हमें कहा गया कि कुछ भी करने से पहले
इजाज़त ली जाए उनकी
‘लड़कियाँ आज्ञाकारी होनी ही चाहिए’
किसी भी सूरत में,
हमने हर काम करने से पहले उनकी इजाज़त
ली
ये बात और है कि किया वही जो दिल ने
कहा
कि दिल और दिमाग
किसी और के कहने से नहीं चलते,
और कुछ 'सोचने' से पहले
इजाज़त लेने की बात भी नहीं थी।
हमें निर्देश दिया गया था
कि चलते समय ध्यान रखना
दो क़दमों के बीच का फासला
न हो एक फुट से ज्यादा
कि लड़कियाँ लंबी छलाँगें लगाती अच्छी नहीं
लगतीं,
हमने उनकी बात मानी
और उसी एक फुट के अन्दर
बसा ली अपनी दुनिया ,
कम से कम हमारी दुनिया अब
हमारे क़दमों के नीचे थी
और हमारे कदम भी ज़मीन पर।
जब हमने लिख दीं ये सारी बातें
तो पकड़े गये
हम पर चला मुकदमा 'नियमों के उल्लंघन' का,
अपने ही विरुद्ध गवाही देने को
बाध्य किया गया
जबकि ये बात संविधान के विरुद्ध थी,
पर हमने वो भी किया
अपने ही विरुद्ध गवाही दी,
और कहा कि सब कुछ काबू में था
जब तक हमने तुम्हारी हर बात मानी
अब, बात हद से आगे बढ़ गयी है,
अब तो मेरा ही अस्तित्व मेरी बात नहीं
मानता,
अपने विरुद्ध जाने के लिए हमसे
तुमने ही तो कहा था।
अब तो मेरा ही अस्तित्व मेरी बात नहीं मानता,
जवाब देंहटाएंअपने विरुद्ध जाने के लिए हमसे
तुमने ही तो कहा था।
बस अस्तित्व की पहचान हो जाए, उसे अपनी आवाज़ मिल जाए
फिर कुछ भी बाकी नहीं...एचीव करने को
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जवाब देंहटाएंअब तो मेरा ही अस्तित्व मेरी बात नहीं मानता, अपने विरुद्ध जाने के लिए हमसे
जवाब देंहटाएंतुमने ही तो कहा था।
सटीक .... सुंदर प्रस्तुति
बहुत अच्छा कविता है. ऐशो आराम की जिन्दगी जीने वाली लड़कियां लाईफ में कुछ भी ज्यादा नहीं करती जितनी आज झोपड़ी में पली बढ़ी लड़की कर लेती है. इस कविता के माध्यम से वे लड़कियां जरुर अपनी लाईफ को बदल सकती है जिसके लिए कविवर ने इस कविता में जिक्र किया है.
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जवाब देंहटाएंगजब का लिखा है ! कटु यथार्थ ! लेकिन मुक्ति जी जब ये सत्य समझ आ जाए तभी तो असली मुक्ति है नारी की ! एक फुट में ज़िन्दगी जो समेटी थी उसे विस्तार देना चाहिए ....लम्बी छलांगें और कुलाचें भरना होगा उन्मुक्त हिरनी की तरह ...स्त्री को भी हक है अपना जीवन अपनी तरह से जीने का !
.
हमने उनकी बात मानी
जवाब देंहटाएंऔर उसी एक फुट के अन्दर
अपनी सारी दुनिया बसा ली,
कम से कम हमारी दुनिया अब
हमारे क़दमों के नीचे थी
और हमारे कदम भी ज़मीन पर।...और यह ज़मीन कभी कोई नहीं छीन सकता . रक्त बहा देने से क्या होगा, ज़मीन तो हमारी ही होगी - तुम्हारा ज़मीर तुम्हें भले न धिक्कारे, पर यह ज़मीन सच बनकर सामने होगी
अब तो मेरा ही अस्तित्व मेरी बात नहीं मानता,
जवाब देंहटाएंअपने विरुद्ध जाने के लिए हमसे
तुमने ही तो कहा था।
बहुत गहरी बात कह दी ………शानदार प्रस्तुति।
@ब्लॉग बुलेटिन,
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !
मौके की दरकार मिलने की देर होती है पंक्षी हवा में परवाज कर लेता है। सवाल इस बात का नहीं कि कौन कितनी उंचाई पर उड़ता है....हौंसलों में जान होती है तो आसमां की हद भी कम पड़ जाती है। यही आज भारत की लड़कियां दुनिया को दिखा रही हैं। देखिन न टेनिस में सानिया मिर्जा ने..तो बैंडमिंटन में सायना नेहवाल ने परंपरा निभाई है..
जवाब देंहटाएंकदम कदम की दूरी कितनी हो ये तो वही जानता जो चलना जानता है
जवाब देंहटाएंहर कदम की जमी कदमो तले
हर सुबह कितनी ताजगी होती है लेकिन
दिन के अंत में आप कैसे सुकून महसूस कर रहे हो
ये अपने मायने रखती है.
चलना ही राही की गुणवत्ता है
मनन चिंतन तो एक सादगी से युक्त मर्यादित ही कर सकता है
हमें निर्देश दिया गया था
जवाब देंहटाएंकि चलते समय ध्यान रखना
दो क़दमों के बीच का फासला
न हो एक फुट से ज्यादा
कि लड़कियाँ लंबी छलाँगें लगाती अच्छी नहीं लगतीं,
हमने उनकी बात मानी
और उसी एक फुट के अन्दर
अपनी सारी दुनिया बसा ली,
कम से कम हमारी दुनिया अब
हमारे क़दमों के नीचे थी
और हमारे कदम भी ज़मीन पर।
सहज प्रस्फुटन भावों का ,हिरनी की कुलान्चों ,उनको दीया दिखाने का .....
ram ram bhai
शनिवार, 22 सितम्बर 2012
असम्भाव्य ही है स्टे -टीन्स(Statins) से खून के थक्कों को मुल्तवी रख पाना
बड़ी सुंदर कविता लिखती हैं आप
जवाब देंहटाएंअब तो मेरा ही अस्तित्व मेरी बात नहीं मानता,
जवाब देंहटाएंअपने विरुद्ध जाने के लिए हमसे
तुमने ही तो कहा था।
बेहतरीन प्रस्तुति.
ओह!! एक ही टिप्पणी दो बार पोस्ट हो गयी थी....पर मुझे दिख ही नहीं रही थी..सॉरी अराधना
जवाब देंहटाएंकोई बात नहीं दी, आजकल टिप्पणियाँ स्पैम में चली जाती हैं. इसीलिये ये दिक्कत हो रही है. मैंने भी कई जगह दो-दो बार टिप्पणी कर दी है :)
हटाएंये जो 'तुम' है इससे भी मुक्ति की जरूरत है।
जवाब देंहटाएं*
अच्छी कविता।
अब तो मेरा ही अस्तित्व मेरी बात नहीं मानता,
जवाब देंहटाएंअपने विरुद्ध जाने के लिए हमसे
तुमने ही तो कहा था।
मेरी आज की उपलब्धि की यह कविता पड़ पाया!
!बहुत ही सटीक कविता!!!!
अब तो मेरा ही अस्तित्व मेरी बात नहीं मानता, अपने विरुद्ध जाने के लिए हमसे तुमने ही तो कहा था। .....ग्रेट ......
जवाब देंहटाएं@सबको धन्यवाद !
जवाब देंहटाएं@राजेश उत्साही, अगर फेसबुक की तरह यहाँ भी टिप्पणी 'लाइक' करने का ऑप्शन होता तो आपकी टिप्पणी लाइक कर लेती.
ये जो 'तुम' है, इसी से तो आज़ादी की कोशिश है क्योंकि 'इन्हें' इस बात का घमंड है कि इन्होंने हमें 'आज़ादी' 'दी' है और जब चाहे वापस ले सकते हैं. इन्हें नहीं मालूम कि जब तक थोड़ी-बहुत आज़ादी पास में रहती है, तभी तक ठीक है, नहीं तो विद्रोह होता है और वो हो भी रहा है. और तब पूर्णतः 'मुक्ति' चाहिए होती है.
daer sae aanae kae liaye maafi
जवाब देंहटाएंkahin aur ladd rahii thee ek laddaii
ab yahaan hun aaiii
tum ko is kavita ki daene badhaii
हमने उनकी बात मानी
जवाब देंहटाएंऔर उसी एक फुट के अन्दर
बसा ली अपनी दुनिया ,
..अब तो मेरा ही अस्तित्व मेरी बात नहीं मानता,
अपने विरुद्ध जाने के लिए हमसे
गज़ब लिखा है आपने
इस जहान में एक छोटी सी उड़ान ...जो हो अपनी सी वो अभी बाकि है ....
जवाब देंहटाएंराजेश जी ने कविता के भाव को विस्तार दिया है। अच्छी लगी कविता।
जवाब देंहटाएंअब तो मेरा ही अस्तित्व मेरी बात नहीं मानता,
जवाब देंहटाएंअपने विरुद्ध जाने के लिए हमसे
तुमने ही तो कहा था।.....
अच्छी कविता.....
गज़ब की रचना...वाह!!
जवाब देंहटाएंथोथी और थोपी हुई खोखली मान्यताओं पर करारी चोट करती आपकी ये पंक्तियाँ अवचेतन और चेतन दोनों तरह के मस्तिष्कों को चिंतन के लिए अनोखा पटल उपलब्ध कराती हैं ...धन्यवाद
जवाब देंहटाएंहमें निर्देश दिया गया था
कि चलते समय ध्यान रखना
दो क़दमों के बीच का फासला
न हो एक फुट से ज्यादा
कि लड़कियाँ लंबी छलाँगें लगाती अच्छी नहीं लगतीं,
जिस्म क़ैद है क़फ़स में,
जवाब देंहटाएंज़हन में उड़ान है!
तोड़ दे बेड़ियाँ,
तेरा ये खुला आसमान है!
ढ़
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थर्टीन रेज़ोल्युशंस
एक फ़ुट जमीन पर दुनिया उगा ली! जय हो!
जवाब देंहटाएंबढ़िया. अपने लिए जमीन तलाशनी ही होगी.
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