शुक्रवार, 17 सितंबर 2010

बड़की भौजी

उसका ब्याह तब हुआ
जब उसे मालूम भी नहीं था
कि वो एक औरत है,
लाल साड़ी में लिपटी ससुराल आयी
वापस गयी बरसों बाद
जैसे यहीं नाल गड़ी हो उसकी,
... ...
उसे कोई शिकायत नहीं थी
वो रोज़ सुबह उठकर नन्हे हाथों से
जांते में गेहूँ डालती
और अपनी ख्वाहिशों को
पिस-पिसकर ज़मीन पर गिरते देखती,
तवे पर पड़ी रोटी
जब फूलकर गुब्बारा हो जाती
तो उसके चेहरे पर चमक आ जाती थी,
... ...
वो हँसती रहती
मानो सारी परेशानियों को
सूप से पछोरकर उड़ा दिया हो
दुखों को बुहार दिया हो
और चिंताओं को फेंक दिया हो
चावल के कंकड़ों के साथ बीनकर,
... ...
इच्छाएँ, आशाएँ, आकांक्षाएँ क्या होती हैं?
उसे नहीं पता
वो कुछ नहीं सोचती
और ना कुछ कहती अपने बारे में,
अपनी छोटी सी दुनिया में खुश,
निश्चिंत, खिलंदड़ और हँसमुख बड़की भौजी को
चूल्हे के धुँए की आड़ में
अपने आँसुओं को छिपाते पकड़ा
"लकड़िया ओद हौ, धुअँठैले"
बचपने में ब्याह
खेल-खेल में
तीन लड़कियाँ हो गयीं हैं उसकी... ...

(नीचे वाला चित्र मेरी सहेली चैंडी के कैमरे से, ऊपर वाला फ्लिकर के सौजन्य से)

19 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत खूब, काफ़ी अरसे बाद एक अच्छी कविता पढ़ने को मिली. बधाई.

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  2. भींगी पलकों के साथ मुस्कुराना शायद स्त्री की नियति होती है !!!

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  5. मेरे पास शब्द नहीं है। अभी समीर जी की जिंदा सूखा गुलाब पढकर आया। मन जाने कैसा हो गया। अब आप भी एक दुख को बयां कर रही हैं। जिंदगी अनेक रंग में होती है। उसमें हल्का सा भी दुख लगता है क्यों देता है उपर वाला। पता नहीं कर्मों का खेल है है क्या। है भी तो जाने कौन से जन्म का।
    खेल खेल में ही
    खेलने की उम्र में
    तीन बच्चे हो गए.....

    हाय री नियती...

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  6. भारत की प्रतिनिधि नारी की असली तस्वीर !

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  7. लगता है मुक्ति जी जैसे कविता लिखते लिखते आप रुक गई हैं। इसे पूरी करिए। फिर टिप्‍पणी देंगे।
    आरंभ्‍म बहुत मार्मिक है।

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  8. वो हँसती रहती
    मानो सारी परेशानियों को
    सूप से पछोरकर उड़ा दिया हो
    दुखों को बुहार दिया हो
    और चिंताओं को फेंक दिया हो
    चावल के कंकड़ों के साथ बीनकर,


    बहुत खूबसूरत पंक्तियाँ ..

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  9. बेहतरीन रंगों खून पढ़ते हउवे बर्फ बन जाता है..........

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  10. han ...aaj bhi yahi halat hai door daraaj ilaakon me ya pichde ilaakon me aurton ki ...aisa nahi ki shahar me nahi hota ....bas sankhya kam hai aisi ghatnaon kee..."badhiya kavita" to kahunga nahai kyunki kisi ka dukh hai ...haan aap chetna ko jagaane ka kaam kar rahi hain ..karti rahiye shubhkamnayen sath hain ...

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  11. कविता बढ़िया लगी आराधना.. लेकिन ऊपर वाले चित्र और कविता में सामंजस्यता नहीं दिखी.. वो चित्र बडकी भौजी का सा नहीं बल्कि किसी आधुनिक पढ़ी लिखी युवती का सा लग रहा है..

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  12. इच्छाएँ, आशाएँ, आकांक्षाएँ क्या होती हैं?
    उसे नहीं पता
    वो कुछ नहीं सोचती
    और ना कुछ कहती अपने बारे में,
    अपनी छोटी सी दुनिया में खुश...
    जीवन का ये भी एक रंग होता है आराधना जी...
    बहुत अच्छी रचना लगी.

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  14. aapki rachnaaon mein samajik dard hai........vatvriksh ke liye apni rachna bhejen rasprabha@gmail.com per parichay aur photo ke saath

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  15. इच्छाएँ, आशाएँ, आकांक्षाएँ क्या होती हैं?
    उसे नहीं पता
    वो कुछ नहीं सोचती
    और ना कुछ कहती अपने बारे में,
    अपनी छोटी सी दुनिया में खुश,
    निश्चिंत, खिलंदड़ और हँसमुख बड़की भौजी को
    चूल्हे के धुँए की आड़ में
    अपने आँसुओं को छिपाते पकड़ा
    "लकड़िया ओद हौ, धुअँठैले"
    बचपने में ब्याह
    खेल-खेल में
    तीन लड़कियाँ हो गयीं हैं उसकी...
    ....Sachhi aur man ke gahrayee mein utar jaane wali rachna... sach mein apne aas-paas hi n jaane kitne hi aisee banti kahaniyon ko dekh man darvit ho uthta hai.... ek aah bhar kar rah jaate hain ham aise kayen maukon par!!!

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  16. वो हँसती रहती
    मानो सारी परेशानियों को
    सूप से पछोरकर उड़ा दिया हो
    दुखों को बुहार दिया हो
    और चिंताओं को फेंक दिया हो
    चावल के कंकड़ों के साथ बीनकर,
    ......काश हम बडकी भौजी बन पाते ......!

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