार हूँ ही..

    जवाब देंहटाएं
  13. कभी कभी कितना अकेली पड़ जाती हो... होता है ना भीड़ में भी भी लगता है कोई साथ नहीं होगा. तब ऐसे ही भाव उठते हैं.. शुक्र है दुनिया पर तुम्हारा अभी भी यकीन है.. देखो समर ने कितनी अच्छी बात कही है...

    ये एक औरत के दिल से निकले कुछ शब्द ही हैं.

    जवाब देंहटाएं
  14. परिभाषाओं से परे जीने की तड़प और कश्मकश की सुन्दर रचना ...
    बेहतरीन

    जवाब देंहटाएं
  15. कविता पढ़ी..और कमेंट्स भी..
    कई लोगो ने लिखा है...वह सुबह कभी तो आएगी..वो दिन कभी तो आएगा. घुघूती जी ने कहा...मुंबई जैसी जगह में दुनिया को अंतर नहीं पड़ता...

    थोड़ा आगे बढ़कर कहूँ...सिर्फ हमारे माइंड सेट की बात है...वरना...महानगरो में तो ऐसे दिन आ चुके हैं...जब सहकर्मी साथ काम करते हैं...दौरे पर जाते हैं..अच्छे दोस्त बन जाते हैं...तो ये सब बहुत अनचीन्हा ,अनजाना नहीं रह जाता . कई बार खुद पति या पत्नी मना कर देते हैं कि तुमलोग दोस्त हो...तुमलोग मिल आओ...और पीछे से वे यह सोच सोच माथा नहीं खराब करते कि दोनों क्या कर रहे होंगे..इसलिए कि उनके भी अपने दोस्त होते हैं...और उन्हें भी पता होता है...कि मिलकर क्या करते हैं.
    ऐसी आदर्श स्थिति बहुत कम है..पर है....और आने वाले दसेक वर्षों में जब ज्यादा से ज्यादा स्त्रियाँ ,घर से बाहर निकल कर काम करने लगेंगीं तो खुद-ब-खुद इस तरह की आदर्श स्थिति आम हो जायेगी.
    भले ही ऐसा समय आते-आते
    हम बूढ़े हो जाएँ,
    या खत्म हो जाएँ कुछ उम्मीदें लिए
    उस दुनिया में
    जहाँ रिवाज़ है चीज़ों को साँचों में ढाल देने का,
    दोस्ती और प्यार को
    परिभाषाओं से आज़ादी मिले.

    बूढे नहीं होना पड़ेगा मुक्ति....ऐसी स्थिति दूर नहीं....:)

    सारी स्त्रियों के मन के भाव बड़े सुन्दर तरीके से कविता में ढाल दिया है..

    जवाब देंहटाएं
  16. मुझे बदलना रूढी बातें, रिश्ते नाते खालीपन
    वही ज़माना मुझको लाना, जो चाहे कर डाले मन

    जवाब देंहटाएं
  17. तुम्हारी कल्पना किसी का सच हो सकता है...
    जिन्हें रिश्तों पर प्रेम और विश्वास होता है...
    उनके लिए सच कड़वा नहीं सहज होता है..
    रश्मि रविजा की टिप्पणी ने कविता और टिप्पणियों को समेट कर खूबसूरत रूप दे दिया......

    जवाब देंहटाएं
  18. chalo tumne to isko paribhashaon se pare gadha hai..badhai ki patr ho tum...vakai!!

    जवाब देंहटाएं
  19. simply awsm........ just loved it.....n really wish that ppl should grow upto that level

    जवाब देंहटाएं
  20. बहुत ही खुबसूरत....और सार्थक अभिवयक्ति.....

    जवाब देंहटाएं
  21. itne badlaav aa chuke hain to vo din bhi door nahi ki

    तुम्हारे या मेरे जीवनसाथी के प्रति
    हमारी बेवफाई नहीं माना जाएगा

    sunder, bebak prastuti.

    जवाब देंहटाएं
  22. Lovely creation... Check out this Philosophical Hindi Poem Too... And do follow the blog...

    http://loveisaspiritualforce.blogspot.com/2011/10/dhoop-sab-pee-ke-sanvar-jaao.html

    जवाब देंहटाएं
  23. एक प्यार का नगमा है
    मौजों की रवानी है.....
    जिंदगी और कुछ भी नहीं
    तेरी-मेरी कहानी है....

    जवाब देंहटाएं
  24. Agree with the 'Girl next Door'.
    शायद यह स्वप्न कभी हकीकत भी बन पाए !

    जवाब देंहटाएं
  25. बहुत सार्थक सोच...कभी तो अवश्य सच होगी..दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें!

    जवाब देंहटाएं
  26. सिर्फ एक जिन्दंगी हैं. उसे अपने ही तरीके से जिया जाये. कुछ रिश्तो को परिभाषित न ही किया जाये तो अच्छा हैं.

    जवाब देंहटाएं
  27. एक बढ़िया कविता जो लम्बे विमर्श के लिए प्रेरित करती है...छूट रही थी।

    मुझे नहीं लगता कि वह दिन आ पायेगा जिसकी कल्पना की गई है कविता में। वह दिन कहां होगा जहां सिर्फ प्रेम ही प्रेम होगा सभी के दिलों में! प्रेम नहीं मांगेगा प्रत्युत्तर, नहीं होगी अधिकार की भावना! अपनो को दूसरे से गलबहियां करते हुए भी सहज भाव से देखने का उदार मन!! मुझे तो नहीं लगता। क्या मिट जायेगा द्वेष, क्रोध, लोभ इस जहां से? बिना इसके, आजादी कहां संभव है प्रेम की! हाँ, कामना करता हूँ कि हो वैसा ही जैसा लिखा है आपने।

    जवाब देंहटाएं
  28. एक ब्लॉग सबका में अपने ब्लॉग शामिल करने के लिए निम्न ई-मेल पर अपने ब्लॉग का यू.आर.एल.{URL} भेज दीजिए। sawaisinghraj007@gmail.com,
    sonuagra0009@gmail.com
    और
    आप कमेन्ट के साथ भी ब्लॉग का यू.आर.एल.{URL} दे सकते !
    http://apnaauraapkablog.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं
  29. आप दो महीने से कहां लापता हैं पता नहीं....उम्मीद करता हूं कि देर से ही सही नव वर्ष की मेरी शुभकामनाएं आप तक जरुर पहुंच जाएंगी......लापता गंज से निकल कर अगर आपका पता वापस गुलजार हो तो अच्छा लगेगा..

    जवाब देंहटाएं
  30. आपके ब्लोग की चर्चा गर्भनाल पत्रिका मे भी है और यहाँ भी है देखिये लिंक ………http://redrose-vandana.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं
  31. रश्मिजी से आपके ब्लॉग का पता मिला और इस तरह पता मिला एक खूबसूरत रचना संसार का। उम्मीद है आपको आगे भी पढ़ते रहेंगे..

    जवाब देंहटाएं
  32. dosti jindabad:) ka nara buland ho jayega.. jis din aapke kavita ki soch sachchai me badal jayegi:)

    जवाब देंहटाएं
  33. Mukti ji achha likhne ke baawjood aap kaafi samay se shakriya najar nahi aa rahi... iska kya kaaran hai...

    जवाब देंहटाएं
  34. वाह बहुत खूब

    पर क्या ऐसा कोई दिन आएगा ...ऐसा होना संभव हैं क्या ????

    जवाब देंहटाएं
  35. काश वह दिन आये कि आपकी कल्पना साकार हो जाये |

    जवाब देंहटाएं
  36. वादा करो मेरे दोस्त!
    साथ दोगे मेरा,
    भले ही ऐसा समय आते-आते
    हम बूढ़े हो जाएँ,
    या खत्म हो जाएँ कुछ उम्मीदें लिए
    उस दुनिया में
    बहुत ही बढिया ...

    जवाब देंहटाएं
  37. या खत्म हो जाएँ कुछ उम्मीदें लिए
    उस दुनिया में
    जहाँ रिवाज़ है चीज़ों को साँचों में ढाल देने का,
    दोस्ती और प्यार को
    परिभाषाओं से आज़ादी मिले

    बहुत सुन्दर

    जवाब देंहटाएं
  38. बहुत अच्छा लिखा है। यह सब देखने के लिये लंबी इंतजार न करना पड़े यह कामना है।

    जवाब देंहटाएं