मंगलवार, 18 अगस्त 2009

ज़िन्दगी फिर से

चारों ओर फैली है धुँध सी
फ़ीका चाँद, चाँदनी धुँधली
ज़िन्दगी के रंग धुल गये सारे
दुःखों की बदली में छुप गये तारे,
टूटे-फूटे अरमानों की
फूस बटोर
उम्मीदों की चिंगारी को ढूँढ़
हौसलों की आग जला ली जाये,
आओ!
ज़िंदगी फिर से
जी ली जाये.

मंगलवार, 11 अगस्त 2009

अबकी सावन में
नहीं आयी हथेलियों से
मेहंदी की खुशबू
नहीं बरसे बादल
झूले नहीं पड़े पेड़ों पर
अबकी सावन में
नहीं जा सकी घर
रोजी-रोटी के चक्कर में