बुधवार, 23 जनवरी 2013

सर्दी, धूप और सँकरी गलियों वाले मोहल्ले

अक्टूबर के महीने से होती है शुरू दुश्मनी
धूप की सँकरी गलियों वाले मुहल्लों से,
और उनमें बने मकानों में
धूप आना-जाना छोड़ देती है।

जब पॉश कालोनियों के बच्चे
गीज़र के गर्म पानी में नहाकर
टहलते हैं लॉन की हरी घास पर,
संकरी गलियों वाले मुहल्लों में-
-सूनी पड़ी होती है बालकनी
-पार्कों में सूख रहे होते हैं गीले कपड़े
-और बच्चे सड़कों पर उत्पात मचाते, खेल रहे होते हैं।

धूप चाहते हुए भी नहीं जा सकती है वहाँ,
म्युनिसपैलिटी वालों ने लगाई है रोक
धूप के गलियों में आने-जाने पर,
वो भी क्या करें?
नियम तो ऊपर से बने हैं
कि धूप, हवा, आसमान और ज़मीन
आदमी की 'औकात' के हिसाब से बाँटे जाएँ,
एल.आई.जी., एम.आई.जी., एच.आई.जी.
एक साथ नहीं हो सकते।

लेकिन,
म्युनिसपैलिटी, सरकार और नियमों के
लाख न चाहने के बावजूद,
पहुँच ही जाती है धूप की गर्मी
इन संकरी गलियों वाले मुहल्लों में-
-लोगों की बातचीत में
-बच्चों के खेल में
-बालकनी से बालकनी के सम्बन्ध में
महसूस होती है गर्मी।